रिसर्च बताती है कि विकलांग महिलाओं के साथ होने वाली हिंसाओं को अनदेखा करने के पीछे दो मुख्य पहलु हैं। पहला – न्याय प्रणाली अमूमन विकलांग महिलाओं की पहुंच से दूर होती है। साथ ही, कानून प्रवर्तन अधिकारियों के बीच विकलांगता संबंधी मुद्दों पर संवेदनशीलता की कमी होती है।
दुनिया भर में पांच में से एक महिला विकलांगता के साथ अपना जीवन बिताती है और अनुमानित तौर पर वे अन्य के मुकाबले दस गुना ज़्यादा लिंग-आधारित हिंसा का सामना करती हैं – इक्वलिटी नाउ की रिपोर्ट
एक विकलांग महिला दोहरे तौर पर लिंग-आधारित हिंसा व यौन हिंसा का सामना करती है। समाज में उसकी महिला व विकलांग महिला होने की पहचान उसे अलग-अलग स्तर पर शोषित करती है व उसे हाशिये पर लाकर रख देती है।
हाल ही में, यूपी के चित्रकूट जिले में एक 22 वर्षीय सुन और बोल न पाने वाली महिला के साथ रेप व महिला की नवजात बच्ची के साथ यौन शोषण का मामला सामने आया है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, मामला बुधवार 16 अक्टूबर 2024, चित्रकूट जिले के भरतकूप स्टेशन के अंतर्गत आने वाले एक गांव का है।
मामले में 23 वर्षीय आरोपी राज नारायण, जो कि चित्रकूट के पड़ोसी जिले से है, उसके खिलाफ पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज़ कर दी गई है। चित्रकूट के पुलिस अधीक्षक अरुण कुमार ने बताया,
“महिला घर में खाना बना रही थी। पति किसी काम से बाहर गया था, तभी आरोपी राज नारायण घर में घुस आया और उसने अपराध को अंजाम दिया।” शिकायत का हवाला देते हुए उन्होंने आगे कहा,”बाद में उसने महिला की नवजात बेटी के साथ छेड़छाड़ की। जब पति वापस लौटा तो महिला ने उसे इशारों से बताया कि उसके साथ क्या हुआ था। इसके बाद पति ने पुलिस से संपर्क किया।”
पुलिस अधीक्षक के अनुसार, आरोपी के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा और पोस्को अधिनियम के तहत प्राथमिक रिपोर्ट दर्ज़ की गई है, लेकिन आरोपी अभी पकड़ा नहीं गया है।
जब हम विकलांग महिलाओं के साथ होने वाले रेप के मामले और उससे जुड़े आकंड़े की तलाश करते हैं तो हमें वह कहीं नहीं दिखते। राष्ट्रिय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट में भी विकलांग महिलाओं के साथ होने वाले बलात्कार व हिंसा के मामले का कोई डाटा नहीं है। यह संदर्भ यह साफ़ करता है कि विकलांग महिलाओं को जो अधिकार व न्याय मिलने चाहिए, उसे किस तरह से अनदेखा किया गया है।
विकलांग महिलाओं के साथ हो रही हिंसाओं के सब तो नहीं पर कुछ मामले सामने आ रहे हैं लेकिन उन्हें भी संकलित नहीं किया जाता है और शायद इसलिए भी इसका कोई डाटा नहीं है जो यह दिखाता है कि न्याय प्रणाली और सरकार का विकलांग महिलाओं और उनसे जुड़े मुद्दों की तरफ क्या रवैया है।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) के एक वैश्विक अध्ययन के अनुसार, दुनिया की 15 प्रतिशत आबादी विकलांगता के साथ जीवन बिता रही है, और इनमें से लगभग 200 मिलियन लोग 10 से 24 वर्ष की आयु के बीच हैं। फिर भी, वे अक्सर सरकारी आंकड़ों में अदृश्य होते हैं।
हिंदुस्तान टाइम्स की अक्टूबर 2024 की प्रकाशित रिपोर्ट में पिछले कुछ महीनों में विकलांग महिलाओं के साथ रेप व यौन हिंसा के मामलों के बारे में बताया गया। रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर के महीने में छत्तीसगढ़ में मानसिक रूप से विकलांग एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था। उसी महीने, छत्तीसगढ़ में ही एक और महिला के साथ बलात्कार किया गया था, जिसे बोलने व सुनने में परेशानी थी।
अगस्त में आंध्र प्रदेश में बौद्धिक रूप से विकलांग एक महिला के साथ बलात्कार किया गया था। जुलाई में उत्तर प्रदेश में शारीरिक रूप से विकलांग बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था। यह वे गिने-चुने मामले हैं जिन्हें दर्ज किया गया था और कई ऐसे मामले हैं जो बाहर निकलकर नहीं आ पाए।
रिपोर्ट के अनुसार, रिसर्च बताती है कि विकलांग महिलाओं के साथ होने वाली हिंसाओं को अनदेखा करने के पीछे दो मुख्य पहलु हैं। पहला – न्याय प्रणाली अमूमन विकलांग महिलाओं की पहुंच से दूर होती है। साथ ही, कानून प्रवर्तन अधिकारियों के बीच विकलांगता संबंधी मुद्दों पर संवेदनशीलता की कमी होती है।
दूसरा, कई अपराधी वे व्यक्ति होते हैं जिन्हें महिला जानती है। जिसका उनसे किसी तरह का संबंध होता है – परिवार,रिश्तेदार,पड़ोसी। इन संबंधों पर आर्थिक और सामाजिक निर्भरताएँ भी महिलाओं को रिपोर्ट करने से रोकती है।
इसके साथ ही विकलांगता से जुड़े मुद्दे जाति,लिंग,वर्ग और नस्ल जैसी अलग-अलग पहचानों की वजह से भी प्रभावित होते हैं। इस मामले में महिला चित्रकूट जिले के एक छोटे से गांव से आती है। महिला होना, एक विकलांग महिला होना और फिर गांव के परिवेश से आना, यहीं से उसकी पहुंच, न्याय या किसी भी तरह की सुविधाओं तक पहुंचने के लिए संकीर्ण या न के बराबर हो जाती है। यहां ये सोचने और सवाल करने की ज़रूरत है कि जब हम महिलाओं के साथ हो रही यौन हिंसाओं या बलात्कार के मामलों के बारे में बात कर रहे हैं तो क्या उसमें सभी पहचानों व पहलुओं को शामिल किया जा रहा है? या फिर सिर्फ उन्हें देखा जा रहा है जो तथाकथित तौर पर समाज में दिखाई देते हैं, उन्हें माना जाता है कि वह समाज का हिस्सा है और उन्हें देखा जा रहा है।
‘यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’