चित्रकूट के लोग कूंचे बनाने का पुश्तैनी काम कर, अपनी परम्परा को बनाये रखे हुए हैं। लेकिन इससे उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी नहीं चल पाती। ना ही उनके परिवार की मूल आवश्यकताओं की पूर्ती हो पाती है।
चित्रकूट के मानिकपुर ब्लॉक के रहने वाले लोग अपने पुष्तैनी काम के ज़रिये अपनी जीविका चलाते हैं। खबर लहरिया ने जब लोगों से बात की तो पता चला कि वह कूंचे यानी खजूर से झाड़ू बनाते हैं। यही उनका पुश्तैनी काम है। जिसे वह सालों से करते आ रहे हैं। लेकिन इसके साथ-साथ उन्हें आवास ना होने की समस्या भी सताती रहती है। उनका रोज़गार ऐसा नहीं है जिससे की वह ज़्यादा आमदनी कमा सकें। उससे वह अपना आवास बना सकें।
कूंचा बनाना है परंपरा का हिस्सा
कूंचा बनाना मानिकपुर के रहने वाले लोगों की परंपरा का हिस्सा है। लोग कहते हैं कि आज की पीढ़ी से पहले के लोग मज़दूरी के लिए कहीं नहीं जाते थे। अगर कोई जाता तो उस पर जुर्माना लगता। लेकिन अब उन्हें बाहर जाना पड़ता है। रोज़गार की तलाश में। जब कभी खुद के गाँव में खजूर नहीं मिलता। तो वह महोबा जिला जाकर खजूर काटकर लाते हैं। ताकि कूंचा बना सके।
बारहो महीने बनाते हैं कूंचे
कूंचा बनाने के लिए लोग दूसरे गाँव जाकर खजूर काटते हैं। फिर उसे घर लेकर आते हैं। इसके बाद उसे सुखाते हैं। फिर उसे पीटते हैं। उसे छीला जाता है। यह सब करने के बाद उसे अलग-अलग बाँधा जाता है। एक परिवार पूरे दिन में पचास कूंचा बनाता है। एक कूंचा 5 रूपये में बिकता है। साल के बारह महीने लोग यही काम करते हैं। कूंचे बेचकर जो लोग थोड़े-बहुत पैसे कमाते हैं। उसी से घर में सब्ज़ी आदि चीज़ें आती हैं। इससे ज़्यादा वह और कुछ खरीद नहीं पाते।
तूफ़ान उड़ा ले जातें हैं घर
मानिकपुर ब्लॉक में रहने वाले नत्थू, अशोक, बब्बू, रानी और किरण ने अपनी समस्याएं बताईं। वह कहते हैं कि उनके ब्लॉक में कम से कम पचास परिवार कूंचा बनाने का काम करते हैं। वहीं दस लोगों ने अपने आवास भी बनवा लिए हैं। बाकी के लोग झोपड़ियों में ही रहते हैं। झोपड़ियां जो कर्कट, पन्नी, बांस, भूसा आदि से नीले आसमान के नीचे बनाई गयी है। ताकि सर को ढका जा सके। लेकिन बरसात के मौसम में लकड़ी, पन्नी से बनी झोपड़ी उन्हें बरसात से नहीं बचा पाती। जैसे ही तूफ़ान आता है वैसे ही पन्नी से बना आशियाना भी तूफान अपने साथ उड़ा ले जाता है। सर की छत उनसे एक बार फिर छिन जाती है। खजूर की झाड़ू बनाने से बस खाने तक गुज़ारा हो जाता है। उनकी सरकार से यही मांग है कि उन्हें भी आवास मिले। उन्हें भी योजना का लाभ प्राप्त हो।
कोई ध्यान देने वाला नहीं
गाँव के रहने वाले नत्थू का कहना है कि कोई उनकी समस्याओं पर ध्यान नहीं देता। कई बार टाउन क्षेत्र में जाकर शिकायत की। बस आश्वाशन मिल गया। लेकिन आवास नहीं मिला। उनके दो बच्चे हैं। दोनों को टीबी की बीमारी थी। जिससे उनकी मौत हो गयी। ना रोज़गार से कमा पाते हैं। ना ही आवास है कि परिवार को सुरक्षित स्थान दे सकें। इतना कमा नहीं पाते की दवा भी खरीद सकें।
सबको मिलेंगे घर – मानिकपुर टाउन एरिया के चेयरमैन
इस ममले में खबर लहरिया द्वारा मानिकपुर टाउन एरिया के चेयरमैन विनोद द्विवेदी से बात की गयी। उनके अनुसार, उनके पांच साल के कार्यकाल में 800 आवास आये थे। पूरे टाउन की आबादी 35 हज़ार है। जिसमें से 17 हज़ार लोगों के पास वोटर आईडी कार्ड है। जहां तक बात रही कूंचा बनाने वालों की। उन्हें रहने के लिए दो महोल्ले दिए गए हैं। एक वालमीकि नगर और दूसरा पटेल नगर। जो लोग रह गए हैं। उनके आवास के लिए फॉर्म भरा गया है। जैसे ही उनका नंबर आएगा। उन्हें आवास मिल जायेगा। उन्हें परेशान होने की ज़रुरत नहीं है।
एक तरफ लोग अपनी परंपरा को जीवित रखे हुए हैं। लेकिन उनके जीवित रहने के साधन कम नज़र आते हैं। लोग आवास का सपना देखते हैं और सिर्फ देखते ही रह जाते हैं। किसी की उम्मीद ईंट से घर की दीवार बन जाती है। और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सपने से हकीकत तक पहुँच ही नहीं पाए। उत्तरप्रदेश के चित्रकूट जिले के ब्लॉक मानिकपुर के लोगों की भी दुविधा कुछ ऐसी ही है। लेकिन उन्हें आवास कब तक मिलेगा? उन्हें और कितना लंबा इंतज़ार करना होगा? जब तक उन्हें आवास नहीं मिलता, बरसात और तूफ़ान से उन्हें कौन बचाएगा ? ऐसी समस्या में वह परेशान कैसे ना हो?
इस खबर को खबर लहरिया के लिए सुनीता देवी द्वारा रिपोर्ट की गयी है।