चुनाव आते ही सभी पार्टियां घोषणा पत्र जारी करके मतदाताओं को रिझाते हैं। एक से बढ़कर एक मुद्दा इस घोषणा पत्र में डालते हैं। यहां तक कि महिला वोटर पाने के लिए पार्टियां महिलाओं के लिए कुछ मुद्दे सपने के जैसे शामिल तो करते हैं लेकिन होता कुछ नहीं है। महिला मतदाताओं के अंदर ऐसी जागरूता की चाह भी नहीं होती क्योंकि अगर चाह होगी तो वह सवाल करेंगी, मांगेगी। इसलिए महिलाएं भी अपने लिए न सोंचकर सिर्फ अपने घर परिवार के बारे में ही सोंचती हैं। हमने इस पर लाख कोशिश की कि इस चुनाव में महिलाओं का मुद्दा क्या होना चाहिए। सुनिए उन्होंने क्या कहा।
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देवकी कहती हैं कि उनके कहने से सरकार तो कुछ देती नहीं है। महिलाओं को कुछ नहीं देती। उनकी दो बेटियां हैं। उनको पढ़ाना लिखाना है और शादी भी करनी है। लड़कियों की शिक्षा और पढ़ाई को लेकर सरकार में कोई मतलब नहीं है।
महिलाओं के लिए सरकार कोई व्यवस्था नहीं करती है। न ही वह जानती हैं कि सरकार ने क्या व्यवस्था की है महिलाओं के लिए। उनकी लड़की पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही है उसकी शिक्षा के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। न ही लैपटॉप मिला और न ही वजीफ़ा। सब नौटंकी बाजी करते हैं आकर कोई नेता कुछ देने वाला नहीं है।
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