चित्रकूट जिला कस्बा कर्वी पाडेय कालो बस स्टाप के पास 14 जून को सुबह साढे दस बजे एक बच्ची छोटे लोडर मे पडी मिली
स्थानीय लोगों ने जब बच्ची की अवाज सुनी रोने की गाडी के पास गये देखा. बच्ची पडी थी
वहां के लोगों ने बताया बच्ची को किसने डाला नहीं देखा जब बच्ची के रोने की आवाज आई लोग इकट्ठा होने लगे कर्वी कोतवाली फोन किया मौके पर पूलिस पहूची चाइल्डलाइन से निलू पहूंची और बच्ची को जिला अस्पताल ले गये
चन्दकली ने बताया जब मैने बच्ची को देखा मेरी ममता जाग गई और मैने कुछ नहीं सोंचा बच्ची को तुरंत उठा.लिया
मुझे बहुत रोना आया मेरे आंसू खुद निकलने लगे कैसे मां अपनी बच्ची को छोड सकती है क्या मजबूरी होगी उसकी
एस आई प्रवीण सिंह ने बताया जैसे ही हमे सुचना मिली मै तुरंत पाण्डेय कालोनी कोठी तलाब पहूचा बच्ची के लिए कपडे जरूरत का समान लिया और तुरंत अस्पताल लाए यहां मौजूद डाक्टर ने कहा बच्ची एकदम स्वास्थ्य है ऐडमिट करने की जरूरत नहीं लेकिन लावारिस बच्ची के लिए निर्णय नहीं लिया जा सकता था जो कानूनी कार्वाही है उसे पूरा करना जरूरी है
इसलिए सी एम ओ विनोद कुमार यादव से लिखवाया और बच्ची को ऐडमिट कराया
ये पहली घटना नहीं चित्रकूट मे हर साल ऐसे लगभग पांच से सात केस होते हैं
और जब भी ऐसी खबरे मिडिया कर्मीयों को पता चलती है तुरंत लिखते हैं कलंकनी मां
ये शब्द जैसे ही पढती हू सुनती हू बहुत गुस्सा आता.है एक सवाल खुद से करती हू क्या इसमें सिर्फ महिला दोषी है अगर सिर्फ.मां ही दोषी है तो उसने क्यों नौ महिने कोख मे रखा आजकल हर जगह व्यवस्था है मेडिसिन मिल जाती है अगर उसे ऐसा करना था तो पहले ही कर सकती थी
क्यों पत्रकार साथी नहीं उसमे परिवार समाज और चस बच्चे के बाप को शामिल कलके खबर लिखते हैं क्यों हर इन्सान सिर्फ महिला को दोषी ठहरा देता है
इसके पिछे क्या कहानी है कैसे कोई अपने जिगर के टुकडे को
ऐसे कैसे फेक सकता है कितना दर्द सह कर दिल पर पथ्थर रख कर वो ऐसा कदम उठाई होगी
और ये भी जरीरी नहीं की बच्ची फेकने वाली ,फेकने वाला ,मां ही रही हो और भी कोई हो सकता है.
लेकिन समाज मे सिर्फ.दोष महिला का ही माना जाता है