जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय को वर्ल्ड रिकॉर्ड्स यूनियन (वर्ल्डकिंग्स) ने 29 सितंबर, 2022 को आधिकारिक तौर पर दुनिया का पहला विकलांग विश्वविद्यालय घोषित किया था।
भारत का पहला विकलांग विश्वविद्याल उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले में है जोकी सिर्फ विकलांग बच्चों के लिए है, जिसका नाम जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय ( JRDU ) है। इसे पहले जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता था। इसकी स्थापना 27 जुलाई 2001 में जगद्गुरु रामभद्राचार्य द्वारा की गई थी और यूपी के मुख्यमंत्री रहे राजनाथ सिंह ने इसका शिलान्यास किया था। विकलांग लोगों को भी सभी के जैसे पढ़ने व आगे बढ़ने का अधिकार है। ऐसे तो कई स्कूल और विश्वविद्यालय बनाए गए हैं लेकिन विकलांग बच्चों के लिए विशेष रूप से ऐसे संस्थानों/संगठनों की गिनती बहुत सीमित पाई गईं है। इस विश्वविद्यालय विशेष रूप से वो बच्चे शिक्षा ले सकते हैं जो दृष्टि बाधित (जो लोग देख नहीं सकते), श्रवण बाधित (जो सुन नहीं सकते), गतिशीलता बाधित (जो चल नहीं सकते) और जो मानसिक रूप से अस्वस्थ हो। इन श्रेणियों को भारत सरकार के विकलांगता अधिनियम (1995) द्वारा परिभाषित किया गया है।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय के अनुसार भारत में लगभग 9 करोड़ विकलांग हैं जो औपचारिक रूप से स्कूल प्रणाली में लगभग 5% ही बच्चे पढ़ते हैं। भारत में उच्च शिक्षा के लिए विकलांग लोगों के लिए स्थिति बहुत खराब है। उन लोगों को उच्च शिक्षा पाने के लिए संघर्षो से होकर गुजरना पड़ता है। इनके सामने केंद्र में उपलब्ध समाज जो बाहर के समाज के जैसा ही होता है, जो उनका मजाक उड़ता है, जो उन्हें असहाय महसूस कराता जिससे उनका मनोबल कमजोर हो जाता है। वह उच्च शिक्षा तक पहुंचने में ही हिचिकिचाते हैं और वहां तक पहुंच ही नहीं पाते हैं। इस तरह के संस्थान होने से उनमें आत्मविश्वास जगता है और उन्हें एक तरह का स्पेस मिलता है जहां वे पढ़ सकते हैं।
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जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय को कब मिला विश्व का दर्जा
न्यूज़ 18 की रिपोर्ट के मुताबिक जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय को वर्ल्ड रिकॉर्ड्स यूनियन (वर्ल्डकिंग्स) ने 29 सितंबर, 2022 को आधिकारिक तौर पर दुनिया का पहला विकलांग विश्वविद्यालय घोषित किया था। विश्व एशिया रिकॉर्ड्स इंस्टीट्यूट (एएसआरआई) से विश्व रिकॉर्ड नामांकन और निर्णय संख्या WK/USA.INDIA/906/2022/No.362 के आधार पर इसे विश्व का पहला दिव्यांग विश्वविद्यालय माना गया।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय का इतिहास
इसकी स्थापना जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने निजी तौर पर की थी लेकिन वह इसे 2022 में विश्वविद्यालय को उत्तर प्रदेश राज्य सरकार का विश्वविद्यालय बनाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ जी को विश्वविद्यालय को राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालय के रूप में लेने का सुझाव दिया और जून 2023 में उत्तर प्रदेश सरकार ने दिव्यांगजन विभाग के तहत उत्तर प्रदेश जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 2023 को उत्तर प्रदेश राज्य विधानसभा में पारित करके इसे राज्य सरकार के विश्वविद्यालय का दर्जा दे दिया। इसके तहत अब इस विश्वविद्यालय में 50 प्रतिशत दिव्यांग छात्र और 50 प्रतिशत अन्य छात्र इस विश्वविद्यालय में प्रवेश ले सकते हैं ।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय में विभाग
जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय में 19 विभाग है जैसे कंप्यूटर विभाग, संस्कृत विभाग, वाणिज्य एवं प्रबंधन विभाग, हिंदी विभाग, इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विबाहग आदि। यहां बच्चे अपने पसंदीदा क्षेत्र के मुताबिक कोर्स का चयन कर सकते हैं और अच्छी शिक्षा पाकर आत्मनिर्भर बन सकते हैं।
डिग्री व डिप्लोमा कोर्स की जानकारी
यह विश्वविद्यालय मुख्य रूप से संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी, समाजशास्त्र, संगीत, चित्रकारी, इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व में स्नातक और परास्नातक डिग्री प्रदान की जाती है।
MSW (मास्टर ऑफ सोशल वर्क),
B.Mus., (म्यूजिक/ संगीत)
BFA (बैचलर इन फाइन आर्ट),
M.Ed. स्पेशल,
B.Ed. (बैचलर ऑफ एजुकेशन),
M.Ed. (मास्टर ऑफ एजुकेशन) (हियरिंग इम्पेयरमेंट एंड विजुअल इम्पेयरमेंट),
BCA (बैचलर ऑफ कंप्यूटर एप्लीकेशन),
BBA (बैचलर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन),
PGDIT (सूचना प्रौद्योगिकी में स्नातकोत्तर डिप्लोमा),
DIT (सूचना प्रौद्योगिकी में डिप्लोमा),
फोटोग्राफी और वीडियो शूटिंग में डिप्लोमा,
हस्तनिर्मित कागज में डिप्लोमा,
कानून (पांच वर्षीय एकीकृत पाठ्यक्रम),
BPO (बैचलर इन प्रोस्थेटिक्स एंड ऑर्थोटिक्स) संक्षिप्त पाठ्यक्रम,
BPO (बैचलर इन प्रोस्थेटिक्स एंड ऑर्थोटिक्स) पांच वर्षीय एकीकृत पाठ्यक्रम और मनोविज्ञान में BA पाठ्यक्रम शामिल हैं।
विश्वविद्यालय कई विषयों में स्नातक, स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट की डिग्री प्रदान करता है।
इस विकलांग विश्वविद्यालय में अधिकतर विद्यार्थी उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश से हैं, इसके बाद असम, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड जैसे अन्य राज्य से आते हैं। इस तरह का प्रयास विकलांग लोगों के लिए एक सकारत्मक पहल है जो उन्हें अकेला महसूस नहीं करवाती। इसकी सहायत से वो भविष्य में अपना नाम और पहचान बना सकते हैं। जो समाज उन्हें कमजोर महसूस करवाता है उसका जवाब वह खुद दे सकते हैं और विश्व में अपना नाम और भारत का नाम रोशन कर सकते हैं।
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