उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों की तरह चित्रकूट ज़िले में भी कई गाँव ऐसे हैं जहाँ लोगों के पास आजतक शौचालय की सुविधा नहीं है। इन ग्रामीणों को शौच करने के लिए खेतों में या मीलों पैदल चलकर जंगलों की ओर जाना पड़ता है।
सरकार ने पिछले कुछ सालों में देशभर के ग्रामीणों को घर-घर शौचालय बनवाने के सपने तो जमकर दिखाए, लेकिन जब बात स्वच्छ भारत मिशन के तहत लोगों तक शौचालय पहुंचाने की बात आई, तब सारी योजनाएं सिर्फ कागज़ पर ही रह गयीं। उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों की तरह चित्रकूट ज़िले में भी कई गाँव ऐसे हैं जहाँ लोगों के पास आजतक शौचालय की सुविधा नहीं है। इन ग्रामीणों को शौच करने के लिए खेतों में या मीलों पैदल चलकर जंगलों की ओर जाना पड़ता है। सबसे ज़्यादा परेशानियां तो उन ग्रामीण महिलाओं को झेलनी पड़ती है जिन्हें खुले में बैठ कर शौच करना पड़ता है और समाज के रूढ़िवादी नज़रिए का हर रोज़ शिकार होना पड़ता है।
चित्रकूट ज़िले के गाँव डोडिया माफी के मजरा छतैनी के लोग भी शौचालय न बनने से काफी परेशान हैं। इन लोगों का कहना है कि इन्हें शौचालय की पहली क़िस्त तो मिली और काम भी शुरू करवाया गया लेकिन महीनों हो गए और शौचालय बनवाने के लिए दूसरी क़िस्त आई ही नहीं। इसके परिणाम स्वरूप गाँव में आधा दर्जन शौचालय आधे-अधूरे बन कर खड़े हैं। ग्रामीणों की मानें तो बीते सालों में इन लोगों ने प्रधान से भी कई बार शैचालय बनवाने की मांग की लेकिन उनसे भी किसी प्रकार की मदद नहीं मिली।
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हादसों के बाद भी प्रशासन है नहीं कर रहा सुनवाई-
इसी गाँव की रहने वाली ममता और रौशनी ने हमें बताया कि शौचालय न मिलने के कारण सभी ग्रामीण जंगलों की ओर जाते हैं। अभी हाल ही में गाँव के एक व्यक्ति जो शौच के लिए जंगल गया था उसे सांप ने काट लिया और मौके पर ही उसकी मौत हो गयी। इस हादसे के बाद गाँव वालों के मन में अब जान का खतरा भी बना हुआ है, लेकिन फिर भी ये लोग अपनी जान पर खेलकर रोज़ाना जंगलों की ओर जाते हैं। रौशनी का कहना है कि इस घटना के बाद भी प्रशासन ने इस मामले की ओर बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया। न ही इन लोगों के पास इतने पैसे हैं कि ये लोग खुद शौचालय बनवा सकें और न ही इनकी मांगें सुनने वाला कोई है।
महिलाएं खेत में शौच जाने के लिए मजबूर-
वहीँ चित्रकूट ज़िले के गाँव हर्दी कला के मजरा डीह पुरवा में भी लोग शौचालय न बनने से परेशान हैं। इसी गाँव की रहने वाली दुर्गा वती, सूरजकली, आशा, विद्यावती ,मनीषा बताती हैं कि वो लोग शौच के लिए खेतों में जाया करती थीं, लेकिन फिलहाल खेतों में फसलें बोई गई हैं और कोई भी किसान अपने खेत में शौच नहीं करने देता। ये महिलाएं शौच जैसी महत्वपूर्ण और स्वाभाविक चीज़ के लिए एक खेत से दूसरे खेत चक्कर लगाती हैं। इनकी परेशानियों की सीमा तो तब पार हो जाती है जब बरसात के मौसम खेतों से लेकर जंगलों में पानी भरा होता है।
इन महिलाओं ने हमें बताया कि उनकी बस्ती में करीब सौ घर ऐसे हैं जहाँ शौचालय नहीं है। उन्होंने बताया कि पिछले प्रधान ने शैचालय का काम तो शुरू करवाया था लेकिन ये काम आजतक पूरा नहीं हुआ। इन आधे-अधूरे शौचालयों में न ही छत बनी है और न ही दरवाज़ा लगा है।
नाम के लिए घरों में खड़े हैं आधे-अधूरे शौचालय-
ये सभी ग्रामीण आधे-अधूरे शौचलयों के बनने से काफी गुस्से में हैं। इन लोगों की मानें तो ऐसे शौचालय का क्या ही फायदा जिसका लोग इस्तेमाल ही नहीं कर सकते। इन लोगों का कहना है कि गाँवों के विकास के लिए सिर्फ योजनाएं तैयार की जाती हैं, लेकिन जब बात उन योजनाओं को सुचारू रूप से आम जनता को पहुंचाने की आती है तो प्रशासन भी पीछे हट जाता है। इन गरीब और अनपढ़ लोगों की गुहार सुनने वाला कोई भी नहीं है। ये गरीब परिवार अब चाहते हैं कि इन्हें जल्द से जल्द शौचलय की दूसरी क़िस्त भी मिल जाए ताकि ये लोग बाकी का काम पूरा करवा पाएं।
जल्द ही योग्य परिवारों को मिलेंगे शौचालय-
हर्दी कला गाँव के नए प्रधान का कहना है कि उनके गाँव में जिन लोगों को अभी तक शौचलय नहीं मिला है, वो ये सुनिश्चित करेंगे कि सभी को शौचालय मिले। उन्होंने बताया कि यहाँ कई मजरों में अभी परिवारों को शैचालय नहीं मिला है, लेकिन बजट आते ही वो सर्वे करवाएंगे और योग्य परिवारों को शौचालय दिलवाएंगे।
वहीँ सचिव रामकुमार का कहना है कि हर गाँव में परिवारों को शौचालय बनवाने की क़िस्त दी गई थी लेकिन मजरों के अंतर्गत आने वाले घरों में अभी शौचालय बनना बाकी है। उन्होंने बताया कि जिस-जिस मजरे में लोगों को शौचालय नहीं मिले हैं, उसकी ज़िम्मेदारी भी पूर्व प्रधान की थी। लेकिन अब क्यूंकि प्रधान बदले हैं, इसलिए वापस से जांच करवा कर सभी को शौचालय दिलवाने का काम शुरू किया जाएगा। इसके अलावा उन्होंने बताया कि गावों में सामुदायिक शौचालय भी बनवाये गए थे, जिसका इस्तेमाल सभी ग्रामीण कर सकते हैं।
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इस खबर को खबर लहरिया के लिए सुनीता द्वारा रिपोर्ट किया गया है।