गाड़ियों के नंबर प्लेट बनाने का काम अधिकृत कंपनियों को दिए जाने की वजह से लोगों से उनका सालों का रोज़गार छिन गया है।
सरकार भारत को डिजिटल बनाना चाहती है। वहीं आधुनिकता की जड़े मज़बूत करने के बीच कई लोगों से उनका रोज़गार छिन गया। हालाँकि, देश में रोज़गार की समस्या सबसे बड़ा मुद्दा है। एक तरफ विकास के नाम पर डिजिटल युग को स्थापित करने की बात की जा रही हैं। वहीं दूसरी तरफ लोगों से उनकी जीविका के साधन को भी छीना जा रहा है।
यूपी के चित्रकूट में भी लोग रोज़गार और डिजिटल चीज़ें होने की वजह से बहुत-सी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। खबर लहरिया द्वारा जिले में रोज़गार को लेकर रिपोर्ट की गयी। जिसमें यह सामने आया कि बहुत से लोग गाड़ियों के नंबर प्लेट बनाने का काम करते थे। लेकिन जब इस काम को भी डिजिटल बना दिया गया तो उनसे उनका रोज़गार छिन गया।
लोगों का ठप्प हुआ रोज़गार
जानकारी के अनुसार चित्रकूट जिले के कर्वी ब्लॉक में 20 से 25 लोग ऐसे हैं। जो गाड़ियों के नंबर प्लेट बनाने का काम करते हैं। कोई बीस साल, कोई दस, आठ तो कोई चार सालों से यही काम कर रहा है।
दिलीप का कहना है कि वह लगभग 28 सालों से नंबर प्लेट बनाने का काम करते आ रहे हैं। वह चार पहिया, दो पहिया, बस, ट्रक आदि सभी गाड़ियों के नंबर प्लेट बनाते थे। प्लेट पर कुछ लिखना, स्टीकर का काम हो तो वह भी वह करते थे। इसके साथ ही लोग उनसे गाड़ी से जुड़ी हुई अन्य चीज़ें भी खरीदते थे। जिससे की उनकी अच्छी सेल हो जाती थी।
उनका कहना है कि जब से यह काम परिवहन विभाग को सौंप दिया गया। तब से वह बेरोज़गार हो गए हैं। सिर्फ दुकान में बैठे ग्राहक का इंतज़ार करते रहते हैं कि शायद कोई ग्राहक आ जाए। वह कहते हैं कि उनके जैसे ही अन्य लोगों का भी कारोबार तकरीबन डेढ़ सालों से ठप्प पड़ा हुआ है।
आकाश सोनी का कहना है कि वह नंबर प्लेट बनवाने के लिए सिर्फ 100 से 150 रूपये लेते थे। वहीं परिवहन विभाग वाले इसके लिए 250 रूपये लेते हैं।
नहीं मिलता समय से नंबर प्लेट
मऊ ब्लॉक गाँव बरगढ़ में रहने वाले लोगों को गाड़ी की नंबर प्लेट सही समय पर ना मिलने पर काफी परेशानी हो रही है। सुनीता कहती हैं कि उन्होंने साल 2019 में बाइक खरीदी थी। उनके अनुसार परिवहन विभग का कहना था कि उन्हें ऑनलाइन प्रक्रिया द्वारा नंबर प्लेट मिल जायेगी। लेकिन उन्हें तीन महीने बाद नंबर प्लेट मिली।
वह कहती हैं कि गाड़ी का नंबर प्लेट ना होने की वजह से वह गाड़ी को बाहर लेकर जा भी नहीं पाती थी। कभी ज़्यादा ज़रुरत हो और लेकर चले गए तो 200 रुपयों तक चलान कट जाता था। पहले दुकाने थी तो उनको ज़्यादा परेशानी नहीं होती थी। नंबर प्लेट आसानी से जल्दी बन जाती थीं।
प्रीतम का कहना है कि गाड़ी के नंबर प्लेट के लिए उनका दो महीने बाद नंबर आया था। इससे पहले उन्हें शंकरगढ़ एजेंसी के कई चक्कर भी लगाने पड़े थे।
सिर्फ कंपनियां ही बनाएंगी नंबर प्लेट – जिला परिवहन अधिकारी
जिला परिवहन अधिकारी प्रदीप देशमणि से खबर लहरिया द्वारा नंबर प्लेट को बनाने को लेकर फोन पर बात की गयी। अधिकारी का कहना था कि अब नंबर प्लेट बनाने का काम अधिकृत कंपनियों को सौंप दिया गया है। प्राइवेट दुकाने अब नंबर प्लेट नहीं बना सकती। लोग अपनी सुविधा के अनुसार नंबर प्लेट बनवाने के लिए अपने पास की एजेंसी से सम्पर्क कर सकते हैं।
हालांकि, सरकार द्वारा डिजिटल युग की स्थापना के लिए बहुत से कदम उठाये जा चुके हैं। सभी चीज़ों और प्रक्रियाओं का ऑनलाइन भी कर दिया गया है। लेकिन जिनके पास इंटरनेट की पहुँच नहीं है। ना जानकारी की पहुँच है। वह लोग क्या करेंगे? आधुनिकता की वजह से जिन लोगों ने अपना रोज़गार खो दिया। उन्हें कौन-सा और कब रोज़गार दिया जाएगा?
इस खबर को खबर लहरिया के लिए नाज़नी रिज़वी द्वारा रिपोर्ट किया गया है।