जांजगीर चांपा कुष्ठ निवारण अस्पताल के कार्यकर्ताओं ने बताया कि ब्रिटिश शासन के समय में वह यहां आए थे जब उन्हें कुष्ठ रोग हुआ था। उन्हें उनकी बीमारी के कारण नौकरी से निकाल दिया गया था। हालांकि वे रेलवे कर्मचारी थे इसलिए पेन्शन के माध्यम से अपना जीवन यापन कर रहे थे। लेकिन उन्हें यह चिंता सता रही थी कि जो लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं और जिनके पास आर्थिक संसाधन नहीं हैं, उनका जीवन तो और भी कठिन हो गया होगा।
रिपोर्ट – नाज़नी, लेखन – सुचित्रा
कुष्ठ रोग आज भी हमारे समाज में बड़ी गलतफहमी और भेदभाव का कारण बना हुआ है। कई जगह इसे गाली के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। उदाहरण के लिए आपने सुना होगा कि लोग गुस्से में कह देते हैं कोढ़ फूटे, कोढ़िया या कोढ़ हो जाए। इसका मतलब ये हुआ इस रोग का लोगों की मानसिकता पर भी काफी प्रभाव पड़ा है जो हम समाज में देख सकते हैं। इस तरह के रोग से ग्रसित लोगों को सदियों से समाज से बहिष्कृत ही नहीं यहां तक कि उन्हें अपमानित किया जाता है। उन्हें कई बार हिंसा का शिकार भी बनना पड़ता है। इस रोग को लेकर समाज में फैली ग़लत धारणाओं और भ्रांतियों के कारण कुष्ठ रोगियों को आज भी समानता का अधिकार नहीं मिलता और वे समाज से कटे रहते हैं।
समाजसेवी गोविंद कात्रे ने कुष्ठ रोग के प्रति फैलाई जागरूकता
समाज में इस तरह के रोग के प्रति लोगों का जागरूक होना काफी जरुरी है क्योंकि इस तरह के रोग को कुछ लोग पाप का दोष मानते हैं। कुछ लोग जो अन्धविश्वास में विश्वास रखते हैं उनके लिए ये भूत प्रेत होते हैं इसलिए वे कुष्ठ रोगियों से दूर रहते हैं और अपने बच्चों को भी दूर रखते हैं। लोगों को लगता है यदि वे कुष्ठ रोगियों के संपर्क में आएंगे तो उन्हें भी ये रोग होने की संभावना है पर वास्तव में ऐसा बिल्कुल नहीं है।
इस तरह की समाज में फैली अफवाह और गलतफहमी को दूर करने की जिम्मेदारी समाजसेवी गोविंद कात्रे ने उठाई। गोविन्द कात्रे के जीवन संघर्ष की कहानी सुधीर देव ने अपने शब्दों में बताई। वह साल 2000 से इस संस्था की देखभाल कर रहे हैं। “भारतीय कुष्ठ निवारक संघ” के वे प्रमुख हैं उन्होंने बताया कि गोविंद कात्रे खुद कुष्ठ रोग से संक्रमित थे और यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। कुष्ठ रोग और रोगियों के लिए समाज में जागरूकता फैलाने और उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा में जन्मे समाजसेवी गोविंद कात्रे ने एक पहल की है।
जांजगीर चांपा कुष्ठ निवारण अस्पताल के कार्यकर्ताओं ने बताया कि ब्रिटिश शासन के समय में वह यहां आए थे जब उन्हें कुष्ठ रोग हुआ था। उन्हें उनकी बीमारी के कारण नौकरी से निकाल दिया गया था। हालांकि वे रेलवे कर्मचारी थे इसलिए पेन्शन के माध्यम से अपना जीवन यापन कर रहे थे। लेकिन उन्हें यह चिंता सता रही थी कि जो लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं और जिनके पास आर्थिक संसाधन नहीं हैं, उनका जीवन तो और भी कठिन हो गया होगा।
घर-घर जाकर लोगों को किया जागरूक
गोविंद कात्रे ने कुष्ठ रोगियों के बारे में सोचा और उनके लिए काम करने का संकल्प लिया। उन्होंने घर-घर जाकर लोगों को जागरूक करना शुरू किया। वे नियमित रूप से साइकिल से लोगों के घरों से अनाज इकठ्ठा करते थे ताकि कुष्ठ रोगियों को खाने-पीने की सुविधा मिल सके। कई बार लोग उन्हें उनके हाथों और पैरों की विकृति के कारण भगा देते थे लेकिन गोविंद कात्रे ने कभी हार नहीं मानी।
कुष्ठ रोगियों के लिए खुला अस्पताल
उनकी मेहनत से कुष्ठ रोगियों के लिए एक अस्पताल खोला गया। उनकी मदद करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम शुरू किए गए। गोविंद कात्रे का यह कार्य न केवल समाज में जागरूकता फैलाने के लिए था बल्कि उन्होंने कुष्ठ रोगियों को इलाज, शिक्षा और पुनर्वास के अवसर भी प्रदान किए।
समाज कर देता है कुष्ठ रोगियों को समाज से बहिष्कृत
गोविंद कात्रे के कुष्ठ निवारण अस्पताल में आज भी सैकड़ों कुष्ठ रोगी अपना जीवन बिता रहे हैं। इनमें से कई लोग समाज और परिवार से दूर रह रहे हैं। महादेव, जो जांजगीर चांपा के रहने वाले हैं। इस कुष्ठ निवारण अस्पताल के कैम्पस में 15 साल से रहते हैं। वे इस समय गौशाला का काम देखते हैं। वे बताते हैं कि “पहले हमारे पास करीब 400 लोग थे जिनमें महिला और पुरुष दोनों शामिल थे लेकिन अब 50-60 लोग ही रह गए हैं। अब लोग समझने लगे हैं कि कुष्ठ रोग का इलाज संभव है लेकिन फिर भी समाज पूरी तरह से हमें स्वीकार नहीं करता।”
कुष्ठ रोग होने से पति ने छोड़ा
जानकी बाई साहू, जो भिलाई खंजरी की रहने वाली हैं। छह साल से कुष्ठ रोग से ग्रस्त हैं। उनका कहना है कि “जब मुझे यह बीमारी हुई तो मैंने चांपा में इलाज करवाया। वहीं पता चला कि यहां इलाज की सुविधा है। मेरे पति ने मुझे इसके चलते छोड़ दिया। पहले तो गांव के लोग मुझसे दूरी बनाने लगे और पास बैठने नहीं देते थे। मैं आंगनबाड़ी सहायिका थी इसलिए मैंने खुद यहां रहकर इलाज करवाने का निर्णय लिया। अब मैं 6 साल से यहां रह रही हूं। कभी-कभी गांव जाती हूं लेकिन अब लोग पहले जैसा बुरा व्यवहार नहीं करते। हालांकि यह भी नहीं कह सकती कि समाज पूरी तरह से कुष्ठ रोगियों के प्रति अपनी नफरत छोड़ चुका है। घर में तो नहीं रह सकती लेकिन कभी-कभी गांव जाना हो जाता है और यही मेरे लिए बहुत है।”
कुष्ठ रोग होने पर पति ने की दूसरी शादी
बिंदा बाई बताती हैं कि “मैं सराईपाली के गिंदनी गांव की रहने वाली हूं। मेरी बीमारी ने मुझे परिवार से दूर कर दिया। मेरा बड़ा बेटा 8वीं कक्षा में, बेटी तीसरी कक्षा में और छोटा बेटा दूसरी में पढ़ रहा था। मेरी बीमारी के कारण बच्चों की पढ़ाई रुक गई। दोनों बेटों ने किसी तरह 12वीं तक पढ़ाई की लेकिन बेटी नहीं पढ़ पाई। मेरे पति ने दूसरी शादी कर ली और मुझे यहां भर्ती कर दिया। वे मुझसे घृणा करने लगे और कोई मुझसे बात नहीं करता था। अब जब मैं घर जाती हूं तो उतना भेदभाव नहीं होता। मैं भतीजे की शादी में भी गई। यहां काफी सालों से रह रही हूं, अब कहां जाऊं? अब यही हमारा घर है।”
समाज में भ्रांतियाँ और जागरूकता
कुष्ठ रोग को लेकर समाज में कई भ्रांतियाँ फैली हुई हैं। बहुत से लोग मानते हैं कि यह बीमारी छूने से होती है जबकि यह बिल्कुल गलत है। संत गुरु घासीदास चिकित्सा संस्थान के सीएमओ डॉ. नूपुर दवे ने बताया कि “यह बीमारी छूने से नहीं होती। यह त्वचा के संपर्क में आने से हो सकती है लेकिन इसका संचार नजदीकी संपर्क से होता है। अच्छी इम्यूनिटी और पोषण से इसके जोखिम को कम किया जा सकता है।”
कुष्ठ रोग के लक्षण और बचाव
त्वचा पर हल्के रंग के या लाल रंग के धब्बे
संवेदनशीलता में कमी
आंखों की रोशनी में कमी
हाथ-पैरों में विकृति
अगर आपको इस प्रकार के लक्षण दिखें तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। अगर समय पर इलाज किया जाए तो यह पूरी तरह से ठीक हो सकता है।
कुष्ठ रोग से बचाव
कुष्ठ रोग से बचाव के लिए कुछ टीके उपलब्ध हैं जो इस रोग के खतरे को कम कर सकते हैं। अच्छी सेहत, सही खानपान, और मजबूत इम्यूनिटी से इस रोग से बचाव संभव है।
यदि किसी को कुष्ठ रोग के लक्षण दिखाई दें तो तुरंत इलाज शुरू कर दें और समाज से भेदभाव न करें। हमें कुष्ठ रोगियों से किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करना चाहिए बल्कि उन्हें सहयोग और समर्थन प्रदान करना चाहिए।
कुष्ठ रोग से जुड़े समाज में फैले भेदभाव और भ्रांतियों को खत्म करने के लिए गोविंद कात्रे और उनके जैसे समाजसेवियों का योगदान बेहद महत्वपूर्ण है। कुष्ठ रोग का इलाज अब संभव है और इस पर समाज की गलत धारणाओं को दूर करना चाहिए। समाज को यह समझना होगा कि कुष्ठ रोगी भी इंसान हैं और उन्हें सम्मान और सहानुभूति के साथ जीने का हक है।
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