रिपोर्ट – नाज़नी, लेखन – कुमकुम
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से महज़ कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित गोंडवाना गांव, विकास के तमाम दावों के बीच प्यासा खड़ा है। गर्मी में जलसंकट एक आम चुनौती है। लेकिन यहां समस्या की परतें कहीं गहरी हैं क्योंकि यहां पानी आता तो है पर पूरा नहीं पड़ता। लोग सुबह की कुछ बूंदें भरकर दिनभर की ज़रूरतों के लिए गंदे तालाब का रुख करने को मजबूर हैं।
सप्लाई होती है, मगर नाम मात्र
गांव में जल आपूर्ति की योजना के तहत हर सुबह करीब आधे घंटे के लिए पानी आता है लेकिन यह आपूर्ति न तो हर घर तक पहुंचती है और न ही पर्याप्त होती है। ग्रामीणों के मुताबिक प्रेशर इतना कम होता है कि कई घरों में एक बाल्टी तक भरना मुश्किल हो जाता है।
पानी आता है, मगर कब, कितना और कहां ये तय नहीं
उर्वशी बाई बताती हैं कि सुबह आधा घंटा पानी आता है वो भी इतना कम कि सिर्फ पीने के लिए भर पाते हैं। बाकी के सारे काम नहाना, कपड़े धोना, पड़ता ही है।जब शादियां होती है तो उसके भी बर्तन सब तालाब से धोना पड़ता है। हम जानते हैं वो गंदा पानी है लेकिन करें भी क्या उसी में धोना पड़ता है।
गांव के ही निवासी सुरेश मार्कंडेय बताते हैं कि तालाब का कभी सुंदरीकरण तक नहीं हुआ सफाई भी 15 साल पहले हुई थी। गांव के कुछ लोगों ने तालाब के किनारे घर बना लिए हैं। उनके घरों का गंदा पानी, लैट्रिन पेशाब सीधा तालाब में गिरता है। लोगों ने तालाब में नालियां भी निकाल रखी हैं। आज पूरा तालाब गंदगी से भरा है। तालाब के पास बैठो तो मच्छरों की फौज लग जाती है। हमें पता है कि इस पानी से बीमारियाँ हो सकती हैं जैसे खुजली, बुखार और दूसरी दिक्कतें होती भी हैं पर मजबूरी है इसी पानी को इस्तेमाल करना पड़ता है।
गंदा तालाब आज भी जीवन रेखा
तालाब जो कभी गांव की शान था अब साफ-सफाई न होने के कारण गंदी नालियों के गिरने और कचड़े से भर चुका है। लेकिन महिलाओं और बच्चों को आज भी उसी में उतरना पड़ता है कपड़े धोने, नहाने और कई बार बरतन धोने तक के लिए।
गर्मी में और बढ़ी है परेशानी
इस बार की गर्मी पहले से ज़्यादा तेज है। जलस्तर नीचे जा चुका है और आधे घंटे की जलापूर्ति अब और भी कम महसूस होती है। महिलाएं सुबह पानी भरने की होड़ में लग जाती हैं और जैसे ही प्रेशर खत्म होता है बाल्टियां खाली रह जाती हैं।
गोंडवाना पार्षद, डाक्टर मनमोहन मादरे ने बताया कि तालाब का सुन्दरीकरण के लिए कार्य योजना बना ली हैजब जिला विकास अधिकारी बजट पास करेंगे तब ही तालाब का सुंदरीकरण हो पायेगा। वैसे पानी तो आता है सुबह शाम गर्मी का टाइम है पानी इस्तेमाल भी ज्यादा होता है। शादियां चल रही हैं हो सकता है कि लोग तालाब पर ऐसे ही जा रहें हों कुछ लोगों को तालाब में नहाना अच्छा लगता कुछ शौक में भी जातें हैं।
योजनाएं कागज़ पर, ज़मीन पर अधूरी
छत्तीसगढ़ जल जीवन मिशन का लक्ष्य था कि 2024 तक हर घर तक नल से जल पहुंचे। रायपुर जिले में अब भी 50% से अधिक ग्रामीण घरों तक यह सुविधा या तो पहुंची ही नहीं या बहुत कमजोर है। यही हाल है गोंडवाना जैसे गांवों में योजना लागू तो हुई। मगर प्रभावी नहीं बन पाई। आज लोग अगर प्यासे हैं तो क्या फायदा ऐसी योजनाओं का जो कागज और जमीन हकीकत अलग अलग होती है ।
सुरेश की बात गोंडवाना गांव की जमीनी सच्चाई को सामने लाती है। जहां एक तरफ सरकारी योजनाओं में तालाबों के सुंदरीकरण और संरक्षण पर लाखों रुपए खर्च किए जाने के दावे किए जाते हैं तो वहीं गोंडवाना जैसे गांव में 15 साल से सफाई तक नहीं हुई है।
तालाब पर अवैध कब्जे ने न केवल इसके प्राकृतिक स्वरूप को नष्ट कर दिया है बल्कि इसकी गुणवत्ता भी खत्म कर दी है। अब यह तालाब पानी का स्रोत कम और बीमारियों का अड्डा ज़्यादा बन चुका है।
तालाब के किनारे बनी अवैध बस्तियों से निकलने वाला गंदा पानी और सीवेज सीधा तालाब में गिरता है। नतीजा यह है कि तालाब का पानी पीने या छूने से ही संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। इसके बावजूद, पानी की वैकल्पिक व्यवस्था न होने के कारण ग्रामीणों को इसी गंदे पानी का उपयोग करना पड़ रहा है।
यह रिपोर्ट बताती है कि राजधानी से सटा गांव भी अगर जल संकट से जूझ रहा है तो छत्तीसगढ़ के दूरदराज़ के सैकड़ों गांवों में हालात कितने भयावह होंगे। गोंडवाना इस सवाल का प्रतीक बन चुका है। क्या हर घर नल से जल सिर्फ एक चुनावी नारा बनकर रह जाएगा।