महुआ बुंदेलखंड में आजीविका का एक बड़ा साधन बन चुका है। अप्रैल-मई के महीने में बुंदेलखंड में ज़्यादातर गरीब परिवार महुआ बीन कर उसे बेचना शुरू कर देते हैं। महुआ बीनना भी आसान नहीं होता है, जिसने सुबह-सुबह जल्दी पहुँच कर समय पर महुआ बीन लिया उस दिन सिर्फ उसी परिवार के घर पर चूल्हा जल पाता है।
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छतरपुर जिले के कई ऐसे गांव हैं जहां पर लोग मेहनत मजदूरी करते हैं लेकिन इस टाइम महंगाई इतनी है कि उनको काम नहीं मिलता। छतरपुर की महिलाएं सड़क के किनारे जो महुआ की पेड़ लगे होते हैं वहां वे सुबह से अपने बच्चों को लेकर महुआ बीनने के लिए निकल जाती हैं, और दिन भर में 5-6 किलो महुआ बेचकर उसको बेचती हैं और अपने बच्चों का भरण पोषण करती हैं।
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कई महिलाओं का कहना है कि जिस तरह से महंगाई बढ़ गई है हम लोग अनाज नहीं खरीद पाते तो फिर इसी महुआ की खीर बनाकर बच्चों का पेट भर देते हैं।
छोटे-छोटे बच्चे जिनकी उम्र अभी पढ़ाई-लिखाई करने की है, वो भी महुआ बेच कर अपने घर का खर्चा चला रहे हैं।
छतरपुर के कई परिवारों के लिए महुआ एक सीज़नल रोज़गार है, महुआ का सीज़न ख़तम होने के बाद ये लोग पैसे कमाने के लिए नए काम की तलाश में निकल पड़ेंगे।
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