छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा परसा कोल ब्लॉक एक्सटेंशन के तहत कोयला खनन के लिए करोड़ो पेड़ काटने का आदेश पारित किया गया। यहां के ग्रामीणों द्वारा सरकार के इस फैसले का विरोध किया जा रहा है।
जंगल परिवार की तरह होते हैं। घर न हो तो सिर पर छत, पेट के लिए भोजन और बाहें फैलाये अपनी गोद में व्यक्ति को सुकूं की नींद देते हैं। वहीं छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य में रहने वाले ग्रामीणों को उनके परिवार से अलग करने का फैसला सुना दिया। वह ग्रामीण जिनका बचपन जंगल में पला-बड़ा। जिसनें उसी जंगल में अपनी जवानी और बुढ़ापा देखा। आज इन जंगलों, माफ कीजिये ग्रामीणों के इस परिवार, उनकी यादों को, उनके बिताये समय को सरकार के आदेश पर परसा कोल ब्लॉक एक्सटेंशन के तहत काटा जा रहा है। कई सालों से यहां के ग्रामीण जंगल को बचाने के लिए लड़ते आ रहे हैं लेकिन सरकार के फैसले के बाद अब उनकी सारी उम्मीदें बिखर-सी गयीं हैं। लेकिन यह हिम्मत नहीं हारें हैं। आखिर कोई अपने परिवार, अपनी यादों के लिए लड़ना छोड़ सकता है क्या? नहीं न ?
ग्रामीण मज़बूरन,अपनी पलकों पर यादों के आंसू भर, अपने जंगल, अपने परिवार को अलविदा कह रहें हैं पर यह भी उम्मीद कर रहें कि शायद उनका परिवार बच जाए। उनकी यादें न बिसरे।
तस्वीरों में जब ग्रामीणों को पेड़ से लिपटकर उन्हें आखिरी बार गले लगाते देखा तो मानों ऐसा लग रहा था कि कुछ बेहद कीमती हाथों से छूटा जा रहा है, जिसे बचाने की कोशिश बहुत समय से लोग कर रहे थे। मैं सोचती हूँ कि जिसे छोड़ना नहीं चाहते और फिर भी छोड़ना पड़े, यह दर्द कौन समझ सकता है? कहतें हैं यादों के मर जाने से व्यक्ति का भी अस्तित्व नहीं रह जाता। यह कौन समझ सकता है? शायद कोई भी तो नहीं। उनके जैसा तो कोई नहीं, शायद!!
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पेड़ों की कटाई रोकने के लिए जंगल में डाला डेरा
नईदुनिया की 27 अप्रैल की रिपोर्ट में बताया गया, जैसे ही सरगुजा जिले के उदयपुर में परसा कोल ब्लॉक एक्सटेंशन के लिए पेड़ों की कटाई शुरू हुई, वैसे ही ग्रामीणों का विरोध तेज़ हो गया। मंगलवार, 26 अप्रैल की सुबह सरगुजा से लगे सूरजपुर जिले के जनार्दनपुर में पेड़ों की कटाई शुरू की गई थी। सुबह जैसे ही ग्रामीणों को इस बारे में पता चला तो वह विरोध करने पहुँच गए। स्थिति को देखते हुए वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी मौके से लौट गए। इसके बाद कटाई के स्थान पर भारी संख्या में पुलिस बल को तैनात कर दिया गया।
वहीं दूसरी तरफ कोल प्रभावित ग्राम साल्ही, जनार्दनपुर में वन अमला द्वारा पेड़ों की कटाई का काम मंगलवार, 26 अप्रैल को शुरू कर दिया गया था। जिसका ग्राम साल्ही , हरिहरपुर और फतेहपुर के ग्रामीणों ने जमकर विरोध किया और इसके बाद पेड़ों की कटाई का काम रोक दिया गया। ग्रामीणों द्वारा लगातार पेड़ों की कटाई का विरोध और धरना प्रदर्शन किया जा रहा है।
इसके अलावा 26 अप्रैल के दिन सूरजपुर जिले में आने वाले ग्राम जनार्दनपुर में और हसदेव अरण्य क्षेत्र में परसा ईस्ट केते बासेन कोल ब्लॉक के लिए रातों रात सैकड़ों की संख्या में पेड़ों को काट दिया गया। अगले दिन जब ग्रामीणों की नींद खुली तो जंगल साफ़ हो चुका था। रात में पेड़ों की कटाई होने के बाद पेड़ों की सुरक्षा के लिए ग्रामीणों ने जंगल में ही डेरा डाल लिया।
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300 पेड़ों की हो चुकी कटाई
रामानुजनगर वन परिक्षेत्राधिकारी के आरसी प्रजापति ने बताया कि मंगलवार, 26 अप्रैल को लगभग 300 पेड़ों की कटाई की गई है। ग्रामीणों द्वारा विरोध किये जाने के बाद पेड़ों की कटाई का काम फिलहाल बन्द किया गया है। मशीनों से पेड़ काटे जा रहे हैं। अभी तक कुल 1586 पेड़ों को काटे जाने की बात भी वनपरिक्षेत्राधिकारी द्वारा बताई गई है। उन्होंने कहा कि उच्चाधिकारियों से निर्देश प्राप्त होने के बाद आगे की कार्यवाही की जाएगी। (नईदुनिया की 27 अप्रैल की प्रकाशित रिपोर्ट )
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सालों से परसा-ईस्ट-केते-बासेन कोल ब्लॉक का विरोध कर रहें ग्रामीण
परसा-ईस्ट-केते-बासेन कोल ब्लॉक का विरोध ग्रामीण साल 2019 से करते आ रहे हैं। 2711 हेक्टेयर के इस कोल ब्लॉक एक्सटेंशन में 1898 हेक्टेयर ज़मीन जंगल की है। बाकी 812 हेक्टेयर ज़मीन में 3 गांव के ग्रामीणों की भूमि एवं सरकारी ज़मीन शामिल हैं। राजस्थान के विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को आवंटित परसा कोल ब्लॉक के डेवलेपमेंट एवं माइनिंग का ठेका अडानी इंटरप्राइसेस के हाथों में है।
पहले चरण में परसा कोल ब्लाक के 1252 हेक्टेयर क्षेत्र से कोयला खनन की अनुमति दी गई थी। इसमें 841 हेक्टेयर जंगल की ज़मीन और 365 हेक्टेयर ज़मीन कृषि ग्रामीण इलाके की व 45 हेक्टेयर ज़मीन सरकारी थी। इस ब्लॉक में खनन की निर्धारित समय सीमा साल 2027 थी, जहां 5 साल पहले ही यानि साल 2022 में ही कोल खनन कर लिया गया है।
2711 हेक्टेयर क्षेत्र में कोल खनन की मिली मंज़ूरी
दूसरे चरण में परसा ईस्ट-केते-बासेन कोल ब्लॉक में कुल 2711 हेक्टेयर क्षेत्र में कोल खनन की मंजूरी दी गई है। इसमें 1898 हेक्टेयर भूमि वनक्षेत्र और 812 हेक्टेयर भूमि गैर वन क्षेत्र की है। कोयला खनन के दौरान परसा, हरिहरपुर, फतेहपुर व घाटबर्रा के ग्रामीणों की कृषि भूमि, मकान और गाँव भी चपेट में आएंगे।
यह पूरा इलाका जंगल से घिरा हुआ है। यहां के ग्रामीणों का हमेशा जंगलों से जुड़ा रहा है। जंगल में मौजूद महुआ, साल, बीज, दवाइयों से भरपूर चीज़ें यहां के ग्रामीणों को मिलती रहीं हैं। जानकारी के अनुसार, छत्तीसगढ़ सरकार ने राजस्थान में कोयले के संकट का हवाला देकर उत्खनन को मंजूरी दी।
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85% ग्रामीणों ने नहीं लिया है मुआवजा
लाइव हिंदुस्तान की 23 अप्रैल 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, अधिग्रहण से मिलने वाले मुआवज़े को केवल 15 फीसदी लोगों द्वारा ही लिया गया है। हसदेव क्षेत्र बचाओ आंदोलन से जुड़े आलोक शुक्ला ने बताया कि बाकी लोगों ने यह मानकर मुआवजा नहीं लिया है कि वे अपनी जमीनों के साथ जंगलों को भी बचा लेंगे।
एक उम्मीद ही तो होती है जो जीने और लड़ने को हौसला देती है। छत्तीसगढ़ सरकार ने तो पेड़ों को काटने का फैसला सुना दिया लेकिन यहां के ग्रामीणों ने अभी भी हार नहीं मानी है। वह जंगल, अपनी यादों को बचाने की उम्मीद में यह लड़ाई रहें हैं, लड़ते आ रहें हैं। आगे समय आने पर भी लड़ेंगे।
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