भीम आर्मी के मुख्या चन्द्रशेखर आजाद को 16 महीने बाद जेल से मिली रिहा के बाद चन्द्रशेखर चर्चो में एक बार फिर छा गए। चन्द्रशेखर का नाम पिछले दिनों सहारनपुर जिले में भड़की जातीय हिंसा के बाद अखबारों में छाया। उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार ने लम्बे समय तक जेल में रखा, लेकिन उनके समर्थकों के बीच से लगातार रिहाई की मांग हो रही थी। अब हुई रिहाई ने राजनीति दलों के बीच परेशानी बढ़ा दी है।
हाल ही में, दलित राजनीति की पहचान मायावती को अपनी राजनीति के लिए चन्द्रशेखर खतरा लग रहे हैं। जिस ही कारण मायावती महागठबंध का हिस्सा बनने से हिचक रही है। वहीं कांग्रेस की योजना दलित-मुस्लिम जोड़ के साथ भाजपा को लोकसभा में हराना है। चन्द्रशेखर ने रिहाई के बाद राजनीति में आने के संकेत जरूर नहीं दिए, पर अपने नाम से रावण हटाने की अपील भविष्य के लिए कुछ और ही संकेत दे रही है।
राष्ट्रीय स्वराज पैंथर, बांदा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुन्ना लाल का भी इस यही कहना है कि समय से दो महीने पहले रिहाई कहीं न कहीं ये सोच पैदा कर रही हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार चन्द्रशेखर को राजनीतिक पूर्ति के लिए समय से पहले रिहा कर दिया है।
चित्रकूट की समाजसेवी मीरा भारती भी चन्द्रशेखर को दलित राजनीति का नायक बता रही है। चित्रकूट के समाजसेवक कैलाश बौध भी चन्द्रशेखर को असली हीरो कहते हैं, वह चन्द्रशेखर को दलित राजनीति की नई उम्मीद भी बता रहे हैं, क्योंकि मायवती की राजनीति की चमक पिछले 10 सालों से कुछ फिकी पड़ती दिख रही है।
वहीं देश में समाजसेवियों की हाल के दिनों में होने वाली कार्रवाई को ध्यान में रखते हुए चित्रकूट के गणेश शंकर कहते हैं कि किसी पर भी रासुका लगाकर अन्दर कर दिया जाता है। वह इस रिहाई को एक साजिश के तौर किया गया काम मानते हैं।
छतरपुर से भीम आर्मी के कार्यकर्त्ता अशोक कुमार कहते हैं कि चन्द्रशेखर को झूठे केस में 15 महीने के लिए अन्दर रखा फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट से आरोप झूठे होने के बाद भी सरकार ने इन्हें लोक सभा के उपचुनाव को देखते हुए अन्दर ही रखा।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि चन्द्रशेखर को जेल में रखना कहीं न कहीं भाजपा की मुश्किल बढ़ा रहा था, जिस कारण ही चन्द्रशेखर को समय से पहले रिहाई मिली। लेकिन भाजपा इस रिहाई से भविष्य में लाभ ले पाएगी ये लोकसभा चुनाव में दलित रुझान ही बताएगा।
-अलका मनराल