25 साल के आरिफ ने कहा, “यहां कम से कम हज़ार कब्रें थी जिसे तोड़कर पूरी जगह को प्लेन कर दिया गया। इसके बगल में ही रज़िया सुलतान के समय का ‘ईदगाह’ है। हमारे बड़े-बुज़ुर्ग भी इसी में दफनाए गए हैं। हमारे पापा जो एक्सपायर हो गए हैं, वो भी इसी ईदगाह में है। दादा भी, दादी भी, हमारे मोहल्ले के सभी महरूम यहीं दफनाए गए हैं।”
रिपोर्टिंग व लेखन – संध्या
कल शाम, 12वीं सदी के बाबा हाजी रोजबीह (shrine of Haji Rozbih) व उनकी शागिर्द की कब्र को भी दिल्ली विकास प्राधिकरण (Delhi Development Authority) द्वारा ‘अतिक्रमण’ के नाम पर तोड़ दिया गया- जो महरौली के संजय वन में स्थित थी। इससे पहले 30 जनवरी को, 700-800 साल पुरानी अखूंदजी मस्जिद (Mosque of Akhoondji), मदरसा बेहरुल उलूम मस्जिद अखून्द जी (Madarsa bahrul Uloom Masjid Akhund Ji) व हज़ारों कब्रों को तोड़ा गया था।
इतिहासकार राना सफ़वी ने खबर लहरिया को बताया, “ये सब पुराने पुराने मोनुमेंट्स हैं जो कि 600 से 800 साल पुराने हैं तो फिर ऐसे में अतिक्रमण का सवाल ही नहीं उठता। हर एक डॉक्यूमेंटेशन मौजूद है। हाजी रोजबीह की कब्र के बारे में भी लिखा गया है। 1990 में अखूंदजी मस्जिद को भी डॉक्यूमेंट किया गया था। सब डॉक्युमेंटेड जगहें हैं।”
हाई कोर्ट ने इसे लेकर डीडीए को एक हफ्ते के अंदर जवाब देने को कहा है और अगली सुनवाई 12 फरवरी को होनी है।
इन सबमें सबसे अहम सवाल जो मुख्य रूप से सामने आता है, आखिर 12वीं-13वीं शताब्दी में बने कब्र, मस्जिद या मदरसे आज ‘अतिक्रमण’ कैसे हो सकते हैं?
जो मलवा था, वो भी ले गए
डीडीए द्वारा ‘अतिक्रमण’ के नाम पर इतिहास, इतिहास से जुड़े लोगों का अस्तित्व मिटाया जा रहा है।
खबर लहरिया से बात करते हुए 21 साल के मोहम्मद अमान ने कहा,
“सभी पुराने मजारों को तोड़ दिया गया। वहां मालवा था, वो भी ले गए। खंभे और मस्जिद के ऊपर जो मीनार होती है वो भी ले गए कि ये दिखे कि यहां कभी कोई मस्जिद थी ही नहीं।”
आगे कहा,“जिस दिन लोग मदरसे आये, वहां मौजूदा लोगों ने उनसे कहा कि हमें सामान निकालने दो, उन्होंने कहा हम मस्जिद शहीद नहीं करेंगे और उन्होंने सबसे पहले मस्जिद ही शहीद की।”
जिस जगह को डीडीए द्वारा नेस्तनाबूत किया गया वो भी ऐसे कि उसका हिस्सा भी ज़मीन की चादर पर न दिखे, उसे इतिहास, उस समय काल व उससे जुड़े लोगों को मिटाना न कहा जाए तो क्या कहा जाए?
यह देश इतिहास और उसके संरक्षण का ही रूप है, जिसकी इमारतें, जिसके निशान अब मिटाये जा रहे हैं।
स्थानीय लोगों ने हमें बताया, जिस दिन डीडीए द्वारा सब तोड़ा गया है, उस दिन लगभग 500 की फ़ोर्स तैनात थी। इसके बाद से किसी को भी अंदर नहीं जाने दिया जा रहा है। स्थानीय लोग जिनके घर उस रास्ते में पड़ते हैं, उन्हें भी घूमकर जाने को कहा जा रहा है।
इस समय भी क्षेत्र में पुलिस बल तैनात है व लोगों को रोकने के लिए बैरिकेड लगाए हुए हैं।
लोग शांत है। अब कोई कुछ नहीं बोल रहा। सबने अपना दर्द छुपाया हुआ है।
“हमारे कुरान अभी भी मलवे में दबे हुए हैं”
20 साल के आरिश अब्बासी ने खबर लहरिया को बताया, “न हमें कोई नोटिस दिया, न कोई आर्डर दिया। रात को चोरों की तरह चोरी-चुपके से आये और तोड़ दिया। उस दिन से हमें अंदर नहीं जाने दिया। मस्जिदें भी तोड़ दीं, सारे कब्रिस्तान को तोड़ दिया, सारी कब्रे खुली हुई हैं।
यहां तक की हमें मस्जिद के अंदर रखी ‘कुरान’ को बाहर निकालने तक के लिए 10 मिनट का समय नहीं दिया गया। हमारे कुरान अभी भी मलवे में दबे हुए हैं। अभी तक वो बाहर नहीं निकले।”
“कब्रें तोड़कर सब समतल कर दिया”
25 साल के आरिफ ने कहा, “यहां कम से कम हज़ार कब्रें थी जिसे तोड़कर पूरी जगह को प्लेन कर दिया गया। इसके बगल में ही रज़िया सुलतान के समय का ‘ईदगाह’ है। हमारे बड़े-बुज़ुर्ग भी इसी में दफनाए गए हैं। हमारे पापा जो एक्सपायर हो गए हैं, वो भी इसी ईदगाह में है। दादा भी, दादी भी, हमारे मोहल्ले के सभी महरूम भी यहीं दफनाए गए हैं।
हमें तो दुःख होगा ही कि हमारे बाप-दादा की कब्रों को उखाड़ दिया गया तो हमारे दिल पर क्या बीतेगी।
“हमने यह भी कहा कि हमें टाइम दो थोड़ा देखने के लिए हम देख लें, वहां क्या हो रहा है, कुत्ते खा रहे हैं, या कुछ जंगली है या क्या हो रहा है, यहां लोमड़ी भी है लेकिन हमें देखने नहीं दिया जा रहा है।”
आगे कहा कि बचपन से वह ईदगाह में पढ़ने के लिए आते थे और जो मदरसा है वहां पांच वक्त की नमाज़ होती है। मदरसे में बच्चे यूपी-बिहार से पढ़ने आये हुए थे। 25 बच्चे थे पढ़ने के लिए जिन्हें इंग्लिश, हिंदी, उर्दू पढ़ाया जाता था। मदरसे के टूटने के बाद अब शायद वो किसी और मदरसे में चले गए होंगे।
“दुकान तो ऐसे ही तोड़वा दिया”
70 वर्षीय रामचंद्र, तोड़ी गई मस्जिद से कुछ मीटर की दूर ही अपनी दुकान लगाते थे। डीडीए द्वारा मस्जिद व मदरसा तोड़ने के दौरान उनकी दुकान व वहां साथ में बने मंदिर को भी तोड़ दिया गया। उन्होंने कहा, “‘दुकान तो ऐसे ही तोड़वा दिया है। उधर से आया और ये भी तोड़कर चला गया।’ तोड़ने को लेकर उन्हें कोई नोटिस नहीं मिला, न ही दिया गया।
वह लगभग 10-15 सालों से वहां दुकान लगा रहे थे। डीडीए द्वारा दुकान तोड़े जाने के बाद से उन्होंने अपना सारा सामन फिलहाल वहीं सड़क किनारे रखा हुआ है अगर वैसे ही कुछ बिक जाए तो।
इतिहास और दस्तावेज़
30 जनवरी को, दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने आरक्षित वन क्षेत्र संजय वन में अखूंदजी मस्जिद और एक मदरसे को “अवैध संरचना” बताते हुए तोड़ दिया। डीडीए ने कहा, “धार्मिक प्रकृति की अवैध संरचनाओं को हटाने की मंजूरी धार्मिक समिति द्वारा दी गई थी, जिसकी जानकारी 27 जनवरी की बैठक में दी गई थी।”
31 जनवरी को, दिल्ली उच्च न्यायालय ने डीडीए से स्पष्टीकरण मांगा कि उसने किस आधार पर मस्जिद को ध्वस्त किया, और “क्या विध्वंस कार्रवाई करने से पहले कोई पूर्व सूचना दी गई थी”।
संजय वन पर डीडीए के दस्तावेज़ों के अनुसार, “संजय वन दिल्ली के महरौली/दक्षिण मध्य रिज का एक हिस्सा है… इस विरासत को हरित बेल्ट में संरक्षित करने और विकसित करने के लिए, 70 के दशक में डीडीए ने 784 एकड़ के इस क्षेत्र की नक्काशी की, जिसे अब संजय वन कहा जाता है। … कोई अरुणा आसफ अली मार्ग से या कुतुब संस्थागत क्षेत्र से संजय वन (भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 4 के तहत 1994 की अधिसूचना के अनुसार एक अधिसूचित आरक्षित वन) तक पहुंच सकता है…”
– बाबा हाजी रोज़बीह व उनकी शागिर्द बीबी (shrine of Haji Rozbih)
इतिहासकार राना सफ़वी ने अपने X अकाउंट पर लिखा, हाजी रोज़बीह दिल्ली में प्रवेश करने वाले पहले सूफ़ी संतों में से एक हैं। उनकी कब्र किला राय पिथौरा के फतेह बुर्ज के पास है या यूं कहें कि था। 2013 में मैंने इसका वर्णन किया था: “यह एक साधारण, खुली हवा वाली, सफेदी से पुती हुई प्लास्टर की कब्र है। ऐसा माना जाता है कि हाजी रोज़बीह किले की खाई के पास एक गुफा में रहते थे और उनकी शिक्षाओं और प्रेरक सज्जनता ने कई शिष्यों को आकर्षित किया। उनके कब्र के बगल में बीबी (Bibi) की कब्र है और माना जाता है कि वह पृथ्वीराज चौहान की एक महिला रिश्तेदार थीं, जो हाजी रोज़बीह की शिष्या बन गईं।
मौलवी जफर हसन द्वारा संकलित एएसआई की 1922 की स्मारकों की सूची में बाबा हाजी रोजबीह के बारे में ज़िक्र किया गया है।
एएसआई (दिल्ली सर्कल) के अधीक्षण पुरातत्वविद् प्रवीण सिंह ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि कब्र एएसआई के तहत संरक्षित स्मारकों की सूची का हिस्सा नहीं थी। “यह सूचीबद्ध नहीं है।” कहा, विध्वंस से पहले डीडीए या किसी अन्य निकाय ने हमसे संपर्क नहीं किया गया था।
– अखूंदजी मस्जिद (Mosque of Akhoondji)
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट के पेज नंबर 135 के अनुसार, अखूंदजी मस्जिद के 1270 A.H (1853-4 A. D) में मरम्मत होने की जानकारी है। यह एक पुराने ईदगाह के पश्चिम में स्थित है जो “1398 ईस्वी में जब तैमूर ने भारत पर आक्रमण किया था तब अस्तित्व में था”। मस्जिद कब बनी, इसकी तारीख के बारे में किसी को नहीं पता।
1922 में प्रकाशित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सहायक अधीक्षक मौलवी जफर हसन द्वारा लिखित ‘List of Muhammadan and Hindu Monuments, Volume III‘ में भी मस्जिद का ज़िक्र है।
इतिहासकारों और कार्यकर्ताओं का कहना है कि संजय वन को 1994 में ही आरक्षित वन क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया गया था, तो पुरानी मस्जिद अतिक्रमण कैसे हो सकती है। जब दस्तावेज़ भी इसकी गवाही दे रहे हैं तो डीडीए द्वारा ‘अतिक्रमण’ के नाम पर ध्वस्त किया जा रहा इतिहास क्या अपराध के घेरे में नहीं आता? अब ऐसा प्रतीत होता है, ‘सब अवैध हो गया है….. इतिहास भी और उसका संरक्षण भी!’
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