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विश्वभर में पत्रकारों की हत्याओं के मामले हुए दोगुना, सच की कीमत सिर्फ मौत

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विश्वभर में पत्रकारों पर होने वाले हमले इस साल पिछले कई सालों के मुकाबले दोगुना बढ़े हैं। वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि पत्रकारिता के ज़रिए बाहर आने वाला सच बहुतसी आँखों को रास नहीं आता। 

कमिटी टू प्रोटेक्ट जॉर्नलिस्ट की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार विश्वभर में पत्रकारों की मौत के मामलों में भारत आठवें नंबर पर है। जिसके अनुसार पत्रकारों की हत्या उनके काम करने की वजह से की गयी है। 

रिपोर्ट कहती है कि कम से कम 1,395 पत्रकारों की हत्या 1 जनवरी 1992 से 15 दिसंबर 2020 के बीच की गयी है। वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि वह पत्रकारिता कर रहे थे, अपना काम कर रहे थे। दिए गए आंकड़ो में से 30 पत्रकारों को इस साल 2020 में मारा गया है। जिसमें 21 हत्याएं सीधे तौर पर पत्रकारों के काम से जुड़ी हुई थी। अभी कमिटी टू प्रोटेक्ट जॉर्नलिस्ट संगठन विश्वभर में हुए 15 पत्रकारों की हत्याओं को लेकर जांच कर रही है कि कहीं उनकी हत्या के पीछे की वजह उनकी पत्रकारिता तो नहीं। 

पत्रकारों की हत्या के मामलों में यह देश हैं सबसे आगे

मेक्सिको, सीरिया, अफ़ग़ानिस्तान और फिलीपींस पत्रकारों की हत्याओं के मामले में सबसे आगे है। फर्स्ट पोस्ट की 22 दिसंबर 2020 की रिपोर्ट में बताया गया कि सशस्त्र लड़ाई और सामूहिक हिंसा के मामले में मेक्सिको और अफ़ग़ानिस्तान विश्वभर में पत्रकारों के लिए सबसे ज़्यादा खरनाक है। 

विश्वभर में पत्रकारों की गयी हत्या के आंकड़े

देश     पत्रकारों की मौत की पुष्टि

मेक्सिको              – 5

सीरिया                 – 4

अफगानिस्तान     – 4

फिलीपींस             – 3

होंडुरस                 – 2

इराक़                   – 2

भारत                   – 2

सोमालिया             – 1

बारबाडोस              -1

बांग्लादेश               -1

कोलंबिया              – 1

परागुए                  – 1

येमेन                    – 1

नाइजीरिया           -1

ईरान                    – 1

भारत में पत्रकारों की हत्या के मामले

कमिटी टू प्रोटेक्ट जॉर्नलिस्ट की 2020 की रिपोर्ट में भारत के 2 पत्रकारों की हत्या के मामले को दर्ज़ किया गया है। जिनकी पत्रकारिता करने की वजह से हत्या की गयी थी। प्रिंट की 22 दिसंबर 2020 की रिपोर्ट में बताया गया कि उत्तरप्रदेश के दो पत्रकार राकेश सिंह और शुभममणि त्रिपाठी की हत्या उनके काम के वजह से की गयी। 

पत्रकार राकेश सिंह

यूपी के बलरामपुर में 27 नवंबर 2020 को  कोतवाली देहात के ग्राम कलवारी में रहने वाले पत्रकार राकेश सिंह और उसके साथी पिंटू साहू को उसके ही घर मे ज़िंदा जला दिया गया। पुलिस के मुताबिक राकेश सिंह ग्रामसभा कलवारी में सरकारी रुपयों के दुरुपयोग की खबर लिख रहे थे। जिसकी वजह से कलवारी की महिला प्रधान सुशीला देवी और उसके बेटे रिंकू के आंखों में राकेश सिंह खलने लगा था। 

रिपोर्ट में यह बताया गया कि राकेश के साथी पिंटू साहू ने ललित मिश्रा नाम के व्यक्ति से कार खरीदी थी। जिसकी बकाया राशि की वजह से दोनों के बीच झगड़ा भी हुआ था।

पुलिस ने बताया कि प्रधान निधि में हो रही धांधलेबाजी और पैसों के लेनदेन में विवाद को लेकर प्रधान के बेटे रिंकू मिश्रा और साथी ललित मिश्रा और अकरम ने मिलकर दोनों को मारने की योजना बनाई थी।

27 नवंबर की रात को तीनों रिंकू, ललित और अकरम पत्रकार के घर पहुंचे और पत्रकार और उसके साथी पर  केमिकल युक्त सैनिटाइजर फेंक कर आग लगा दी। आग में पिंटू की झुलसकर मौत हो गयी। वहीं राकेश सिंह की मौत लखनऊ अस्पताल में इलाज के दौरान हुई। हत्या के मामले में सभी आरोपियों को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया है। 

पत्रकार शुभममणि त्रिपाठी

यूपी के उन्नाव जिले में 19 जून 2020 को 25 साल के पत्रकार शुभममणि त्रिपाठी की हत्या की गयी थी। वह कामपु मेल अखबार के लिए काम करता था। बाइक से  लखनऊकानपुर हाइवे से आते वक्त उस पर दिनदहाड़े गोली चलाकर हत्या की घटना को अंजाम दिया गया।

नवभारत टाइम्स की 30 जून 2020 की रिपोर्ट में बताया गया कि हत्या की मुख्य आरोपी महिला भूमाफिया दिव्या अवस्थी थी। पुलिस द्वारा हत्या के मामले में दिव्या अवस्थी, उसके पति कन्हैया अवस्थी, मोहम्मद शानू,टीपू सुल्तान, शहनवाज, अफसर अहमद, अब्दुल बारी और संतोष बाजपाई को गिरफ़्तार किया गया है। गंगा घाट कोतवाली में आईपीसी की धारा 147,148,149,302,120 बी और 34 के तहत उन सब पर मामला दर्ज किया गया है। इसके अलावा अभी भी राघवेंद्र अवस्थी, मोनू खान और सुफियान फरार है, जिस पर पुलिस द्वारा 10 हज़ार रुपये का इनाम घोषित किया गया है।

14 जून 2020 को शुभममणि ने अपने फेसबुक प्रोफाइल पर लिखा था किचर्चित भू माफ़िया की ज़मीन का अभी कुछ दिनों पहले मैं कवरेज करने गया था। प्रशासन द्वारा अवैध निर्माण ध्वस्त किया जा रहा था। क्रोधित होकर भू माफ़िया ने किसी व्यक्ति द्वारा मेरे खिलाफ एक फर्जी एप्लिकेशन जिलाधिकारी को दिलवाई है, बहुतबहुत धन्यवाद भूमाफिया का।

चर्चित भू माफिया की जमीन का अभी कुछ दिनों पहले कवरेज करने मैं गया था प्रशासन द्वारा अवैध निर्माण ध्वस्त किया जा रहा था…

Posted by शुभम मणि त्रिपाठी on Sunday, 14 June 2020

 

यूपी पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक

प्रिंट की 24 जून 2020 की रिपोर्ट में बताया गया कि रेपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स के अनुसार, उत्तरप्रदेश पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक क्षेत्रों में से एक है। खासकर उन लोगों के लिए जो बालू माफ़िया को कवर करने की कोशिश करते हैं 

बालू माफ़िया पर हुई रिपोर्टिंग

19 अगस्त 2020 को खबर लहरिया ने यूपी के भूमाफिया पर रिपोर्टिंग की थी। जिसमें बताया गया कि अवैध बालू खनन के मामले में रिपोर्टिंग करने की वजह से जसपुरा क्षेत्र के दो पत्रकार अंशु गुप्ता और रवि तिवारी पर भूमाफिया द्वारा झूठे आरोप लगाकर एफआईआर दर्ज करायी गयी थी। भूमाफिया द्वारा दोनों पत्रकार को घेरकर मारने की भी कोशिश की गयी थी, लेकिन गांव के लोगों के इकट्ठे होने की वजह से वह उन्हें मारने में नाकमायब हो गए। 

हमले की रिपोर्ट पत्रकारों द्वारा 1 अगस्त 2020 को जसपुरा थाने में लिखवाई गयी थी। इसके बावजूद भी दोनों पत्रकारों को खुलेआम धमकी मिलती रही। रिपोर्ट कहती है कि अभी तक किसी भी अभियुक्त को इस मामले में नहीं पकड़ा गया है और सभी आरोपी खुलेआम आज़ादी से घूम रहे हैं। 

 

यह है ग्लोबल इमपयुनिटी इंडेक्स का कहना

कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट द्वारा तैयार की गयी ग्लोबल इमपयुनिटी इंडेक्स 2020 की रिपोर्ट का कहना है कि भारत उन दर्जनों देशों में से एक है जो अपने पत्रकारों के हत्यारों के खिलाफ बात करता है और जिसकी स्थिति इस समय बहुत खराब है। अक्टूबर 2020 को कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट ने अपनी रिपोर्ट में उजागर किया कि पत्रकारों को मौत के लिए छोड़ दिया जाता है और उनके हत्यारे आज़ाद हो जाते है।

भारत इस साल ग्लोबल इमपयुनिटी इंडेक्स 2020 सूचकांक में 12वें स्थान पर है। वहीं भारत पिछले साल 13वें स्थान पर था और 2018 में 14वें स्थान पर। इससे यही दिख रहा है कि भारत में जर्नलिस्ट की स्थिति हर साल और भी खराब होती जा रही है। भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश 9 वें और 10 वें स्थान पर हैं। (स्त्रोतन्यूज़ लौंडरी, 28 अक्टूबर 2020 )

1992 से 2020 तक 51 पत्रकारों की हत्या

कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट द्वारा तैयार किये गए डाटा में बताया गया कि साल 1992 से 2020 तक तकरीबन 51 पत्रकारों की हत्याओं का मामला सामने आया है। लेकिन कुछ मामले ऐसे भी हैं जो सामने नहीं आये, जिनकी रिपोर्ट तक दर्ज़ नहीं करायी गयी।

पिछले पांच सालों में पत्रकारों पर हुए 198 हमले

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पत्रकार गीता सेशु और उर्वशी सरकार ने पिछले पांच सालों में पत्रकारों पर हुए हमलों पर गेटिंग अवे विद मर्डर नामक रिपोर्ट से कुछ निष्कर्ष निकालें हैं। जिसके अनुसार साल 2014 से 2019 के बीच में तकरीबन 198 पत्रकारों पर जानलेवा हमला हुआ है। 198 में से 36 मामले अकेले 2019 में हुए थे। 36 में से छह हमले नागरिकता संसोधन अधिनियम के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन के दौरान किये गए थे। साथ ही कई हमलों में तो रिपोर्ट भी दर्ज़ नहीं हुई और जिनकी हुई उन पर कोई कार्यवाही नहीं की गयी।

सिर्फ भारत ही नहीं पूरे विश्वभर में पत्रकारों को उनकी पत्रकारिता करने की वजह से निशाना बनाया जा रहा है। फिर भी सरकार या प्रशासन द्वारा उनकी रक्षा के संबंध में कोई भी कदम नहीं उठाया गया। जो पत्रकार देश के हित के लिए अपनी जान की परवाह ना करते हुए, सच सामने लाता है। उसकी रक्षा करना या उसे रक्षा प्रदान करना, क्या सरकार का दायित्व नहीं है? आखिर देश मे पत्रकारों की जान की कीमत इतनी सस्ती क्यों है? एक पत्रकार की हत्या के बाद भी दूसरे पत्रकारों के लिए कुछ क्यों नहीं किया जाता? आखिर पत्रकारों को कब तक सच सामने लाने की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ती रहेगी? आखिर कब तक?