हाल ही में स्विट्ज़रलैंड में सरकार ने पूरे देश में बुर्क़ा पर रोक लगाने के लिए चुनावी मतदान कराए थे।जहाँ सरकार का यह फैसला सिर्फ उसकी तानाशाही शक्ति, सत्तावाद, और महिलाओं पर दबाव डालना दर्शाता है, वहीँ स्विट्ज़रलैंड के लोगों ने भी इस मतदान में 50 प्रतिशत से भी ज़्यादा वोट “बुर्क़ा बैन” को देकर यह साबित कर दिया है कि वो किस प्रकार से मुस्लिम समुदाय की महिलाओं से उनके ऊपरी वस्त्रधारण का हक़ छीनना चाहते हैं और महिलाओं को अपनी उँगलियों पर नचाना चाहते हैं।
कभी सोचा है कि अगर आपसे अपनी सांस्कृतिक पोशाक पहनने का अधिकार छीन लिया जाए तो आप क्या करेंगे? आपके उठने, बैठने, बोलने के हक़ को छीनने के बाद आपको अगर कोई बोले कि आज से तुम ये व्यक्तिगत वस्त्र नहीं पहन सकते, तो आप क्या करेंगे? आप सोच रहे होंगे कि मैं आपसे यह सवाल क्यों पूछ रही हूँ? वो इसलिए क्यूँकि आज हमारे विश्व में कई देश ऐसे हैं, जो दिन पर दिन अपनी हुकूमत और बल के दम पर महिलाओं से उनका आत्मविश्वास, उनकी पहचान छीन रहे हैं।
स्विट्ज़रलैंड भी आया बुर्क़ा बैन करने वाले देशों की लिस्ट में-
बता दें कि हाल ही में स्विट्ज़रलैंड में सरकार ने पूरे देश में “बुर्क़ा” (इस्लामिक संस्कृति में महिलाओं के द्वारा पहने जानी वाली बाहरी पोशाक। विशेषकर इसका उपयोग पर्दे के रूप में किया जाता है ) पर रोक लगाने के लिए चुनावी मतदान कराए थे। जहाँ सरकार का यह फैसला सिर्फ उसकी तानाशाही शक्ति, सत्तावाद, और महिलाओं पर दबाव डालना दर्शाता है, वहीँ स्विट्ज़रलैंड के लोगों ने भी इस मतदान में 50 प्रतिशत से भी ज़्यादा वोट “बुर्क़ा बैन” को देकर यह साबित कर दिया है कि वो किस प्रकार से मुस्लिम समुदाय की महिलाओं से उनके ऊपरी वस्त्रधारण का हक़ छीनना चाहते हैं और महिलाओं को अपनी उँगलियों पर नचाना चाहते हैं। ।
इससे पहले फ्रांस, चीन, श्रीलंका, डेनमार्क जैसे देशों ने भी बुर्क़ा, हिजाब, स्कार्फ़ या किसी भी प्रकार का कपड़ा जिससे चेहरा छुपाया जा सकता है, उसे बन कर दिया था।
आखिर क्यों सिर्फ महिलाओं में बदलाव लाना चाहती है सरकार-
जहाँ पूरा विश्व अभी तक कोरोना जैसी महामारी से जूझ रहा है और उससे उभरने का प्रयास कर रहा है, वहीँ कुछ देशों की सरकार अभी तक “इस्लामोफोबिया” जैसे मूर्खतापूर्ण मुद्दों को लेकर पूरे विश्व में नफरत फैला रही है। क्या इन महिलाओं को इतना भी हक़ नहीं कि वो अपने धर्म का अनुसरण कर सकें या अपने मन मुताबिक़ कपड़े पहन सकें। और अगर हमारे समाज को अभी तक ऐसा लगता है कि मुस्लिम महिलाएं इस्लामिक नियंत्रकों के दबाव में आकर बुर्क़ा पहनती हैं, हिजाब लगाती हैं, अपने सिर और मुंह ढकती हैं, तो चलिए मैं आपकी ग़लतफहमी दूर कर दूँ और आपको बता दूँ कि हम 21वीं सदी की महिलाएं हैं, हमें पता है कि हमारे लिए क्या बेहतर है और हमें क्या सशक्त बनाता है ! ये महिलाएं अपने धर्म के डर से या तानाशाहों के आदेशों से पर्दा नहीं करतीं हैं। ये महिलाएं अपनी इच्छा से बुर्का पहनती हैं, और हाँ बहुत स्वतंत्र भी महसूस करती हैं। क्यूंकि आज़ादी आपके कपड़ों से नहीं आपकी सोच से आती है, आपके पहनावे, आपकी ऊपरी पहचान से नहीं बल्कि आपके विचारों और आपके लक्ष्यों को पूरा करने से आती है।
सोचने की बात तो यह है कि जिस समाज को अब तक महिलाओं और लड़कियों को छोटे कपड़े पहनने पर आपत्ति थी और उनका मानना था कि लड़कियों के छोटे कपड़े पहनने के कारण पुरुष उनकी ओर आकर्षित होते हैं, वहीँ अब वो समाज बुर्क़ा लगाने पर पाबंदी लगा रहा है और औरतों को खुल के जीने की आज़ादी की बातें कर रहा है। तो सोचिये कि क्या हमें ऐसे पाखंडी समाज के नज़रिये और विचारधारणाओं को अपनाने की ज़रुरत है?
और जिन लोगों को ऐसा लगता है कि बुर्क़ा बैन करके वो महिलाओं को स्वतंत्र बनाना चाह रहे हैं, तो भई पहले खुद की सोच को स्वतंत्र बनाइये, खुद की पहचान बनाइये, महिलाओं में बदलाव लाने से बेहतर अपने अंदर बदलाव लाइए और फिर देखिये आपको यह दुनिया अलग ही नज़र आएगी। आत्म-शक्ति की ज़रुरत हमें नहीं, उन पुरुषों को है जो हमारे अंदर बदलाव लाकर विकास लाना चाह रहे हैं, अरे हम तो परदे में रह कर भी अपने सपनों को साकार कर रहे हैं और अपने हौसलों की उड़ान भर रहे हैं, अब ये बताइये कि आप कब हमारी चिंता छोड़ कर खुद में बदलाव लाएंगे?
इस खबर को खबर लहरिया के लिए फ़ाएज़ा हाशमी द्वारा लिखा गया है।