‘साझा संस्कृति’ का एक प्रमुख तत्व है- ‘हिंदू-मुस्लिम सद्भाव’ तथा संस्कृति में हिंदू-मुस्लिम संस्कृतियों का एक-दूसरे में घुल-मिल जाना और इसी आत्मसातीकरण की दुहरी प्रक्रिया में भारतीय संस्कृति की आत्मा का निर्माण हुआ है।
‘साझा संस्कृति’ की अवधारणा का यह केंद्रीय बिंदु है। ‘साझा संस्कृति’ का मतलब ‘हिंदू-मुस्लिम एकता’ भर नहीं है बल्कि इसे बृहत्तर अर्थों में ग्रहण किया जाना चाहिए। भारतीय ज्ञान-विज्ञान, रहन-सहन, खान-पान, ललितकलाएं आदि सभी में ‘साझा संस्कृति’ की परंपरा घुली-मिली है। सांप्रदायिक विचारधारा साझा संस्कृति का मुखर विरोध करती है, इसके पीछे मूल मकसद है भारतीय संस्कृति की आत्मा की ही हत्या कर देना।
देश भर मे जहाँ सम्प्रदायकिता जैसी हिन्सा फैल रही हैं कही राम मंदिर को लेकर तो कही राम नाम के नारे जबरन नारे लगाने पर तो देशद्रोही का आरोप लगा कर ऐसी बहुत सी भी घटना ऐसी नहीं होती जो आपसी मेदभाव कभी नहीं हुआ और एकता सतभवना हमेशा यहां देखने को मिलती है हिन्दू धर्मों के त्योहार होते हैं तो मुस्लिम समाज के लोग भी खूब बढचढ कर हिस्सा लेते हैं मुस्लिम समाज के त्योहार मे हिन्दु भाई भी उनके घर जाते हैं खुशियां बनाते हैं गले मिलते हैं एक दुसरे के घर खाना खाते हैं और हमारे यहां हमेशा सतभवना एकता रही है
बिरयानी बनी हिन्दू मुस्लिम एकता की किड़किडी
इसी एकता की एक मिसाल है बुंदेलखंड जहाँ आपको हिंदू-मुस्लिम एकता का एक अन्य दृश्य देखने को मिल जायेगा ,जैसे की सभी जानते है बुंदेलखंड का चित्रकूट जिला श्री राम चन्द्र की कर्म भूमि है , फिर भी यह क मुस्लिम और हिन्दू आपस में भाइयों की तरह ही रहते हैं जब भी कोई त्यौहार होता है तो दोनों ही समुदाय के लोग एक दुसरे के घरों में जाता और बहुत से त्यौहार ऐसे हैं जिनमे दुसरे समुदाय की मदद के बिना त्यौहार मनाना ही असंभव है
जैसे कि विजय दशमी यानि दसहरे का रावन मुस्लिम लोग ही बनाते हैं और मुस्लिमो के मुहर्रम के त्यौहार में निकलने वाली सवारियों की मिटटी हिन्दू के घर से ही आती है |