खबर लहरिया ताजा खबरें बुंदेलखंड: गौशाला में हर रोज़ मर रहीं गायें, आख़िर कहाँ जा रहा सरकारी बजट?

बुंदेलखंड: गौशाला में हर रोज़ मर रहीं गायें, आख़िर कहाँ जा रहा सरकारी बजट?

बुंदेलखंड के बांदा जिले में पशु पालन विभाग के अनुसार लगभग दो लाख अन्ना जानवर हैं। 2012 में 19वीं पशुगणना के अनुसार चित्रकूट धाम मंडल में 2 लाख 11 हज़ार अन्ना जानवर हैं। फरवरी 2019 में उत्तर प्रदेश सरकार ने साल 2019-2020 के बजट में गोशालाओं के रखरखाव के लिए 247.60 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. गौशालाएं है, सरकारी बजट है, सरकार की आस्था जुड़ी है फिर भी  अन्ना गायें गौशालाओं में लगातार मर रही हैं।

जो सरकारी धन आ रहा उससे गायें सिर्फ जीर्ण शीर्ण अवस्था में जिंदा तो रह सकती हैं पर अपने मरने के दिन की गिनती के साथ। मैंने रिपोर्टिंग के दौरान पाया कि सरकारी बजट से बढ़कर जिम्मेदारी है अपने जानवर की व्यवस्था करने की। आज अगर गौशालाओं में गायें मर रही हैं तो उसका जिम्मेदार किसान भी है। क्यों स्थिति ये आई कि उनको एक जगह रखकर तड़पा तड़पा कर मारा जा रहा है। बेजुबान गाये अपने पेट भरने के लिए दूसरों पर आश्रित हो गई हैं। उनको समय पर खाना पानी और पौष्टिक खाना न देने से इतनी कमजोर और कुपोषण की शिकार हो गई हैं।बुंदेलखंड: गौशाला में हर रोज़ मर रहीं गायें, आख़िर कहाँ जा रहा सरकारी बजट?

धर्म के ठेकेदार लोग गाय को मारने से पाप बताते हैं। चलिए एक मिनट के लिए इस निराधार मान्यता को मान लिया जाए पर क्या गौशाला के अंदर रखकर तड़पा तड़पा कर मारना पाप नहीं? इसके लिए क्यों मुह चुप है। दूसरी बात कि गौशाला की व्यवस्था होने के वाबजूद गाय सड़क पर घूमती हैं जिसके कारण उनकी मौत एक्सीडेंट से भी हो जाती है। बांदा से कानपुर को जाने वाले हाइवे पर मवई के पास पिछले महीने दो बार 7-7, 8-8 गायों को ट्रक ने कुचल दिया। सफर के समय रोड किनारे से जानवरों के सड़ने की आने वाली बदबू से पता चलता है कि हर रोज गायें मर रही हैं।

पशु पालन विभाग के उप निदेशक डॉ मनोज अवस्थी बताते हैं कि सिर्फ सरकार के भरोसे गायों को नहीं बचाया जा सकता। उन्होंने लोगों से भी गाये बचाने में मदद की बात की। वैसे भी किसान और लोग तो खुद अपने गायों को पालन पोषण कर रहे थे। उनसे दूध घी लेते खाते और बेचते थे। बैलों से खेती और सवारी करते थे। बूढ़े होने पर उनको बेच लेते। बूढ़े जानवर को खरीदने वाले भी अपना रोजगार करते थे। इससे किसानों को फायदा था और वह गाय को रोजगार के रूप में देखते थे। जब सरकार ने गाय के नाम गौशालाओं और बजट देने का ऐलान किया तो ये लाभ सबके हाथ थोड़ी लगने वाला था। इसकी होड़ लग गई और कुछ बजट लेने में पारंगत लोगों ने इसको अपने हाथ में लिए और करने लगे सरकारी धन का बंदर बांट।

गौशालाएं तो हैं पर उनमें गायों की भरमार है। नतीजन गायोन का पूर्ण रेखरेख करना मुश्किल होता चला गया। अगर सरकार ये सोचे कि किसानों को इससे फायदा है तो बिल्कुल नहीं। उससे ज्यादा समस्या हो गई है। फसल के समय खेत में रात दिन गुज़ारते हैं। भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष का कहना है कि गायों की स्थिति सुधरेगी, पर मेरा मानना है कि कब सुधरेगी पता नहीं। इन्होंने भी माना कि सरकार के बस की बात नहीं कि गायों को गौशाला में रख कर उनकी परवरिश की जा सके।