खबर लहरिया Blog बुंदेलखंड: सामुदायिक शौचालयों पर लगे ताले, बयां कर रहे सरकार की योजनाओं की सच्चाई

बुंदेलखंड: सामुदायिक शौचालयों पर लगे ताले, बयां कर रहे सरकार की योजनाओं की सच्चाई

चित्रकूट धाम मंडल में 67 करोड़ की लागत से बनवाए गए अधिकांश सामुदायिक शौचालयों में ताले जड़े हुए हैं, जिसके चलते इन शौचालयों का इस्तेमाल ग्रामीण नहीं कर पा रहे। इसके बावजूद भी इन शौचालयों के रख-रखाव के नाम पर हर महीने करोड़ों रुपए के बजट का खर्च दिखाया जा रहा है।

2014 में सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान देश भर में शुरू किया था, जिसके अंतर्गत गलियों, सड़कों तथा अधोसंरचना को साफ-सुथरा रखना, हर घर में शौचालय की सुविधा होना, सामुदायिक शौचालयों के निर्माण के माध्यम से खुले में शौच की समस्या को कम करना या समाप्त करना, इस योजना का मुख्य लक्ष्य है।लेकिन आज इतने सालों बाद भी देश में कई क्षेत्र ऐसे हैं जो इस योजना के लाभ से वंचित हैं।

नवभारत टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार चित्रकूट धाम मंडल में 67 करोड़ की लागत से बनवाए गए अधिकांश सामुदायिक शौचालयों में ताले जड़े हुए हैं, जिसके चलते इन शौचालयों का इस्तेमाल ग्रामीण नहीं कर पा रहे। इसके बावजूद भी इन शौचालयों के रख-रखाव के नाम पर हर महीने करोड़ों रुपए के बजट का खर्च दिखाया जा रहा है। शौचालय के संचालन का जिम्मा ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत गठित महिला समूह को सौंपा गया है।

नवभारत टाइम्स की उसी रिपोर्ट के अनुसार चित्रकूट धाम मंडल के चारों जिलों में मौजूद ग्राम पंचायतों में 1403 सामुदायिक शौचालय बनाने का लक्ष्य तो है, लेकिन अभी तक इनमें से 1383 शौचालय ही बने हैं। शासन के निर्देश पर इनमें से 1279 शौचालय के संचालन का जिम्मा पिछले साल जुलाई के महीने मे पंचायती राज विभाग ने ग्रामीण आजीविका मिशन एन आर एल एम को सौंपा था और यह कहा गया था कि संचालन का काम समूह की महिलाएं कर रही हैं। लेकिन इसके बावजूद भी आज इन ग्राम पंचायतों में मौजूद शौचलयों में ताले लटके हुए हैं। ऐसे में हर महीने जो करोड़ों रुपए का खर्च दिखाया जाता है, वो आखिरकार कहाँ जा रहा है? ग्रामीणों को इन शौचालयों की सुविधा नहीं मिल पा रही और रंगाई पुताई से लैस ये शौचालय सिर्फ शोपीस बनकर ग्राम पंचायतों में खड़े हुए हैं।

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बांदा: सड़क पर शौच करने के चलते आए दिन हो रही दुर्घटनाएं-

 

बांदा ज़िले के तिंदवारी ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले मिरगहनी गाँव में समुदयिक शौचालय बना हुआ था जिसमें सरकार ने लाखों रुपए खर्च किए हैं, लेकिन यहाँ पर ताला लगा होने के चलते लोग इसका इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। गाँव की फूला का कहना है कि 2 साल पहले उनके गांव में समुदायिक शौचालय बना था पर वह अबतक अधूरा है। गाँव के लोग चाहते हैं कि अगर यह शौचालय बन जाए तो ग्रामीणों को आराम हो जाएगा, गाँव में आज भी कई ऐसे परिवार हैं जिन्हें शौच के लिए मीलों दूर चलकर जंगलों में जाना पड़ता है, या फिर हाईवे के किनारे जाना पड़ता है। फूला ने ये भी बतया कि पिछले साल एक घटना भी

हो गई थी जब एक महिला शौच के लिए सड़क किनारे बैठी थी और तिंदवारी की ओर से आ रहे वाहन से वो बुजुर्ग महिला टकरा गई और उसकी मौत हो गई। फूला बताती हैं कि इस तरह की और भी कई घटनाएं यहाँ हो चुकी हैं। लेकिन फिर भी प्रशासन की तरफ से कोई कार्यवाही नहीं हुई है।

इसी गाँव के रहने वाले शिव कुमार का कहना है कि सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान के तहत घर-घर शौचालय बनाने का बेड़ा तो उठा लिया लेकिन अब इस अभियान को पूरा कर पाना सरकार के लिए मुश्किल हो रहा है। देश के कई गाँव आज ओडीएफ भी हो चुके हैं यानी यानी ये गाँव अब खुले में शौच मुक्त हैं। लेकिन आज भी कई क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ शौचालय बनवाने के नाम पर सिर्फ धोखाधड़ी हुई है। शिव कुमार बताते हैं कि उनके गाँव में कुछ शौचालयों की सिर्फ खाली दीवारें खड़ी हैं और अब उसमें लोगों ने कूड़ा-कचरा डालना शुरू कर दिया। शौचालयों के काम को पूरा कराने की भी गुहार लगाई गई लेकिन फिर भी कोई सुनवाई नहीं हुई।

ग्राम प्रधान जयकरण ने ग्रामीणों द्वारा लगाए जा रहे सभी आरोपों को झूठा बताया है। उनके अनुसार जिस जिस परिवार का शौचालय बनने की सूची में नाम आया था, सभी के घरों में शौचालय बन गए हैं। और सामुदायिक शौचालय की मरम्मत का काम भी जल्द ही शुरू किया जाएगा।

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चित्रकूट: शौचालय में लगा ताला, यात्री होते हैं परेशान-

 

इसी तरह चित्रकूट जिले के ब्लॉक रामनगर के गाँव देउवा में तीन साल पहले सामुदायिक शौचालय बनाया गया था, लेकिन ये शौचालय भी हमेशा बंद पड़ा रहता है। जबकि शौचालय के पीछे बस अड्डा चौराहा भी बना है और लोगों को शौच जाने के लिए दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। यात्रा कर रहे यात्रियों को शौच के लिए कई बार इधर-उधर भटकना पड़ता है।

इटावा गांव की रानी और प्रेमा बताती हैं कि उनके गाँव के बाहर बने सामुदायिक शौचालय के सामने इलाहाबाद रोड है और हमेशा ही लोग आते-जाते रहते हैं, साधन भी चलते हैं, कई बार सामुदायिक शौचालय देख गाड़ियां रूकती तो हैं लेकिन वहां लगे ताले को देख यात्रियों को निराशा ही हाँथ लगती है।

रामनगर विकासखंड के बीडीओ धनंजय सिंह का कहना है कि जो सार्वजनिक शौचालय बनाए गए हैं वहां पर टंकी की व्यवस्था नहीं थी, इसलिए फिलहाल वहां ताला लगा है। जल्द ही वहां टंकी रखवा दी जाएगी तो पानी की सुविधा भी हो जाएगी और समय से शौचालय खोल दिए जाएंगे।

बांदा: गाँव के लगभग 100 परिवार शौचालय से वंचित-

 

बांदा ज़िले के नरैनी तहसील के अंतर्गत आने वाले पथरा मोतियारी जैसे कई गावों में भी रोड के किनारे सुंदर पेंटिंग के साथ सामुदायिक शौचालय तो बने हुए हैं, लेकिन या तो ये सुचारू रूप से काम नहीं कर रहे होते या फिर यहाँ ताला लटक रहा होता है।

पथरा गाँव की मुलिया और सुनैना बताती हैं कि लगभग 4000 की आबादी वाले इस गाँव में आज भी करीब सौ परिवार ऐसे हैं जिनको शौच के लिए जंगल, खेत या सड़क के किनारे जाना पड़ता है। बरसात के समय खेतों में धान लग जाता है पानी लबालब भर जाता है तब लोगों को शौच जाने में काफी दिक्कत आती है। जब गाँव में सामुदायिक शौचालय बन रहा था तो लोग काफी खुश हुए थे कि अब उन्हें शौच के लिए इधर-उधर नहीं जाना पड़ेगा लेकिन रख-रखाव की कमी के चलते इन शौचालयों का हाल बेहाल हो गया।

चित्रकूट धाम मंडल बांदा के उपनिदेशक पंचायत दिनेश कुमार का कहना है कि स्वच्छ भारत अभियान के तहत सामुदायिक शौचालय का निरीक्षण किया जाएगा और जो शौचालय बंद पाये जाएगें, उनका बजट रोक दिया जाएगा और उन्हें पूर्व में दिए गए पैसे की रिकवरी भी कराई जाएगी।

बता दें कि नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, मंडल में 1403 शौचालय बनाने का लक्ष्य है जिनमें से 1383 पुरे हो चुके हैं और 1279 चालू हैं और 104 संचालन के लिए शेष हैं। इनमें से बांदा में 22, चित्रकूट में 42 और हमीरपुर व महोबा में 20-20 अभी भी समूह को सौंपे नहीं गए हैं। सामुदायिक शौचालय की देखरेख करने वाली समूह की महिला को प्रति माह ₹6000 का मानदेय दिया जाता है, इसके अलावा सफाई के लिए लगने वाली सामग्री के लिए ₹3000 दिए जाते हैं यानी कि एक सामुदायिक शौचालय में हर महीने ₹9000 खर्च होता है।

अब सवाल यह उठता है कि हर महीने भारी लागत खाने वाले ये शौचालय जब गरीब और योग्य लोगों तक पहुँच ही नहीं पा रहे हैं, तो क्या सरकार को इस प्रक्रिया को और सुधारने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाना चाहिए? इतने सालों से चल रहे स्वच्छ भारत अभियान के बावजूद भी अभी सैकड़ों परिवारों के लिए शौच एक बड़ी समस्या बनी हुई है। विधानसभा चुनाव के बाद ऐसी उम्मीद लगाई जा रही है कि पिछले 5 सालों में यूपी सरकार जो वादे पूरे नहीं कर पाई थी शायद अब उन वादों और उन योजनाओं पर काम किया जाएगा। बुंदेलखंड क्षेत्र में भी शौचालय की समस्या को समाप्त करने के लिए सरकार के लिए अगले 5 साल बहुत महत्वपूर्ण होंगे।

इस खबर की रिपोर्टिंग बाँदा से शिवदेवी और चित्रकूट से सहोदरा द्वारा की गयी है।

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