अनारकली देवी बताती हैं कि यदि किसी को लंबे समय से बुखार या खांसी रहती हो तो मकोय का नियमित सेवन करने से राहत मिलती है। उन्होंने यह भी कहा कि खून की कमी होने पर खासकर गर्भवती महिलाओं में आयरन की कमी दूर करने के लिए मकोय का साग बहुत फ़ायदेमंद माना जाता है।
रिपोर्ट – संगीता, लेखन – सुचित्रा
मकोय गांवों में प्रयोग किया जाने वाला एक देशी नुस्खा है। मकोय एक तरह का पौधा है जिसे अंग्रेजी में Black nightshade कहा जाता है और बुंदेलखंड के गावों में मकोइया। जब भी लोगों को कमजोरी या थकावट महसूस होती है, तो इसके पत्तों और मुलायम तने का साग बनाकर खाया जाता है। इसके फूल, पत्ते, फल और तना सबका उपयोग होता है। हममें से कई लोगों ने बचपन में यह देखा है कि घर के बड़े-बुजुर्ग मकोय का साग बनाकर खिलाते थे और कहते थे कि इससे कमजोरी दूर होती है। बड़े बुजुर्गों को अक्सर कहते हुए सुना गया है कि अगर भूख न लग रही हो तो इसके पत्तों का साग भूख खोलने के लिए बहुत फायदेमंद होता है
गांव के लोगों ने बताया कि जब हम छोटे थे, तो खेतों में पकने वाली मकोय को खूब तोड़-तोड़कर खाते थे। ये फल ईंट के रंग जैसी या हल्की बैंगनी रंग की होता है और स्वाद में खट्टा-मीठा तथा थोड़ा कसैला लगता है। इनके ऊपर पंखुड़ी जैसी परत रहती है और इसके फूल सफेद होते हैं।
स्वास्थ्य के लिए फायेदमंद
अनारकली देवी बताती हैं कि यदि किसी को लंबे समय से बुखार या खांसी रहती हो तो मकोय का नियमित सेवन करने से राहत मिलती है। उन्होंने यह भी कहा कि खून की कमी होने पर खासकर गर्भवती महिलाओं में आयरन की कमी दूर करने के लिए मकोय का साग बहुत फ़ायदेमंद माना जाता है।
मकोय के साग में आयरन, फॉस्फोरस और खून बढ़ाने की क्षमता अधिक होती है, इसलिए इसे कमजोर लोगों को भी खिलाया जाता है।
आसानी से उग जाता है
यह पौधा कहीं भी आसानी से उग जाता है। आप ने भी इसे कहीं न कहीं जरूर देखा होगा बस इस पौधे के नाम से परिचित नहीं होंगे। यह पौधा खेतों, घरों या आसपास की खाली जगहों पर कभी भी आसानी से खुद उग जाता है। यह पूरी तरह प्राकृतिक पौधा है, जो बिना किसी खाद या रसायन के उग जाता है।
इसे इस्तेमाल कैसे करें
इसे कैसे खाने में इस्तेमाल करते हैं। जब इस सवाल किया गया तो अनारकली देवी ने बताया कि मकोय के पत्तों को पीसकर सूप की तरह पिया जाए तो, इससे बुखार, सर्दी और पेट की गैस जैसी दिक्कतों में राहत मिलती है। जो लोग इसे पी नहीं पाते, वे इसका साग बनाकर रोजाना सुबह रोटी के साथ लगभग पंद्रह दिनों तक खाएँ। बुज़ुर्गों का मानना है कि इससे कई तरह की परेशानियाँ कम होती हैं। इसे दादी-नानी के पुराने नुस्खों में गिना जाता है।
मकोय का साग बिल्कुल उसी तरह बनता है जैसे पालक या सरसों का साग बनाया जाता है। पत्तों और मुलायम तने को बड़े-बड़े टुकड़ों में काट लिया जाता है। फिर सरसों के तेल में लहसुन और मिर्च का तड़का लगाकर धीमी आँच पर पकाया जाता है। तैयार होने पर इसे चावल या रोटी, दोनों के साथ खाया जा सकता है। स्वाद भी कुछ-कुछ सरसों के साग जैसा ही लगता है।


