खबर लहरिया National भट्ठा उद्योग में नवीनकरण ईंधन की पहचान: बायोकोल

भट्ठा उद्योग में नवीनकरण ईंधन की पहचान: बायोकोल

ईंट-भट्ठा उद्योग वर्षो से परंपरागत ईंधन के इस्तेमाल से ही ईंट निर्माण का काम करता आया है। आज के समय में यह उद्योग नवीन व स्वच्छ ईंधन की दिशा में बायो कोल (गुल्ला) के बेहतर विकल्प की ओर अग्रसर होता दिखता है। बुनियाद की टीम ने इस नवीन ईंधन की प्रक्रिया को समझने के उद्देश्य से शाहजहांपुर, लखीमपुर व अन्य जिलों में बायो कोल प्लांट व बायो कोल से संचालित ईंट-भट्ठों का दौरा किया है जिसके प्रमुख बिंदु कुछ इस प्रकार है :-

Bio coal, a renewable fuel in the kiln industry

 

बायो कोल (गुल्ला/ब्रिकेट्स) के उत्पादन व उपयोग से ना केवल ऊर्जा की ज़रूरतें पूरी हो सकती हैं बल्कि व्यापक स्तर पर प्रदूषण में भी कमी आएगी और आम जन को बेहतर स्वास्थ्य मुहैया होने में भी मदद मिलेगी। सरकार को सभी प्रकार के कृषि अपशिष्ट को व्यवस्थित करने के लिए नीतिगत स्तर पर प्रयास करने की ज़रूरत है जिससे कच्चा माल व्यापक स्तर पर आसानी से उपलब्ध हो सके।

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Bio coal, a renewable fuel in the kiln industry

इस समय, शाहजहांपुर, लखीमपुर खीरी, सीतापुर, रायबरेली, महाराजगंज, गोरखपुर, देवरिया, गोंडा, बलरामपुर, रामपुर, हरदोई आदि कई जिलों में कुछ भट्ठा मालिक बायो कोल का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके फ़ायदे-वर्तमान की तुलना में केवल 5-8% राख- निष्पादन की जिम्मेदारी, पारंपरिक ईंधन से बेहद किफ़ायती और कम खपत, नवीन ग्रामीण उद्यम के अवसर, प्रोडक्ट की बढ़िया क्वालिटी आदि। इसके साथ ही बायो कोल के निर्माण एवं उपयोग में पर्यावरणीय और औद्योगिक दृष्टि से शोध की कमी है, जिसकी अत्यधिक आवश्कता है। सरकार की बायो एनर्जी नीति 2022 के अंतर्गत सब्सीडी के प्रावधान को लागू करने के लिए जिले स्तर पर सेण्टर स्थापित करने की आवश्कता है।

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