खबर लहरिया Blog बिहार की लोकप्रिय और सब की पसंदीदा निमकी चटनी

बिहार की लोकप्रिय और सब की पसंदीदा निमकी चटनी

बिहार के खाने की बात करें तो खासकर लोग सिर्फ लिट्टी चोखा से ही परिचित हो सकते हैं, लेकिन इस राज्य में खाने के लिए और भी बहुत कुछ है। बिहारी खाने के व्यंजनों का एक तरह से इतिहास खजाना है। वहां के एक से बढ़कर एक अनोखे व्यांजन है और उनका स्वाद लाजवाब है। ऐसा ही एक बिहारी व्यंजन है निमकी जिससे आपको ज़रूर खा कर आजमाना चाहिए।

टोकरा में भरी रखी निमकी (फोटो साभार: सुमन)

रिपोर्ट – सुमन, लेखन – गीता 

जी हां निमकी और चटनी बिहार में बहुत ही लोकप्रिय नास्ता है। निमकी एक नमकीन है मतलब जिसे हम (मटरी) भी कहते हैं और ये मैदा, सूजी, नमक, अजवाइन से बनाई जाती है। इसे आम तौर पर चाय के साथ या शाम के नाश्ते के रूप में तीखी चटनी के साथ खाया जाता है। निमकी और चटनी का यह मेल बिहार में एक लोकप्रिय और सब का पसंदीदा स्वादिष्ट व्यंजन है।

बचपन की यादें और मटरी का स्वाद

बचपन से ही हमें मटरी खाने का बहुत शौक रहा है, जो हमारी मां और दादी खासतौर पर त्योहारों में बनाती थीं। त्योहारों पर बनने वाले इस पकवान का हमें बेसब्री से इंतज़ार रहता था। मां और दादी से बार-बार जिद करके मटरी बनवाते थे। आज भी त्योहार का मतलब हमारे लिए मटरी ही होता है, लेकिन अब तो होटलों और छोटी चाय की दुकानों में भी यह मटरी आसानी से मिल जाती है, लेकिन घर की बनी मटरी का स्वाद ही कुछ और होता है। जब मैं बिहार आई, तो मैंने देखा कि यहां मटरी को निमकी’ कहा जाता है। ट्रेन में सफर करते हुए कई बार लोगों को कहते सुना निमकी पकौड़ी खा लो, निमकी चटनी खा लो। पहले तो समझ नहीं आया कि ये क्या कह रहे हैं, पर जब देखा, खाया और पूछा तब जाकर समझ आया कि अरे ये तो हमारी मटरी है जिससे यहां पर निमकी कहते हैं।

दानापुर की मशहूर निमकी दुकान

पटना जिले के दानापुर ब्लॉक में पीपा पुल के पास एक पुरानी सी दुकान है, जिसमें रोजाना 2-3 क्विंटल निमकी बनाती है। इस व्यवसाय के मालिक हैं भारत पंडित है। वह बताते हैं कि 1986 में जब उन्होंने मैट्रिक पास किया था। तभी से घर की सारी जिम्मेदारियां उनके सिर पर आ गईं थी। दो भाइयों में बड़े थे, तो कुछ काम करने का सोचा।

शुरुआत में ठेला लगाया फिर 1988 से व्यवसाय शुरू कर दिया। पहले इस काम को सीखा और फिर मेहनत से इसे आगे बढ़ाया। अब उनके पास दो कर्मचारी भी हैं, जो रोज सुबह से निमकी बनाने में सहयोग करते हैं। तैयार माल लोग अपनी-अपनी दुकानों तक ले जाकर बेचते हैं। यह काम अब उनके लिए सिर्फ रोज़गार नहीं बल्कि एक पहचान भी बन गया है।

इस दुकान पर बनती निमकी (फोटो साभार: सुमन)

कोयले से शुरू होती है मटरी बनाने की मेहनत

फोटो में दिख रहा है कि सत्येंद्र नाम के व्यक्ति है जो हाथ में हथौड़ा लिए कोयले को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ रहा है। वह बताते हैं कि पिछले 4 साल से इस काम से जुड़े हैं। वह मालिक का हाथ बंटाते हैं। सेव निकालना, मटरी मतलब (निमकी) बेलना, कढ़ाई में डालना, चूल्हे की तैयारी करना जैसे सारे काम वही करते हैं।

वह बताते हैं कि सुबह 6 बजे से ही काम शुरू हो जाता है। पहले कोयले को चूल्हे में सेट करते हैं। आग जलाते हैं और कढ़ाई चुल्हे में रखते हैं। जब तेल गर्म हो जाता है तब कटी हुई मटरी डालते हैं। यह पूरी प्रक्रिया सुबह से दोपहर तक चलती है ताकि ग्राहकों के आने से पहले माल तैयार रहे।

ठेले पर सजी निमकी और दादाजी का अनुभव

कोयला फोडता व्यक्ति (फोटो साभार: सुमन)

फोटो में एक दादाजी ठेले पर ढेर सारी निमकी सजाए बैठे हैं। वह बताते हैं कि वह दानापुर के ही रहने वाले हैं और यह काम सालों से कर रहे हैं। यहां इसकी खूब बिक्री है। बच्चे, बूढ़े और जवान सभी इस निमकी को खाना पसंद करते हैं।

दानापुर बाजार में गांव से आए लोग जब खरीदारी करने आते हैं, तो लौटते समय निमकी जरूर खरीदते हैं। कोई ₹20 की कोई आधा किलो, कोई एक किलो। इसमें खास बात ये है कि कम पैसों में भी लोग थोड़ा सा लेते हैं,तो भी हल्का होने के कारण बहुत सारा दिखने लगता है। पूरा परिवार बैठकर इसे मजे से खाता है। यह निमकी हर रोज ताजा बनती है,तो  नुकसान भी नहीं करती और स्वाद भी लाजवाब रहता है।

ठेले में सजी निमकी (फोटो साभार: सुमन)

गर्मी में पसीना और मेहनत का मेल

फोटो में मालिक के पीछे एक व्यक्ति पंखे के सामने खड़ा है। उसका काम है निमकी की कढ़ाई में नमक, तेल डालकर उसे मिक्स करना। गर्मी इतनी तेज है कि उसे बार-बार पंखे के सामने खड़ा होना पड़ता है ताकि पसीना न गिरे। पसीना गिर गया तो निमकी खराब हो सकती है। इसलिए बहुत सतर्क मतलब (चौकना) रहना पड़ता है।

वह बताते हैं कि इस समय बहुत गर्मी है दोपहर के 12 बजे हैं। धूप इतनी तेज है और पंखे भी गर्म हवा दे रहे हैं। बीच-बीच में तबीयत खराब हो जाती है, लेकिन काम तो करना ही पड़ता है। यहां तीन पंखे लगे हैं। एक उसके पास एक आग को हवा देने के लिए और एक मालिक के पास लेकिन गर्मी के सामने सब बेकार लगते हैं। फिर भी मेहनत जारी रहती है, क्योंकि यही उनकी रोज़ी है और यही पहचान भी।

10 रुपए पैकेट देती है निमकी

मसौढ़ी स्टेशन में निमकी बेंच रही सुशीला बताती है कि वह यहां पर पिछले 10 सालों से दुकान लगा रही है और उसकी दुकान सुबह 6:00 बजे से लगाकर रात 8:00 बजे तक लगती है। वह रोजाना करीब 10 किलो के आसपास निमकी बेंच देती है। निमकी वह मार्केट से खरीद कर लाती है। यहां पर छोटे-छोटे कागज में डालकर इकट्ठा पैक करके रख लेती है और फिर जब लोग आते हैं, तो एक पेकेट उठाकर के दे देती है। जिसकी कीमत ₹10 होता है। आते-जाते लोग खुब निमकी खरीदते हैं, जिस तरह टाइमपास के लिए लोग मूंगफली खाना पसंद करते हैं, ठीक उसी तरह टाइमपास के लिए निमकी खाना भी लोग पसंद करते हैं।

निमकी बेंचती महिला (फोटो साभार: सुमन)

कैसे बनती है निमकी

निमकी और चटनी को कैसे बनाया जाता है। निमकी को बनाने के लिए मैदा, सूजी, नमक, अजवाइन और तेल डालकर पहले मैदा को गुंजा जाता है। फिर पटा बेलन से बड़ी सी रोटी जैसे बेला जाता है और फिर चाकू की मदद से निकली को पतला-पतला काट कर बनाया जाता है। इसके बाद तेल में तला जाता है। चटनी को आम तौर पर दही, हरी मिर्च, लहसुन, अदरक और अन्य मसालों से बनाया जाता है। 

निमकी और चटनी को बिहार के बाहर भी काफी पसंद किया जाता है, क्योंकि यह एक ऐसा सूखा स्नैक मतलब मटरी जिससे बिहार में निमकी कहते है। रास्ता है,जो बहुत टीकाऊ,  स्वादिष्ट और बनाने में आसान है। 

आप निमकी और चटनी कि रेसिपी के बारे में इस लेख में देखकर और भी ज्यादा जान सकते हैं, क्योंकि यह हम सबके घरों में तो बनती ही है और हर कोई अपने-अपने तरीके से बनता है जिसमें नमकीन भी होती है और मीठी भी होती है, लेकिन बिहार में निमकी बनाने का कुछ अलग ही तरीका है, क्योंकि यहां लोग मैदा, नमक, अजवाइन और तेल के साथ सूजी भी डालते हैं और सूजी से यह और भी खस्ता बन जाती है जिसको देखकर  मेरे तो मुंह में पानी आ गया है, आप क्या सोच रहे हैं। अगर बिहार जाएगा तो निमकी और चटनी का मजा जरूर लीजिए। 

 

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