पत्थरकट्टी गांव के शिल्पकार साल 2022 से जीआई टैग मिलने के लिए संघर्ष कर रहे थे। साल 2025 में झारखंड के रांची में दस न्यायधीशों ने जीआई टैग पर मुहर लगाई है। प्रकाशित रिपोर्ट में शिल्पकार रविंद्र नाथ गौड़ ने बताया कि वह सरकार से जल्दी जीआई टैग मिलने को लेकर आग्रह करते रहे हैं।
बिहार के गया जिले के नीमचक बथानी प्रखंड के अंदर आने वाला पत्थरकट्टी गांव जो पत्थर की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है, उस कला को पहचान देते हुए जीआई टैग दिया गया है। अमर उजाला की प्रकाशित रिपोर्ट बताती है कि पत्थरकट्टी गांव में स्टोन आर्ट्स यानी पत्थर को तराशकर मूर्तियों को बनाने वाले तक़रीबन 650 से अधिक लोग हैं।
रिपोर्ट कहती है कि इस कला को जीआई टैग मिलने से कलाकारों और मूर्ती की पहचान विदेशों में होगी। उनकी आमदानी भी बढ़ेगी।
जीआई टैग का पूर्ण नाम है ‘भौगौलिक संकेत’ (Geographical Indication), यह टैग किसी विशेष क्षेत्र के उत्पाद को उसके विशेष गुणों और गुणवत्ता से जोड़ता है। इसका काम उन उत्पादों की सुरक्षा करना होता है, जो सिर्फ एक खास स्थान पर ही बनते हैं या मौजूद होते हैं।
शिल्पकार सालों से कर रहे थे जीआई टैग की मांग
रिपोर्ट के अनुसार, पत्थरकट्टी गांव के शिल्पकार साल 2022 से जीआई टैग मिलने के लिए संघर्ष कर रहे थे। साल 2025 में झारखंड के रांची में दस न्यायधीशों ने जीआई टैग पर मुहर लगाई है। प्रकाशित रिपोर्ट में शिल्पकार रविंद्र नाथ गौड़ ने बताया कि वह सरकार से जल्दी जीआई टैग मिलने को लेकर आग्रह करते रहे हैं।
29 जनवरी 2025 को रांची में दस न्यायधीशों के सामने पत्थरकट्टी की मूर्तियां प्रस्तुत की गई थीं। इसके बाद ही पत्थरकट्टी की मूर्तियों को जीआई का टैग दिया गया। अब बस नाबार्ड द्वारा सभी शिल्पकारों को एक कार्यक्रम आयोजित कर सर्टिफिकेट देने की देरी है।
नाबार्ड और जीआई टैग का संबंध
नाबार्ड (NABARD) को अगर समझा जाए तो इसका पूरा नाम ‘नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चरल एंड रूरल डेवलपमेंट’ है। इस मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि, ग्रामीण विकास, और किसान कल्याण के लिए वित्तीय सहायता और अन्य संसाधन प्रदान करना है।
नाबार्ड और जीआई टैग के बीच का संबंध समझा जाए तो इसका जुड़ाव मुख्यतौर पर ग्रामीण विकास और कृषि उत्पादों से होता है। नाबार्ड, जीआई टैग प्राप्त करने वाले उत्पादों को बढ़ावा देने में मदद करता है। यह किसानों को जीआई टैग के लाभों के बारे में जागरूक करने का काम करता है। उदाहरण के तौर पर, उनके उत्पादों की बाज़ार में पहचान बढ़ाने के साथ-साथ मूल्य को बढ़ाना।
इसके अलावा नाबार्ड अलग-अलग जीआई टैग वाले उत्पादों की मदद के लिए वित्तीय सहायता, प्रशिक्षण और अन्य संसाधन प्रदान करता ताकि उत्पादकों का सही तरीके से प्रचार किया जा सके और किसानों की आय में वृद्धि हो।
मौजूदा जानकारी के अनुसार, अगस्त 2024 तक, बिहार के 16 उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है। इनमें खाद्य सामग्री, कृषि उत्पाद, और हस्तशिल्प से जुड़ी चीज़ें शामिल हैं। बिहार की मधुबनी पेंटिंग, भागलपुरी सिल्क, मगही पान इत्यादि को जीआई टैग मिला हुआ है।
बात यहां सिर्फ जीआई टैग मिलने तक सीमित नहीं है बल्कि टैग मिलने के बाद उससे मिलने वाले लाभों, सुविधाओं और मदद से भी है।
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