बीघा भर खेत में लगभग 60-70 किलो आलू के बीज की जरूरत होती है। सही देखभाल और मौसम के अनुसार एक बीघे में 6-7 कुंतल आलू पैदा होता है। अगर ठंड और सिंचाई सही तरीके से की जाए तो यह उपज 10 कुंतल तक बढ़ सकती है।
रिपोर्ट – सुमन, लेखन- रचना
पटना जिले के कण्डाप गोपालपुर और धरायचक जैसे गांवों में इस समय खेतों में किसानों की हलचल बढ़ गई है। धान की कटाई चल रही है और साथ ही साथ आलू की बुआई का समय भी आ गया है। किसान इस समय दोनों कामों में व्यस्त हैं। बिहार में आलू की खेती बड़े पैमाने पर नहीं होती लेकिन स्थानीय किसान इसे अपनी जरुरत के लिए उगाते हैं और कुछ मात्रा में मार्केट में बेचते हैं।
आलू की बुवाई का समय और तैयारी
किसान शिवनाथ भक्त मलाकार जो पिछले 25 सालों से खेती कर रहे हैं उनसे बात करने पर वे बताते हैं कि यह समय आलू की बुआई का सबसे सही समय है।
आलू की बुवाई का समय अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से शुरू होकर नवंबर के तीसरे सप्ताह तक चलता है। इस समय एक महीने तक किसान आलू की बुवाई कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि बीघा भर खेत में लगभग 60-70 किलो आलू के बीज की जरूरत होती है। सही देखभाल और मौसम के अनुसार एक बीघे में 6-7 कुंतल आलू पैदा होता है। अगर ठंड और सिंचाई सही तरीके से की जाए तो यह उपज 10 कुंतल तक बढ़ सकती है।
किसान राम दहिन रॉय उम्र 60 वर्ष से अधिक वे कहते हैं कि मिट्टी की गुणवत्ता बहुत जरूरी है। मिट्टी अगर थोड़ी सख्त हो तो उसे कम से कम तीन-चार बार जुताई करनी चाहिए। इससे मिट्टी में नमी ऊपर आ जाती है और जमीन फसल के लिए उपयुक्त बनती है। पटना जिले में पानी की कमी होने के कारण किसान पास की नहर, नाला या गंदे पानी का इस्तेमाल सिंचाई के लिए करते हैं। उन्होंने बताया कि गंदा पानी इस्तेमाल करने से आलू की फसल पर कोई असर नहीं पड़ता और आलू खाने योग्य रहता है।
खेत में बुवाई की प्रक्रिया
आलू की बुवाई के दौरान मजदूरों की मदद ली जाती है। खेत में दो मजदूर लकड़ी पकड़कर लाइन बनाते हैं और उसके बराबर आलू और खाद डालते हैं। मिट्टी से ढकने के बाद 10-15 दिन तक सिंचाई की जाती है। जब छोटे पौधे निकलते हैं तो उन्हें घास और खरपतवार से साफ किया जाता है। इस प्रक्रिया को किसान ‘निराई-गुड़ाई’ कहते हैं। इस समय यह ध्यान रखना होता है कि पौधों को नुकसान न पहुंचे।
किसान यह भी बताते हैं कि समय-समय पर कीट और रोगों से बचाव के लिए दवा का छिड़काव करना जरूरी है। छिड़काव करते समय ध्यान रहे कि दवा बच्चों या घर के किसी सदस्य के हाथ न लगे क्योंकि यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है।
मौसम और सिंचाई का महत्व
किसान बताते हैं कि आलू के लिए हल्की ठंड ठीक रहती है लेकिन बहुत ज्यादा ठंड, बारिश या ओला फसल के लिए खतरा बन सकता है। समय पर सिंचाई और देखभाल से फसल अच्छी होती है और किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है। रामपभेवर जो पटना जिले के फुलवारी ब्लॉक के धरायचक गांव में रहते हैं वह बताते हैं कि हर साल आलू की खेती से उन्हें और उनके परिवार को काफी लाभ होता है। उन्होंने बताया कि मौसम और पानी की सही व्यवस्था के साथ आलू की खेती से किसानों को आर्थिक फायदा मिलता है।
किसान बताते हैं कि 1 किलो बीज से लगभग 100 किलो आलू उगता है। इस तरह उनकी साल भर की घरेलू जरूरतें पूरी होती हैं और थोड़ी मात्रा में मार्केट में बेचकर आमदनी भी होती है।
किसानों की चुनौतियां और अनुभव
बिहार में पानी की समस्या सबसे बड़ी चुनौती है। सरकारी सिंचाई की सुविधा नहीं होने के कारण किसान नहर, नाला या अन्य उपलब्ध पानी का इस्तेमाल करते हैं। इसके बावजूद कई किसानों की मेहनत और अनुभव की वजह से फसल सफल होती है। किसान बताते हैं कि आलू की खेती में मेहनत और ध्यान की जरूरत होती है। मिट्टी की जुताई, बीज डालना, खाद डालना, पानी देना, कीट और रोगों का इलाज इन सभी चीजों पर ध्यान देना पड़ता है।
राम दहिन रॉय और अन्य किसान बताते हैं कि आलू की खेती से ना केवल खाने की जरूरत पूरी होती है बल्कि स्थानीय बाजार में बेचकर थोड़ी बहुत आमदनी भी मिलती है। अगर मौसम सही हो और सिंचाई समय पर की जाए तो किसान अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं।
किसानों की आर्थिक लाभकारी रणनीति
किसान बताते हैं कि आलू की खेती से उन्हें हर साल अच्छा मुनाफा मिलता है। 1 किलो बीज से 100 किलो आलू निकल सकता है। मार्केट में आलू के दाम के अनुसार उनकी आमदनी भी तय होती है। किसान यह भी बताते हैं कि बड़े पैमाने पर मार्केट में भेजी जाने वाली आलू की फसल के लिए अलग सिंचाई और मेहनत की जरूरत होती है। छोटे किसानों के लिए खेतों में उपलब्ध पानी का इस्तेमाल करना ही आसान तरीका है। साथ ही उन्होंने बताया कि घर पर खाने के लिए उगाई जाने वाली आलू की फसल में कोई हानिकारक असर नहीं होता। गंदा पानी इस्तेमाल करने के बावजूद आलू खाने योग्य रहता है।
पटना जिले के किसान धान की कटाई के बीच आलू की बुवाई करके अपनी साल भर की जरूरत और आमदनी सुनिश्चित कर रहे हैं। हालांकि बिहार में सिंचाई की सरकारी सुविधा कम है लेकिन किसान पास के नहर, नाला और उपलब्ध पानी का इस्तेमाल करके अपनी फसल उगाते हैं। सही समय पर बुवाई, मिट्टी की तैयारी, निराई-गुड़ाई और समय-समय पर सिंचाई और दवा के छिड़काव से आलू की फसल अच्छी होती है। इससे किसान न केवल अपनी घरेलू जरूरतें पूरी कर पाते हैं बल्कि कुछ मात्रा में आलू बाजार में बेचकर आर्थिक लाभ भी प्राप्त करते हैं।
यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’
If you want to support our rural fearless feminist Journalism, subscribe to our premium product KL Hatke



