बिहार के पटना ज़िले के कई गाँवों में घरों से निकलने वाला गंदा पानी सही तरीके से निकालने की व्यवस्था नहीं है। बड़े नाले बनवाने के बजाय इस गंदे पानी को सीधे पास की नदी या नहर में छोड़ दिया जाता है। जिसकी वजह से गंदे पानी में मच्छरों की तादाद बढ़ जाती है और बीमार होने का भी खतरा बढ़ जाता है। लेकिन दूसरी तरफ यही गन्दा पानी किसानों के लिए सिंचाई का माध्यम बन गया है।
रिपोर्ट – सुमन दिवाकर, लेखन – सुचित्रा
बिहार के फुलवारी ब्लॉक के शाहपुर गाँव में नहर के इसी गंदे पानी का इस्तेमाल आस पास के किसान खेतों में सिंचाई के लिए करते हैं। किसानों ने बताया कि यही गन्दा पानी उनकी खेती के लिए कितना फ़ायदेमंद होता है।
नहर के गंदे पानी से कर रहे खेती
नीचे दी गई तस्वीर में साफ दिखता है कि सड़क के किनारे जो नाला जैसा दिख रहा है वह असल में नहर है। उसी नहर में पाइप डालकर गाँव के घरों का गंदा पानी छोड़ा जा रहा है। पटना जिले के अधिकतर गाँवों में यही स्थिति है। लगभग सभी गाँवों का गंदा पानी सीधे नदियों और नहरों में बहा दिया जाता है जिससे पानी प्रदूषित होता है और गाँव वालों के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है।
नीचे दी गई तस्वीर में हसनपुरा (शाहपुर गाँव से आगे) की तस्वीरों में एक और गंभीर समस्या दिखती है। नहर के पास मोटर लगाई गई है, जिसे बिजली से जोड़ा जाता है। मोटर में दोनों तरफ पाइप लगाए जाते हैं एक ओर से यह नहर का गंदा पानी खींचती है और दूसरी ओर यह पानी सीधे खेतों की तरफ भेजा जाता है।
यानी, नहर में घरों से छोड़ा गया गंदा पानी मोटर के जरिए खेतों तक पहुंचाया जा रहा है, ताकि सिंचाई हो सके। गांवों में नालों की कमी और गलत निकासी व्यवस्था के कारण गंदा पानी नहर में जमा होता है और फिर यही पानी सिंचाई के लिए खेतों में जा रहा है जो खेती, मिट्टी और लोगों की सेहत, तीनों के लिए नुकसानदायक है।
नीचे दी गई फोटो में आप देख सकते हैं कि ये पाइप खेतों में सिंचाई करने के लिए इस्तेमाल होते हैं और बाजार में आसानी से मिल जाते हैं। किसान इन्हें तब खरीदते हैं जब उन्हें सरकार की ओर से मुफ्त सिंचाई का पानी उपलब्ध नहीं होता। कई किसान अपने खेतों के पास लगे समरसेबल पंप से या फिर नहर-नाले के पास मोटर लगाकर इसी पाइप के जरिए पानी खींचकर अपने खेतों तक पहुँचाते हैं।
किसानों के लिए पानी सबसे बड़ा सहारा है और इसकी कीमत वही समझता है जो खेतों में मेहनत करता है।
पानी को खेतों तक पहुंचाने में परिवार देता है साथ
फोटो में आप देख सकते हैं कि खेतों पर कई लोग खड़े हैं। सुबह-सुबह का समय है और सभी लोग अपने खेतों में पानी लगाने का इंतज़ार कर रहे हैं। इस समय खेती-किसानी का मौसम चल रहा है और फसल उगाने में पानी का सबसे महत्वपूर्ण रोल होता है। अगर खेतों में समय पर पानी नहीं दिया जाए तो फसल अच्छी नहीं होती बल्कि कई बार पूरी फसल खराब भी हो जाती है।
किसान बताते हैं कि किसी भी फसल को तैयार होने तक कम से कम दो से तीन बार पानी देना जरूरी होता है। इसी वजह से किसान सुबह होते ही, कई बार बिना कुछ खाए-पीए, सबसे पहले खेतों पर पहुँच जाते हैं ताकि वक्त पर अपनी फसल को पानी दे सकें। खेतों में पानी देने की प्रक्रिया को बिहार में “पटवन” भी कहा जाता है।
पाइप की पकड़ और खेतों में दौड़ती उम्मीद
खेतों की पतली-सी मेड़ पर बैठे किसान पाइप को पकड़े हुए हैं। पाइप से तेज़ फोर्स के साथ पानी निकल रहा है और खेतों में पटवन (सिंचाई) हो रहा है। चारों तरफ नजर डालें तो केवल खेत ही खेत दिखाई देते हैं और सभी में पानी दिया जा रहा है।
नीचे दी गई तस्वीर में मेड़ पर बैठे किसान का नाम उमेश पासवान है। वह बताते हैं कि उनकी पूरी उम्र खेती करते ही बीत गई। वे अपनी खेती भी संभालते हैं और दूसरों के खेतों में भी सब्ज़ी और दूसरी फसलें बोते हैं।
जिस खेत में अभी वे पानी दे रहे हैं उसमें जानवरों के चारे के लिए बर्सिम बोया गया है। इसके बगल वाले खेतों में प्याज, लहसुन, धनिया, पालक, सरसों और चना की फसलें लगी हुई हैं। इन सभी खेतों में बारी-बारी से पानी देना पड़ता है।
उमेश पासवान बताते हैं कि आगे उनकी अपनी बोरिंग भी है लेकिन इस खेत के पास नहर होने की वजह से वे नहर का पानी इस्तेमाल कर रहे हैं। वे कहते हैं कि नहर का पानी खेतों के लिए ज्यादा अच्छा माना जाता है।
नहर का गन्दा पानी खेतों के लिए फ़ायदेमंद
गाँवों में घरों का जो गंदा पानी नसीब से नहर में आता है, वह खेतों के लिए फायदेमंद बन जाता है क्योंकि उसमें ऐसे प्राकृतिक तत्व और सूक्ष्म जीव (जैसे कि कुछ प्रकार के कीटाणु-बैक्टीरिया) होते हैं जो मिट्टी को उपजाऊ बनाने में मदद करते हैं। इसी वजह से किसान इस पानी को सिंचाई के लिए उपयोग करते हैं जिससे फसलें अच्छी होती हैं।
किसान दिनेश साह बताते हैं कि पहले के ज़माने में खेतों को उपजाऊ बनाने के लिए लोग सड़ी-गली खाद, घर का कचरा और चूल्हे की राख खेतों में डालते थे। इससे मिट्टी की ताकत बढ़ती थी। उसी तरह, आज नहर का जो पानी खेतों में डाला जाता है वह भी फसल की उपज को बढ़ाने में मदद करता है।
वे मानते हैं कि आजकल नहर का पानी दिखने में जरूर गंदा लगता है क्योंकि इसमें घरों से निकलने वाला बर्तन धोने का पानी, नहाने का पानी, कपड़ा धोने का पानी और कई जगहों पर मल-मूत्र का पानी भी मिल जाता है। लेकिन जब इस नहर के पानी को मोटर के ज़रिए खींचकर पाइप से खेतों तक पहुँचाया जाता है तो पाइप से अपेक्षाकृत साफ पानी निकलता है और बड़ी गंदगी वहीं नहर में रह जाती है।
दिनेश साह बताते हैं कि “इस पानी का फायदा यह है कि जहाँ सामान्य पानी में फसल को 3–4 बार खाद देना पड़ता है वहीं नहर के इस पानी में केवल 1–2 बार खाद डालने से ही काम हो जाता है। क्योंकि इस पानी में पहले से ही जैविक तत्व, सूक्ष्म जीव और प्राकृतिक पोषक पदार्थ मौजूद होते हैं जिससे फसल को अतिरिक्त ताकत मिलती है। इस पानी के इस्तेमाल से फसल में लगने वाली कई तरह की बीमारियाँ भी कम हो जाती हैं।”
हसनपुरा और आसपास के इलाके में चार से छह किसान ऐसे हैं जो नहर के इसी पानी से सिंचाई करते हैं। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि ये किसान आर्थिक रूप से कमजोर हैं और नहर का पानी उनके लिए सबसे आसान और सस्ता विकल्प है।






