खबर लहरिया Blog बिहार: खतरों के बीच दी जा रही शिक्षा, स्कूल की हालत जर्जर

बिहार: खतरों के बीच दी जा रही शिक्षा, स्कूल की हालत जर्जर

मसौढ़ी ब्लॉक के गांव घोरहुआ मुसहर प्राथमिक विद्यालय के आस-पास का इलाका खतरों से कम नहीं है क्योंकि यह नक्सलवादी क्षेत्र के अंतर्गत आता है जिससे स्कूल आने-जाने पर बच्चों और शिक्षकों दोनों पर खतरा बना रहता है। वे खतरों से (नक्सलवादी इलाकों) से गुजर कर स्कूल पहुँचते है जहां स्कूल में भी उन्हें खतरा महसूस होता है क्योंकि यहां कभी भी कोई हादसा हो सकता है और हुआ भी है।

Bihar News: Dilapidated condition of school

रिपोर्ट – सुमन 

शिक्षित होना और शिक्षा व्यवस्था का मजबूत होना आज के समय में बेहद जरूरी है। शिक्षा जहां दी जाती है और जहां बच्चे शिक्षित होते हैं, उस जगह का सुरक्षित होना भी आवश्यक है। विद्यालय जहां आप शिक्षा पाकर ही अपने आप को, अपने परिवार और अपने समाज को सुरक्षित रख सकते हैं, लेकिन अगर वही जगह सुरक्षित महसूस न करवा पाए तो? मतलब जहां आप बैठकर शिक्षा ले रहे हो या शिक्षा दे रहे हो तो क्या विद्यालय के ढांचे में वो मजबूती है? जिससे आप ध्यान लगाकर ये काम पूरा कर सको। यदि स्कूल की इमारत ही जर्जर हो या उनकी दीवारों और छत इतनी कमजोर हो कि देखकर हमेशा ये डर बना रहे की अभी गिर जाएगी। इन सभी कथनों के पीछे पटना जिले के मसौढ़ी ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले गांव घोरहुआ मुसहर के प्राथमिक विद्यालय की सच्चाई है, जिसकी इमारत और छत दोनों ही जर्जर हालत में है।

मसौढ़ी ब्लॉक के गांव घोरहुआ मुसहर प्राथमिक विद्यालय के आस-पास का इलाका खतरों से कम नहीं है क्योंकि यह नक्सलवादी क्षेत्र के अंतर्गत आता है जिससे स्कूल आने-जाने पर बच्चों और शिक्षकों दोनों पर खतरा बना रहता है। वे खतरों से (नक्सलवादी इलाकों) से गुजर कर स्कूल पहुँचते है जहां स्कूल में भी उन्हें खतरा महसूस होता है क्योंकि यहां कभी भी कोई हादसा हो सकता है और हुआ भी है।

शिक्षक प्रदीप कुमार जी बताते हैं कि “अभी हाल ही में बिहार सरकार ने शिक्षक भर्ती निकाली थी जो पहले शिक्षक भर्ती हुई थी उसी पर मेरा नामांकन हुआ था। मैं इस स्कूल में शिक्षक के रूप में नियुक्त हुआ हूँ। स्कूल में आए हुए और बच्चों को पढ़ाते हुए मुझे अभी 6 से 8 महीना ही हुआ है। जब से मैं आया हूँ मुझे हमेशा से यही डर रहता है कि आज मैं घर सुरक्षित जाऊंगा या नहीं? उसके दो कारण हैं, पहला कारण कि यह एरिया अभी भी नक्सलवादी कहलाता है। अभी भी 20% यहां नक्सलवादी रहते हैं इसलिए 4:00 के बाद यहां पर रुकना सुरक्षित नहीं है। स्कूल शहर से काफी दूर पड़ता है इतना अंदर घुसकर है। आए दिन डर बना रहता है कि कहीं कोई लूटपाट, मारपीट और कोई बड़ी घटना ना हो जाए। जब भी हम स्कूल आते हैं तो हमको रिक्शा बुक करके स्कूल आना पड़ता है और जाने के लिए भी वही रास्ता होता है। हम कोशिश करते हैं कि 4:00 बजे के पहले या 4:00 बजे तक यहां से निकल जाए। दूसरा कारण यह कि स्कूल की स्थिति बहुत खराब है।”

स्कूल में बच्चे कमरों से बाहर पढ़ने को मजबूर

शिक्षक कोमल बताती हैं कि “मुझे भी प्रदीप के साथ में ही जॉब मिली थी। यहां पर शिक्षक के रूप में पिछले 6 महीने से कार्यरत हूँ। इस स्कूल में जितने भी बच्चे पढ़ने आते हैं वह मुसहर समाज के हैं। यह स्कूल एक से पांचवी तक है, यहां पर तीन क्लास रूम है और एक दलान है। तीनों क्लास रूमों की जो स्थिति है वह काफी जर्जर हालत में है, कभी भी यह गिर सकता है। जब मैं शुरू में आई थी तो अंदर बच्चे पढ़ते थे तो कुछ ना कुछ कंकड़ हमलोग के ऊपर से गिरता रहता था, जिसके चलते हमने बच्चों को दलान में रख कर पढ़ाना शुरू कर दिया।1 से 5 तक सारे बच्चे एक साथ बैठकर पढ़ाई करते हैं। हम बच्चों को कमरे में नहीं बैठा सकते क्योंकि अगर कमरे के अंदर हमने बैठाया और कोई बड़े हादसा हो गया तो उसकी जिम्मेदार कौन लेगा? अभी हाल ही में बहुत सारा मलबा गिरा है और उस समय पर बच्चे वहां पर पढ़ाई कर रहे थे लेकिन बच्चों को कोई चोट नहीं आई।”

स्कूल की छत का गिरा मलबा

घोरहुआ मुसहर के प्राथमिक विद्यालय की रसोइया मीना देवी और पार्वती देवी हैं। मीना देवी बताती हैं कि “स्कूल में जब खाना बनाने जाती हूँ तो काफी तरह की परेशानी आती हैं। पहले तो यह कि स्कूल की जो छत है वह बार-बार गिरती, झड़ती रहती है जिसको लेकर के खाना बनाने में दिक्कत बनी रहती हैं। कभी कुछ खाने में गिर न जाए इसके लिए लोगों को देखते रहना पड़ता है। खाना में कुछ छत से झड़ जाता है तो खराब भी हो जाता है इसके चलते। अभी बरसात का मौसम है, दो से तीन दिन लगातार थोड़ी-थोड़ी बारिश हुई उसके चलते छत का मलबा नीचे गिर गया। उस समय हम दोनों खाना बना रहे थे। मैं पार्वती से थोड़ा दूर में थी और पार्वती के कंधे पर मलबा गिरा जिससे उसके कंधे पर चोट आ गई। हमने मैडम को जाकर बताया। हमें लगभग काम करते हुए 3 साल से ऊपर हो गया लेकिन इस स्कूल की स्थिति ऐसी है।”

शिकायत कर-कर के विभाग से हारी

मंजू सिंह जो प्राथमिक विद्यालय की हेड टीचर है उन्होंने बताया कि उन्हें शिक्षक हुए 18 साल हो गए पर ऐसा स्कूल कहीं नहीं देखा। जब से वह इस स्कूल में आई हैं तब से स्कूल की मरम्मत का काम करवा रही है। सरकार हर साल स्कूल के रख-रखाव के लिए प्राथमिक विद्यालय को 25,000 देती है। उसके हिसाब से जो उनसे हो सका वह उन्होंने किया लेकिन यह स्कूल इतना जर्जर है कि इसमें रिपेयरिंग से बात नहीं बनेगी। इस स्कूल को नए सिरे से बनवाने की जरूरत है जिसको लेकर वह कई बार ब्लॉक शिक्षा अधिकारी (BEO) साहब के पास शिकायत लेकर गई। उन्होंने 3 साल पहले ही एक लिखित रूप में शिकायत एप्लीकेशन दिया था जिसकी उन्हें रिसीविंग भी मिली और इतने साल बाद अब वह रिसीविंग उनके पास नहीं है।

द हिन्दू की 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने सरकारी स्कूलों के रखरखाव के लिए स्कूल फंड की राशि को संशोधित कर ₹45,000 प्रति वर्ष कर दिया है, जो नामांकित छात्रों की संख्या के आधार पर है। इससे पहले, विभाग छात्रों की संख्या की परवाह किए बिना केवल ₹2,500 से ₹5,000 प्रति वर्ष प्रदान कर रहा था।

इतनी महंगाई में इतने कम पैसों में स्कूल की कितनी कमियां पूरी हो सकेगी? जिन स्कूलों की दीवारें गिर कर आत्महत्या कर रही हैं उनको जीवन कैसे दिया जाए? उन्हें जीवित करने के लिए स्कूलों को मरम्मत की जरूरत नहीं बल्कि एक नया जीवन देने की आवश्यकता है।

मंजू सिंह का कहना है कि “अभी तक इस स्कूल को बनवाने के लिए कोई भी नहीं आया। शुरू-शुरू में 3 साल पहले जब मैंने शिकायत दी थी तो तब वहां से कोई एक ब्लॉक शिक्षा अधिकारी (BEO) आए थे, उन्होंने जांच की और बोले कि बनवा देंगे लेकिन सिर्फ रिपेयरिंग की बात कर रहे थे। हम रिपेयरिंग नहीं करवाना चाहते थे क्योंकि यह रिपेयरिंग के लायक है ही नहीं। स्कूल अगर बन जाएगा रिपेयरिंग हो जाएगी और फिर किसी के ऊपर कोई बड़ी घटना घट गई तो फिर उसका जिम्मेदार कौन होगा? इसीलिए मैंने उसको रुकवा दिया। फिर से भी सर से बोला कि इसे बनवा दिया जाए, यहां पर ना तो शौचालय की सुविधा है, न ही सुरक्षा, ना ही रास्ते की सुविधा है।”
सरकार की तरफ से अब तक स्कूल के लिए नहीं मिला बजट

खबर लहरिया ने मसौढ़ी ब्लॉक में ब्लॉक शिक्षा अधिकारी (BEO) राजेंद्र ठाकुर से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने बताया कि अभी का जो सरकार का बजट आ रहा है वह सभी स्कूलों में समरसेबल कर पानी की व्यवस्था करने के लिए आ रहा है। स्कूल भवन जो जर्जर हो गए हैं उनको दोबारा से नए सिरे से बनवाने के लिए सरकार ने अभी तक कोई बजट नहीं भेजा। हमने उनकी शिकायत रख ली है और इसको आगे लेकर के जाएंगे। बजट जनवरी-फरवरी में आया तो फिर इसमें आगे काम हो सकता है लेकिन अभी के लिए तो बच्चे ऐसे ही पढ़ेंगे और अगर ज्यादा स्थिति खराब देखी गई तो बच्चों को दूसरे स्कूलों पर ट्रांसफर कर दिया जाएगा।

बच्चों के परिवार वालों को भी सताती है चिंता

उषा देवी बताती हैं कि हम लोग मुसहर समुदाय से आते हैं। मेरे बच्चे भी इसी स्कूल में पढ़ते हैं। स्कूल की हालत इतनी खराब है कि जो मेरा बेटा पढ़ने के लिए स्कूल जाता है तो मुझे हमेशा डर बना रहता है कि कहीं उसे कुछ हो ना जाए।”

रिंकी देवी कहती है कि, “मेरी बेटी छोटी है जो स्कूल में पढ़ने जाती है तो मुझे डर बना रहता है कि कहीं खेलते-खेलते किसी कमरे में चली गई। बरसात का मौसम है कहीं छत का मलबा गिर गया तो मैं क्या करूंगी? हम लोग गरीब हैं और वंचित समाज से आते हैं शायद इसलिए हमारे तरफ जो स्कूल है उसको दोबारा से बनाने और उस पर काम करने के लिए कभी कोई नहीं आता है।”

 

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