बिहार के नवादा ज़िले से आई यह घटना सिर्फ़ कानून-व्यवस्था की नाकामी को ही नहीं दिखाती बल्कि समाज में बढ़ती नफ़रत की एक भयावह तस्वीर भी सामने लाती है। बिहार के नवादा जले के रोह प्रखंड के भट्टपार गांव में हुई मॉब लिंचिंग में नालंदा ज़िले के रहने वाले 35 वर्षीय अतहर हुसैन को भीड़ ने बुरी तरह पीटा था।
गंभीर हालत में उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन बिहार शरीफ सदर अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। अतहर की मौत के बाद इलाके में गहरा सन्नाटा है और उनके परिवार पर दुखों का भारी बोझ टूट पड़ा है।
घटना का विवरण
इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्ट अनुसार मोहम्मद अतहर हुसैन नालंदा ज़िले के गगन दिवान गांव के निवासी थे। वे साइकिल पर कपड़े बेचकर अपने परिवार की रोज़ी-रोटी चलाते थे और कुछ समय अपने ससुराल बरुई गांव में भी रहते थे। यह घटना जब वे रोह थाना क्षेत्र के भट्टापार गांव के पास से जा रहे थे। इसी दौरान उनकी साइकिल पंक्चर हो गई। अतहर के भाई मोहम्मद शकीब आलम के मुताबिक पंक्चर ठीक कराने के लिए उन्होंने आसपास की दुकान के बारे में पूछा। वहां मौजूद लोगों ने उनसे नाम और काम पूछा और जैसे ही उन्होंने अपना नाम मोहम्मद अतहर हुसैन बताया भीड़ ने उन पर हमला कर दिया।
अस्पताल में दिए गए बयान और सामने आए एक वीडियो में अतहर हुसैन ने हमले की पूरी आपबीती बताई थी। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि हमलावरों ने सबसे पहले उन्हें साइकिल से नीचे खींच लिया और जेब में रखे 18 हज़ार रुपये छीन लिए। कुछ ही देर में 15–20 लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई। इसके बाद उनके हाथ-पैर बांधकर उन्हें एक कमरे में बंद कर दिया गया और ईंटों लाठियों व लोहे की रॉड से बुरी तरह पीटा गया। वीडियो में अतहर द्वारा बताया गया कि हमलावरों ने पिलास से उनके कान और उंगलियों के सिरे काट दिए और गर्म रॉड से शरीर को दागा जिससे चमड़ी उखड़ गई। उन्होंने कहा कि कपड़े उतरवाकर निजी अंगों पर पेट्रोल डाला गया और सीने पर चढ़कर कुचला गया जिससे मुंह से खून निकलने लगा। कुछ मीडिया रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि उन्हें पेट्रोल डालकर जलाने की कोशिश की गई और करंट देने जैसी यातनाएं दी गईं हालांकि इन बातों की आधिकारिक पुष्टि अब तक नहीं हो पाई है।
इलाज के दौरान अतहर हुसैन की मौत
इस मामले में अतहर की पत्नी शबनम परवीन ने भट्टापार गांव के 10 नामजद और कुछ अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। शिकायत में आरोप लगाया गया है कि उनके पति पर चोरी का झूठा इल्ज़ाम लगाकर उन्हें बांधा गया, बेरहमी से पीटा गया, गर्म रॉड से दागा गया, हाथ तोड़ा गया और पिलास से कान काटकर अमानवीय यातनाएं दी गईं। हमले के बाद अतहर को पहले रोह के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया। हालत गंभीर होने पर उन्हें नवादा सदर अस्पताल रेफर किया गया और वहां से बेहतर इलाज के लिए एक अन्य अस्पताल भेजा गया जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। इसके बाद मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में और फोरेंसिक टीम की देखरेख में उनका पोस्टमॉर्टम कराया गया।
इस मामले में दर्ज एफआईआर में भारतीय न्याय संहिता की कई धाराएं लगाई गई हैं। इनमें गैरकानूनी भीड़ और दंगे से जुड़ी धारा 190, 191(2) और 191(3) शामिल हैं। इसके अलावा गंभीर चोट पहुंचाने और खतरनाक हथियारों के इस्तेमाल से संबंधित धारा 126(2), 115(2), 117 और 118 जोड़ी गई हैं। उकसावे और साझा मंशा से जुड़े आरोप धारा 109 और 74 के तहत दर्ज किए गए हैं। अतहर हुसैन की मौत हो जाने के बाद धारा 303(2) के तहत हत्या का आरोप भी एफआईआर में शामिल कर लिया गया है।
आरोपियों की गिरफ़्तारी
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में नवादा के एसपी अभिनव धीमान के हवाले से बताया गया है कि मामले की जांच के लिए सदर एसडीपीओ की अगुवाई में एक विशेष टीम बनाई गई है। पुलिस ने पहले 24 घंटे के भीतर चार आरोपियों को पकड़ लिया उसके बाद चार और लोगों को गिरफ्तार या हिरासत में लिया गया। इस तरह अब तक कुल आठ लोगों पर कार्रवाई की जा चुकी है और बाकी आरोपियों की तलाश जारी है।
“वह परिवार का एकमात्र कमाने वाला सदस्य था। वह पिछले 20 वर्षों से इस व्यवसाय में था लेकिन उसे कभी किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा। क्या गलत हुआ और उसे क्यों निशाना बनाया गया इसकी जांच पुलिस करेगी” द न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने परवीन के हवाले से कहा।”
यह वारदात किसी एक घटना तक सीमित नहीं है। साल 2025 में नवादा जिले में भीड़ हिंसा के कई मामले सामने आ चुके हैं। फरवरी में चोरी के शक में दो युवकों को पीटा गया जिसमें एक युवक की मौत हो गई थी। वहीं अगस्त में डायन होने के आरोप में एक बुज़ुर्ग दंपति पर हमला हुआ जिसमें बुज़ुर्ग व्यक्ति की जान चली गई। लगातार हो रही ऐसी घटनाएं नवादा की कानून-व्यवस्था और समाज की सोच पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं।
अतहर हुसैन की मौत सिर्फ एक इंसान की मौत नहीं बल्कि पूरे समाज के लिए शर्मनाक सच है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि नाम और पहचान पूछकर लोगों की जान लेने का सिलसिला आखिर कब रुकेगा और भीड़ को कानून अपने हाथ में लेने से कब रोका जाएगा।
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