पटना में ‘पासमांदा मिलन समारोह’ आयोजित कर पिछड़े वर्ग के मुसलमानों को साथ लाने का संदेश देने के कुछ ही महीनों बाद बीजेपी ने बिहार विधानसभा चुनाव के लिए अपने 101 उम्मीदवारों की पूरी सूची जारी की है जिसमें एक भी मुस्लिम नाम शामिल नहीं है। बिहार में पासमांदा मुसलमान- जो अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में शामिल हैं लेकिन दलित मुसलमानों को अब तक औपचारिक मान्यता नहीं मिली- राजनीति में लगातार हाशिए पर रहे हैं। सेक्युलर पार्टियों ने भी उन्हें प्रतीकात्मक रूप से साथ रखा, मगर सत्ता और टिकट वितरण में उनकी हिस्सेदारी सीमित रही। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पासमांदा तबका अब एक संगठित राजनीतिक शक्ति बनकर बिहार की राजनीति में अपनी हिस्सेदारी तय कर पाएगा?
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