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चमकी बुखार से गई 180 बच्चों की जान

उत्तर बिहार में लगभग चार हफ्ते बाद भी चमकी-बुखार से बच्चों की मौत का सिलसिला तो थमा मगर नए मरीजों का आना नहीं रूका। एसकेएमसीएच व केजरीवाल अस्पताल में कुल मिलाकर नौ बच्चों को भर्ती किया गया है। स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि शिशु रोग विशेषज्ञों की टीम एसकेएमसीएच के पांच पीआईसीयू में बेहतर इलाज कर रही है।

स्थानीय डॉक्टरों को टीम के प्रोटोकॉल पर काम करना होगा। इसमें किसी तरह की लापरवाही नहीं होनी चाहिए। चमकी बुखार से पीड़ित नौ नये मरीजों में से एसकेएमसीएच में आठ व केजरीवाल अस्पताल में एक को भर्ती किया गया। 27 जून तक एईएस से 180 बच्चों की जानें जा चुकी हैं। जबकि 560  मामले सामने आ चुके हैं।

चमकी बुखार जहानाबाद, औरंगाबाद, नवादा, पटना, वैशाली, मुजफ्फरपुर, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण जिलों में फैला हैं। आपको बता दें कि इसको दिमागी बुखार और जापानी बुखार भी कहते हैं।

हर साल बिहार के कई शहरों में दिमागी बुखार या चमकी बुखार की चपेट में आकर सैकड़ों बच्चों की मौत हो जाती है। इस साल भी अब तक इस बीमारी से बड़ी संख्या में बच्चों की मौत हो चुकी है। उल्लेखनीय है कि मुजफ्फरपुर भारत में सबसे बड़ा लीची उत्पादक क्षेत्र है और एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) या चमकी बुखार के लिए इसे सबसे ज्यादा जिम्मेदार माना जा रहा है। लेकिन ये अफवाह बताई जा रही है।

चमकी बुखार की वजह से बिहार सरकार चर्चा के केंद्र में हैं। करीब 69 बच्चों की मौत के बाद बिहार सरकार की नींद टूटी और व्यवस्था को चाकचौबंद किया गया। ये बात अलग है कि मासूम बच्चों की मौत का सिलसिला जारी है।

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देखा जाए तो देश में ग्रामीण क्षेत्रों की स्वास्थ्य सुविधा की स्थिति बहुत ही बेकार है, जिसके कारण मरीजों को सही समय में उचित स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिलती। बिहार में चमकी बुखार में हो मौतें भी इस ही तरह की असुविधा का उदाहरण है। अभी तक 180 बच्चों की मौत इस बुखार से हुई है, जो किसी भी देश के विकास में प्रश्नचिन्ह है, जो खुद को विकास की राह में चलने वाला बता रहा हो।