यहाँ की रहने वाली एक संघर्ष शील महिला सकुन्तला जो 20 किलोमीटर अपने गांव से मजदूरी करने जाती हैं सकुन्तला का कहना है की पहले मैं मजदूरी करने जाती थी तो साधन नहीं मिलते थे।लॉकडाउन में भी किराया दुगुना लगता था, इस वजह से साइकिल चलाकर मजदूरी के लिए जा रही हूं। हमने सोचा है की जितने का किराया लगता है |
वही पैसे में कुछ घर खर्चा चलेगा, नहीं हमारे कुछ अऐ नहीं है मजदूरी ही है नहीं खेती है 5लोगो का परिवार है सीफ मजदूरी के ही निरभे रहते हैं मैं अपने गांव घर में कुछ दूर पैदल साइकिल ढनग के जाती हूं और मुझे गांव के लोग बहुत बेकार होते हैं उसी साइकिल चला कर जाती है तरह-तरह की बातें बताते हैं लेकिन मैं गांव के लोगों की कुछ भी नहीं सुनती हूं क्योंकि मुझे अपना परिवार भी चलाना है साड़ी पहनकर ही मैं साइकिल चलाती हूं |