भारत जोड़ो यात्रा के ज़रिये जनता के बीच पहचान बनाना कांग्रेस के लिए काफी सफल साबित हुआ लेकिन यात्रा के उद्देश्य में जहां व्यापक भारत के सपने की बात की गयी वहां ग्रामीण भारत तटस्थ नज़र आया।
राहुल गांधी के नेतृत्व में शुरू की गयी “भारत जोड़ो यात्रा” में कई पहलु निकलकर सामने आएं। इसके साथ ही यात्रा के उद्देश्य को लेकर एक बेहद ज़रूरी सवाल भी दिखा जो यह था कि राहुल गाँधी के व्यापक भारत के सपने में ‘ग्रामीण भारत’ का कोई ज़िक्र नहीं था। ग्रामीण भारत की कल्पना उस व्यापक भारत के परिदृश्य में नहीं थी।
इससे परे लोगों ने राहुल गाँधी को एक नए नेता के रूप में उभरते हुए देखा जो समझदारी से लोगों की समस्याओं के बारे में चर्चा कर रहे थे। लोगों से मिल रहे थे शायद इसलिए जहां-जहां राहुल गाँधी की यात्रा गयी, वहां-वहां लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा।
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यात्रा से उभरे नए राहुल गाँधी
राहुल गांधी ने श्रीनगर में समापन रैली में कहा, “मैंने यह (यात्रा) अपने लिए या कांग्रेस के लिए नहीं, बल्कि देश के लोगों के लिए किया है। हमारा उद्देश्य उस विचारधारा के खिलाफ खड़ा होना है, जो इस देश की नींव को नष्ट करना चाहती है।” .
अगर यात्रा से राहुल गाँधी को मिली सफलता के बारे में बात की जाए तो आम लोग एक बार फिर से कांग्रेस को भावी सरकार के रूप में देखना चाहते हैं। उनके लिए एक नए राहुल गाँधी ने जन्म लिया है जिनकी बातें आम जनता के लिए है। इससे कहीं न कहीं 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को फ़ायदा पहुंचेगा। राजनीतिक व सामाजिक दोनों ही दृष्टिकोण से इस यात्रा का लोगों पर प्रभाव पड़ा।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, यात्रा में हर दिन राहुल 25 किलोमीटर का पैदल सफर तय कर रहे थे। राहुल की पैदल यात्राओं व ठंड में सिर्फ हॉफ-टीशर्ट, तेज़ बारिश में खड़े होकर स्पीच देने से लेकर कई बातों ने यात्रा के दौरान जनमानस को प्रभावित करने का काम किया।
राहुल गाँधी ने यात्रा के दौरान कहा था, “नफरत के बाजार में, मैं मोहब्बत की दुकान खोलता हूं।” जो सीधे तौर पर बीजेपी सरकार पर व्यंग और चुनौती थी जो इस यात्रा के दौरान पूर्ण रूप से देखी गयी।
देखा जाए तो जनता के बीच अपनी पहचान बनाने का भारत जोड़ो यात्रा एक सफल प्रयास था।
यूपी के बागपत में यात्रा में शामिल हुए कई लोगों ने खबर लहरिया को बताया कि ” हम राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में दखने चाहते हैं।” लोगों ने आगे कहा, लोगों का कहना है, कि राहुल गांधी एक योद्धा हैं। उनका उद्देश्य नफरत की राजनीति खत्म करना है। राहुल गांधी की छवि को खराब करने के लिए सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च किये। अडानी और अंबानी ने देश के सारे नेताओं को खरीद लिया है। ऐसे देश नहीं चलता इसलिए सरकार बदलनी है।
लोगों ने बढ़-चढ़कर बोला कि देश की अर्थव्यवस्था बर्बाद हो रही है सारी सरकारी संपत्ति प्राइवेट ठेके पर जा रही है। गरीब मजदूर भटक रहा है ऐसे में इन सब को जोड़ने की जरूरत है।
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यात्रा के उद्देश्य में ‘ग्रामीण भारत’ की कल्पना नहीं
जहां एक तरफ राहुल गाँधी की यात्रा को जनमानस का सहारा मिला वहां हमने एक पहलु यह भी देखा कि भारत के व्यापक सपने में ग्रामीण भारत के परिदृश्य की चर्चा नहीं थी जिसमें सैकड़ों लोग जी रहे हैं जो आज तक खुद को पूर्ण रूप से भारत का हिस्सा ही नहीं कह पाए।
दशकों-दशकों से कांग्रेस की राजनीति भारत ने देखी तब से जब से देश आज़ाद हुआ। समय ऐसा घूमा कि आज पार्टी फिर अपने अस्तित्व को बचाने के लिए निकली और इस दौरान वह फिर उस ग्रामीण भारत को भूल गयी जिसे उसकी ज़रूरत है। सत्ता में बैठी पार्टी, सत्ता में बैठे नेताओं ने भारत को आज तक सिर्फ ऊपरी नज़र से देखा। इसमें चाहें वर्तमान की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी की बात की जाए या फिर कांग्रेस की।
खबर लहरिया सालों से ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त समस्याओं को लेकर रिपोर्टिंग करती हुई आई है। अगर रिपोर्टिंग के नज़रिये से ग्रामीण भारत की बात की जाए तो यह वह ग्रामीण भारत है जहां आज भी कई योजनाओं के बाद लोगों के सिर पर छत नहीं है लेकिन कहने को यहां ग्रामीण आवास योजना चलाई जा रही है। यह वह ग्रामीण भारत है जहां आज भी लोगों को पानी के लिए मीलों चलना पड़ता है। प्यास बुझाने के लिए नदी के गंदे पानी, हैंडपंप से निकलने वाले आयरन युक्त पानी को पीना पड़ता है। जहां आज भी पानी उनके लिए तेल के समान है जिसे बहुत ही सोच-समझकर खर्च करने की ज़रूरत है और कहने के लिए यहां पेय जल योजना, नल जल योजना इत्यादि पानी की योजनाएं पानी की समस्याओं को दूर करने के लिए चलाई जा रही है।
यह वह ग्रामीण भारत है जिसने विकाशील देश की तरह तकनीकी युग और चकाचौंध भरी ज़िंदगी में कदम नहीं रखा। जहां लोगों के घरों में आज भी अँधेरा है लेकिन यहां सरकार कहने के लिए सौभाग्य योजना चला रही है।
इस ग्रामीण भारत में गैस स्टोव नहीं चूल्हा है जिसमें ग्रामीण भारत की महिलाएं दिन-रात उस धुएं में अपना जीवन व्यतीत करती है और बीमारी से ग्रस्त हो जाती हैं पर यहां उज्ज्वला योजना चलाई जा रही है। यह सब हास्यप्रद नहीं लगता?
यूपी के बागपत में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान खबर लहरिया की रिपोर्टर ने कई महिलाओं को लकड़ी के गट्ठर ले जाते हुए देखा। आस-पास यात्रा में भीड़ का हिस्सा बने लोग उन पर हंसते हुए नज़र आये। उनका मज़ाक बनाते दिखे। महिलाओं के लिए वह लकड़ी का गट्ठर उनके शाम के भोजन पकाने की व्यस्था थी जो उनकी समस्याओं की तरफ इशारा करती है। यही है ग्रामीण भारत की सच्चाई जहां पर समस्याओं को देखकर अनदेखा कर दिया जाता है या हँस कर भुला दिया जाता है।
बता दें, राहुल गांधी के नेतृत्व में शुरू हुई भारत जोड़ो यात्रा 30 जनवरी को कश्मीर, श्रीनगर में समाप्त हुई लेकिन कहा गया कि ये रास्ते का अंत नहीं था बल्कि यहां से कांग्रेस पार्टी की नई शुरुआत हो रही है। 150 दिन, 12 राज्य, दो केंद्र शासित प्रदेश और 3,570 किलोमीटर का लंबा सफर 7 सितंबर, कन्याकुमारी से “भारत जोड़ो यात्रा” के नाम से शुरू हुआ था।
भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस के लिए 2024 लोकसभा चुनाव हेतु कई नए रास्ते खुल गए हैं। राहुल गाँधी ने एक बार लोगों के दिलों में अपनी जगह बना ली है और इस बार राहुल गाँधी को एक सुदृढ़ नेता के रूप में लोग देख रहे हैं जो बीजेपी के खिलाफ लड़ सकता है। यात्रा में जुड़े अभिनेता, जाने-माने नेताओं ने इस यात्रा को और मज़बूती देने का काम किया। यात्रा बेहद सफल भी नज़र आई लेकिन इस यात्रा की सफलता की बात ग्रामीण भारत के परिदृश्य में की जाए तो वह अभी-भी बस एक सवाल है।
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