प्रधानमन्त्री का भाषण प्रधान मंत्री ने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना की शुरुआत 22 जनवरी 2015 को पानीपत, हरियाणा में की थी। यह योजना तीन मंत्रालयों द्वारा चलाई जा रही है जो है महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय और मानव संसाधन मंत्रालय।
इस योजना का लक्ष्य है -लिंग चुनाव की प्रक्रिया का उन्मूलन मतलब लड़का लड़की में समानता स्थापित करना साथ ही बालिकाओं का अस्तित्व और सुरक्षा सुनिश्चित करना ‘ -बालिकाओं की शिक्षा सुनिश्चित करना ‘ -बालिकाओं को शोषण से बचाना व उन्हें सही/गलत के बारे में अवगत कराना। – शिक्षा के माध्यम से लड़कियों को सामाजिक और वित्तीय रूप से स्वतंत्र बनाना है|
महिलाओं के लिए कल्याणकारी सेवाएं वितरित करने में सुधार करना है. सरल शबिना शादी ही दहेज़ की भेट चढ़ गई बेटी देखिये वाराणसी सेब्दों में कहे तो महिलाओं के लिए चलाई जानेवाली योजनाओ का पूरा लाभ दिलाना। ·
इस योजना के तहत मुख्य रूप से लड़के एवं लड़कियों के लिंग अनुपात में ध्यान केन्द्रित किया गया है. ताकि महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव और जन्म से पहले लड़का और लड़की ki जांच को रोका जा सके. · शिक्षा के साथ – साथ बेटियों को अन्य क्षेत्रों में आगे बढ़ाने एवं उनकी इसमें भागीदारी को सुनिश्चित करना भी इसका मुख्य लक्ष्य है| इस योजना को लागू करने के पीछे भी कारन था क्योकि 1961 से 0-6 साल के बच्चों में प्रति 1000 लड़कों के बीच लड़कियों की संख्या में गिरावट लगातार देखी जा रही थी.|
आकड़ो के हिसाब से 1991 में 1000 लड़कों के बीच लड़कियों संख्या 945 2001 में 1000 लड़कों के बीच लड़कियों संख्या 927 और 2011 में 1000 लड़कों के बीच लड़कियों संख्या 918 पहुँचने पर इसे खतरनाक स्थिति मानते हुए इसे सुधारने के प्रयास शुरु किये गये हैं। शुरूआती दौर में लिंग अनुपात वाले 100 जिलों में ये योजना शुरू की गई जिसे बढ़ाकर कुल 161 जिले कर दिये गये हैं
ये तो थी इस योजना की बाते की इसे क्यों लागू किया गया इससे क्या फायदे है लेकिन अब हम बात करते है इसके लागू होने और सफलता की इस योजना के तहत हमने —- विभाग में बात की -कुछ ऐसी लड़किया जो इस योजना के पात्र है ladkiyon ki baat अब बात करते है इसके बजट की भाई इतनी बड़ी योजना है तो बजट को हम कैसे भूल सकते है तो आपको बता दें की ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना पर साल 2014-15 से 2018-19 तक सरकार अब तक कुल 648 करोड़ रुपये आवंटित कर चुकी है. अब आप सोच रहे होंगे इतना बजट है फिर काम में कोताही क्यों तो आपको बता दें कुल आवंटन का 56 फीसदी से अधिक पैसा यानी कि 364.66 करोड़ रुपये ‘मीडिया संबंधी गतिविधियों’ पर खर्च किया गया. मतलब इसके प्रचार प्रसार में खर्च किया गया. वहीं 25 फीसदी से कम धनराशि जिलों और राज्यों को बांटी गई मतलब सिर्फ 159 करोड़ रुपये। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि 19 फीसदी से अधिक धनराशि जारी ही नहीं की गई. रौशनी की बाइट जब किसी योजना के बजट का इतना बड़ा हिस्सा सिर्फ प्रचार में खर्च किये जाय तो उस योजना की सफलता की आस छोड़ देनी चाहिए