इस खबर का उद्देश्य धर्मगुरुओं को बढ़ावा देना नहीं है, चाहे वो महिला धर्मगुरु हो या पुरुष।
भारतीय संस्कृति में धर्म को अत्यंत महत्व दिया जाता है और धर्मगुरु को धर्म का आधार माना जाता है। यहाँ पर धर्मगुरु को उनके अनुभव और ज्ञान के आधार पर सम्मान दिया जाता है। लोग उन्हें अपने आदर्शों और आध्यात्मिक आकांक्षाओं की प्राप्ति के लिए संदर्भ बनाते हैं। भारत में महिलाएं भी धर्मगुरु बनने की दिशा में बढ़ती जा रही हैं। इंटरनेट पर मिले आंकड़ों की मानें तो लगभग 10-15 प्रतिशत धर्मगुरु आज महिलाएं हैं। इसके कुछ मुख्य कारण महिलाओं को मिलने वाली स्वतंत्रता, समानता, सेवा का भाव, खासकर समुदाय की सेवा का भाव और विद्या प्राप्त करना देखा गया है।
ये भी देखें – धर्म की राजनीति या राजनीति का धर्म? राजनीति, रस राय
हालांकि, धर्मगुरु के कुछ दुर्भावनापूर्ण कार्यों के बारे में हमें आए दिन समाचार मिलते हैं, लेकिन भारत में लोग फिर भी उनकी भक्ति में रहते हैं क्योंकि यहाँ पर लोग धर्मगुरु को आदर्श मानते हैं और उनसे अपनी आध्यात्मिक जीवन के मुद्दों का समाधान खोजते हैं। उनके दर्शन और समाधान को ही लोग सच मानते हैं।
खबरें ऐसी भी आती हैं कि कई धर्म गुरु अपने महल बनाकर रईसी में जी रहे हैं, कई धर्म गुरु जेल में हैं, कुछ धर्म गुरुओं पर तो यौन हिंसा के भी आरोप हैं। राम रहीम सिंह जो देरा सच्चा सौदा के मुखिया थे, वो फिलहाल बलात्कार और उपद्रव के मामले में सजा काट रहे हैं। आशाराम बापू के खिलाफ भी धोखाधड़ी और बलात्कार के मामले दर्ज हैं। तो फिर इन धर्मगुरुओं में ऐसा क्या है जो लोग इनकी तरफ खिंचे चले आते हैं?
ये भी देखें – धर्मनिरपेक्ष कहे जाने वाले भारत में मुस्लिमों के साथ दमनकारी व्यवहार क्यों?
लोगों का धर्मगुरुओं पर भरोसा करना तो ठीक है लेकिन इस भरोसे की भी एक सीमा होनी चाहिए। अंधभक्ति हमें वास्तविक जीवन के वास्तविकताओं से अलग कर देती है और समाज में भी गलत प्रतिक्रियाएं फैलती हैं। इसलिए सोच समझकर ही अपनी धार्मिक भावनाओं को बुनें जिससे और किसी को तकलीफ न हो।