खबर लहरिया Blog बांग्लादेश और हमारा आंतरिक विमर्श

बांग्लादेश और हमारा आंतरिक विमर्श

बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हुए हमले की खबरों के बाद भारत के छोटे बड़े इलाकों में 2 दिसंबर को धार्मिक संगठनों ने बड़े स्तर पर प्रदर्शन किए। धार्मिक संगठन इसे “हिंदू धर्म पर हमला” बताते हुए विरोध में सड़कों पर उतर आए। उत्तर प्रदेश के बांदा, चित्रकूट, महोबा, वाराणसी, छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले समेत मध्यप्रदेश और बिहार में भी यह प्रदर्शन किए गए।

Bangladesh and Indias' Internal Discourse

                                                                                                                                                        सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार – सोशल मीडिया)

द्वारा लिखित – मीरा देवी 

बांग्लादेश में इस्कॉन के एक प्रमुख पूर्व नेता चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी को पिछले महीने रंगपुर में हिंदू समुदाय के समर्थन में विरोध प्रदर्शन के बाद ढाका में गिरफ्तार किया गया था। उन पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया है। 26 नवंबर को ढाका की एक अदालत ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद से ही लगातार देश में तनाव और ज्यादा बढ़ा हुआ है।

बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हुए हमले की खबरों के बाद भारत के छोटे बड़े इलाकों में 2 दिसंबर को धार्मिक संगठनों ने बड़े स्तर पर प्रदर्शन किए। धार्मिक संगठन इसे “हिंदू धर्म पर हमला” बताते हुए विरोध में सड़कों पर उतर आए। उत्तर प्रदेश के बांदा, चित्रकूट, महोबा, वाराणसी, छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले समेत मध्यप्रदेश और बिहार में भी यह प्रदर्शन किए गए। यह चिंता का विषय है कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर तो इतनी तीव्र प्रतिक्रिया दिखती है, लेकिन जब अपने देश में अल्पसंख्यकों पर हिंसा या अन्याय होता है, तब यही आवाजें खामोश क्यों हो जाती हैं?

ये भी पढ़ें – Sambhal violence: संभल हिंसा में अब 5 लोगों की मौत, जानें क्या है ‘हरीहर मंदिर – जामा मस्जिद’ का पूरा मामला 

बहराइच और संभल की घटनाएं: हमारी चुप्पी का प्रतीक

उत्तर प्रदेश के बहराइच में 13 अक्टूबर 2024 की शाम दुर्गा मूर्ति विसर्जन के दौरान लोगों में झड़प हो गई। बहराइच के महसी तहसील के हरदी क्षेत्र के महाराजगंज कस्बे में समुदाय विशेष के मोहल्ले से दुर्गा मूर्ति विसर्जन यात्रा निकल रही थी। खबर है कि इसी दौरान डीजे बजाने को लेकर दो समुदायों में कहासुनी हुई। कहासुनी हिंसक झड़प में बदल गई। कुछ लोगों ने छतों से पथराव शुरू कर दिया, विरोध करने पर फायरिंग कर दी, जिसमें रामगोपाल मिश्रा नामक युवक को गोली लग गई। घटना में करीब 15 से अधिक लोग घायल भी हो गए हैं। घायलों को अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने रामगोपाल को मृत घोषित कर दिया। इस घटना ने पूरे क्षेत्र को झकझोर दिया, लेकिन इसे राष्ट्रीय स्तर पर पर्याप्त कवरेज नहीं मिला।

आपको बता दें कि यूपी के संभल जिले में 24 नवंबर को स्थानीय कोर्ट के आदेश पर शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के दौरान हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई थी और करीब दो दर्जन लोग घायल हो गए थे। घायलों में पुलिस वाले भी शामिल थे। यह घटना न केवल इंसानियत पर सवाल उठाती है, बल्कि हमारी कानून व्यवस्था की विफलता को भी उजागर करती है।

मणिपुर: आग में जलता पूर्वोत्तर

मणिपुर में तकरीबन साल होने को आया है। वहां के लोग जातीय हिंसा का सामना कर रहे हैं। कुकी और मैतेई समुदायों के बीच विवाद ने हजारों लोगों को बेघर कर दिया, सैकड़ों जानें चली गईं। महिलाओं पर अमानवीय अत्याचार की घटनाएं सामने आईं, लेकिन इस पर न कोई व्यापक प्रदर्शन हुआ, न ही कोई ठोस कार्यवाही। यहां तक कि राष्ट्रीय मीडिया ने भी इस मुद्दे को कुछ हफ्तों के बाद नजरअंदाज कर दिया। धार्मिक संगठन या राजनीतिक दल, जो बांग्लादेश की घटनाओं पर इतना मुखर थे। मणिपुर के इस मानवीय संकट पर मौन क्यों हैं?

इन घटनाओं पर न तो बड़े स्तर पर प्रदर्शन हुए न ही कोई व्यापक बहस। यह सवाल उठता है कि क्या ये घटनाएं हमारी प्राथमिकताओं में शामिल ही नहीं हैं? क्या हम इतने संवेदनहीन हो गए हैं कि अपनी गली-मोहल्ले की भयावह सच्चाई को अनदेखा कर बांग्लादेश जैसे विदेशी मामलों में उलझना ज्यादा आसान लगता है?

प्रदर्शन की राजनीति और वोट बैंक का खेल

धार्मिक संगठनों के प्रदर्शन अक्सर राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित होते हैं। बांग्लादेश के मामलों पर प्रदर्शन करना आसान है क्योंकि इसे धर्म और राष्ट्रवाद से जोड़कर प्रस्तुत किया जा सकता है। इससे जनता की भावनाओं को भड़काना और राजनीतिक समर्थन जुटाना आसान हो जाता है।

वहीं, मणिपुर, बहराइच या संभल जैसे मुद्दों पर प्रदर्शन करने से जटिल सवाल उठते हैं — कानून-व्यवस्था की नाकामी, सामाजिक विभाजन और सांप्रदायिकता। इन पर चर्चा से सरकार और संगठनों की असफलता उजागर हो सकती है, इसलिए इन्हें प्राथमिकता नहीं दी जाती।

किस तरह का भविष्य गढ़ा जा रहा है?

जब हम अपने देश के वास्तविक मुद्दों को अनदेखा करते हैं और बाहरी मामलों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो यह हमारे समाज के भविष्य के लिए खतरनाक संकेत है। बहराइच और संभल की घटनाएं दर्शाती हैं कि हमारे समाज में न्याय कितना कमजोर है। यदि इन मुद्दों को नजरअंदाज किया जाता रहा, तो अपराधियों का हौसला और बढ़ेगा। बांग्लादेश की घटनाओं को हमारे यहां धार्मिक भावनाओं को भड़काने के लिए इस्तेमाल करना यह संकेत देता है कि हमारा समाज एक खतरनाक दिशा में बढ़ रहा है, जहां विभाजन और नफरत प्रमुखता ले रहे हैं। मणिपुर जैसे संकट पर चुप्पी हमारे भीतर बढ़ती संवेदनहीनता को उजागर करती है। यह हमारे समाज को कमजोर और असंगठित बना रहा है। यह वक्त है कि समाज और राजनीति अपनी प्राथमिकताओं को सही करें। मणिपुर, बहराइच और संभल जैसे मामलों पर व्यापक बहस और ठोस कार्रवाई होनी चाहिए।

मीडिया संगठनों की जवाबदेही, समाज की भूमिका

मीडिया और धार्मिक संगठनों को बाहरी मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने से ज्यादा अपने देश के ज्वलंत प्रश्नों को उठाने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। नागरिकों को भी अपनी आवाज उठानी होगी। जब तक लोग मणिपुर या संभल जैसे मुद्दों पर प्रदर्शन नहीं करेंगे, तब तक नेताओं और संगठनों की प्राथमिकताएं नहीं बदलेंगी।

भविष्य गढ़ना हमारी जिम्मेदारी है। यदि हम आज मूकदर्शक बने रहे, तो आने वाली पीढ़ियों को एक विभाजित और असंवेदनशील समाज विरासत में मिलेगा। हमें यह तय करना होगा कि हमारा समाज सहिष्णुता और न्याय के सिद्धांतों पर खड़ा होगा या नफरत और अनदेखी के ढेर पर।

 

‘यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’

If you want to support  our rural fearless feminist Journalism, subscribe to our  premium product KL Hatke