उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा हिस्सा माना जाता है बुन्देलखण्ड। यहां की जमीन पहाड़ी, पठारी, ऊँची-नीची, ढलान वाली, पथरीली, ककरीली है जिसके कारण बरसात का पानी जमीन पर टिकता नहीं है।
ऊंची-नीची और कंकरीली ज़मीन (साभार-गीता)
यहां बारिश और ठंडी के महीनों में ही नाला, नदियां, कुंआ और डबरो में थोड़ी बहुत पानी मिलता है। इतना ही नहीं गर्मियों में तो बहुत मुश्किल से कहीं-कहीं पानी मिलता है। यहाँ की नदियाँ, तालाब और कुएं गर्मी आते ही सूख जाते हैं क्योंकि पानी का रुकावट बहुत कम है इसलिए बहकर तेज़ी से बाहर पानी निकल जाता है। चरवाहों का समूह जो नदियों के किनारे जहाँ थोड़ा बहुत पानी मिलता है उस तरह की जगहों को खोजते हैं और खासकर भेड़ बकरियों को चराने जंगलों में जाते हैं।
बकरियां चराने जाते चरवाहा (साभार -गीता)
85 वर्षीय किसान गोरे कहते हैं कि पुराने समय के तालाब अब केवल पोखरियों के रूप में बचे हैं। पहले के समय में जिन तालाबों के किनारे गाँव बसे थे वहाँ के लोग ही तालाबों की देखभाल करते थे। उन्हें साफ़ रखते थे, गंदगी नहीं फैलाते थे लेकिन आज़ादी के बाद लोगों ने अपनी जिम्मेदारियाँ भूलकर तालाबों में कूड़ा-कचरा डालना शुरू कर दिया। अब तो तालाबों की ज़मीन पर मकान, झोपड़ियां और बाड़े भी बना लिए गए हैं जिसके कारण तालाब सिकुड़ रहे हैं और गंदगी से भरते जा रहे हैं। इतना ही नहीं कुएँ और बावड़ियाँ भी कचरे से भर दी गई हैं।
गंदगी से भरा तालाब (साभार – शिवदेवी)
भांवरपुर की रहने वाली एक महिला का कहना है कि एक समय था जब नदी, तालाब, कुएँ और बावड़ियाँ गाँवों के लिए अमृत-कुंड जैसे हुआ करती थीं जो आज खुद लोग नष्ट कर रहे हैं। जब जल स्रोत ही नष्ट हो रहे हैं तो पानी की समस्या तो बढ़ेगी ही।
नष्ट होते जल स्त्रोत का गवाह है ये कुंआ (साभार -सुनीता)
आगे वह महिला कहती हैं कि अन्य गांवों में भले ही पानी के लिए काफी सुधार हुए हों और जल जीवन मिशन योजना भी आ गई हो लेकिन उनका गांव आज भी पानी के संकट से जूझ रहा है। उसका कारण है कि गांव का पहाड़ी इलाका होना जिसके कारण पानी का स्त्रोत बहुत ही नीचे है। बोर भी जल्दी सक्सेज नहीं होते और कुंआ, नदी और तालाब भी साथ नहीं देते।
लोग शहरों और गाँवों के गंदे नालों को भी तालाबों में मिला देते हैं जिससे ये पानी उपयोग के लायक नहीं रहता। जबकि तालाबों का पानी जन-निस्तार के लिए होता है जैसे स्नान, बर्तन और कपड़े धोना, जानवरों को पीने का पानी मिलना। यहां तक कि कहीं-कहीं तो लोग तालाब और नदियों के पानी को पीने और खाना बनाने तक के लिए इस्तेमाल करते है। इसका जीता जागता उदाहरण है मध्य प्रदेश का ढोडन गांव जो पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र के अंदर बसा हुआ है।
इसलिए जरूरी है कि तालाबों और नदियों में गंदे नाले गिराने पर रोक लगे और इसके लिए ग्राम पंचायतों और नगर पालिकाओं को जागरूक किया जाना चाहिए।
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