बांदा जिले की शहजादी अब इस दुनिया में नहीं रहीं। अबू धाबी की अदालत ने उन्हें हत्या के आरोप में फांसी की सजा दी, जो 15 फरवरी को पूरी कर दी गई। लेकिन उनके परिवार को इसकी आधिकारिक जानकारी तक नहीं दी गई। 14 फरवरी की रात उनकी बार आखिरी बार कॉल पर बात हुई, जिसमें उन्होंने बताया कि उन्हें ‘काली कोठरी’ में डाल दिया गया है। इसके बाद परिवार की उम्मीदें टूट गईं। न सरकार ने कोई पहल की, न कोई मदद मिली।
भारत सरकार अकसर दावा करती है कि वह अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए हर संभव प्रयास करती है। लेकिन शहजादी के मामले में ऐसा क्यों नहीं हुआ? विदेश में किसी भारतीय नागरिक पर झूठे आरोप लगें, उसे फांसी की सजा हो गई, और सरकार चुप बैठी रहे—क्या यह विश्वगुरु बनने का संकेत है? अगर यही घटना अमेरिका या किसी यूरोपीय देश के नागरिक के साथ होती, तो उनकी सरकारें क्या इसी तरह चुप रहतीं? क्या भारतीय नागरिकों के लिए सरकार की कोई जवाबदेही नहीं है?
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