बांदा ज़िले के अंतर्गत आने वाला गाँव चिल्ला यमुना नदी के किनारे बसा हुआ है। यहाँ रहने वाले ज़्यादातर परिवार किसानी का काम करते हैं। यह किसान सब्ज़ियों की खेती करके अपने परिवार का खर्च उठाते हैं। इन सब्जी किसानों का कहना है कि वह बड़े किसानों से 1 साल के लिए बलकट खेती लेते हैं जिसमें उनको 12 से ₹14000 रुपये बलकट का देना पड़ता है। किसी ने 2 बीघे ली है तो किसी ने 4 बीघे ली है, तो किसी ने एक बीघा ही लेकर अपना परिवार पालने के लिए सब्जी बोई थी।
उन गरीब किसानों का कहना है कि उन्होंने वैशाख में ही सब्जी लगा दी थी जिसमें कद्दू लौकी तरोई घीया बरबटी मिर्चा करैली इस तरह की तमाम सब्जियां लगी थीं और वह सब्जी इस समय निकलने भी लगी थी। हर तीसरे दिन वह लोग बाजार में ढाई हजार से 3000 तक की कमाई करते थे कुछ बजारे उन्होंने की लेकिन अचानक से बाढ़ आने के कारण उनकी पूरी सब्जी ख़राब हो गई और अब वह भुखमरी की कगार पर आ गए हैं। उनका कहना है कि सब्जी का इतना महंगा बीज आता है कि 10 ग्राम बीज ₹200 से लेकर 400, 500 ₹ तक का आता है।
उसके अलावा ₹700 घंटे की जुताई बुवाई लगती है और मेहनत तो इतनी लगती है कि जितने भी लोग परिवार में होते हैं सब सब्जी की खेती में ही लगे रहते हैं कोई निराई करता है कोई गुडाई करता है, तो कोई पौधों के ऊपर माटी चढ़ाता है| इस तरह से बहुत सारे काम होते हैं जिसमें ₹50000 की लागत उनकी लग गई थी और मेहनत जो लगी वह अलग लेकिन इस बार बाढ़ ने पूरी तरह उन को तबाह कर दिया है| अब वह लोग दोबारा से उन खेतों की सफाई करके जोताई बुवाई कर आएंगे और कुछ जगह में उन्होंने नया बीज दुबारा से लेकर पौधा तैयार करने की तैयारी कर ली है उन किसानों का कहना है कि जो पैसा था उन्होंने पहले लगा दिया था आब जो दोबारा सब्जी लगाएंगे उसमें कर्ज लेना पड़ेगा। अब की बोई यह सब्जी दीपावली के समय निकलेगी तब तक वह कैसे अपना गुजारा चलाएंगे उसकी चिंता सता रही है।
उनका कहना कि जब उनके पास खेतों में सब्जी होती थी तो वह बेचते भी थे और तारा तारा की सब्जी खाते भी थे लेकिन इस समय तो उनको नमक रोटी मुश्किल पड़ रहा है| सब्जी बाजार से खरीदने के लिए पैसे ही नहीं है इसलिए काफी परेशान हैं उनका कहना है कि किसान तो दोनों तरफ से फायदा ले लेता है। क्योंकि बलकट खेती जब दी तो उसने बलकट वालों से पैसा ले लिया अब इस आपदा के तहत जो नुकसान हुआ है खेत का तो नुकसान सब्जी वालों का हुआ है लेकिन पैसा किसान को मिलेगा जिसके नाम खेती है इसलिए वह चाहते हैं कि बालकट बटाई वालों को भी नुकसान का मुआवजा मिले ताकि उन्हें भी कुछ आर्थिक सहायता मिल सके।
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