लेखन – गीता देवी
जिला बांदा। पिछले कुछ दिनों से बुंदेलखंड क्षेत्र भीषण गर्मी की मार झेल रहा है। खासकर बांदा जिले के नरैनी क्षेत्र का पहाड़ी इलाका इन दिनों भट्टी की तरह तप रहा है। तापमान लगातार 42 से 44 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच रहा है, जिससे लोगों का जीना मुहाल हो गया है। इस झुलसाने वाली गर्मी के साथ अब पानी की गंभीर किल्लत भी ग्रामीणों के लिए बड़ी चुनौती बन चुकी है। सबसे ज़्यादा परेशानी महिलाओं को हो रही है, जिन्हें रोज़मर्रा के कार्यों के लिए काफी दूर- दूर तक पानी लाने जाना पड़ता है।
महिलाओ को है पानी का इंतजार
जल जीवन मिशन के तहत सरकार भले ही हर घर तक पानी पहुँचाने का दावा कर रही हो, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। कई गांव आज भी पानी के लिए तरस रहे हैं। ग्रामीणों द्वारा ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है की आने वाले दिनों में गर्मी और बढ़ सकती है।
हर घर जल नहीं पहुंचा गांव
रगौली भटपूरा गांव कि रहने वाली गीता उम्र (50) साल का कहना है कि उनके गांव में पानी कि बहुत ज्यादा दिक्कत है। दो साल हो गए जल जीवन मिशन योजना के तहत टंकी बने और पाइप पड़े, लेकिन पानी आज तक नहीं आया। नलों की टोंटी दरवाजों में सिर्फ शो पीस के लिए लगी हैं।
हैंडपंप में पानी भरने के लिए लगी भीड़
कुसमा कहती हैं कि जब पूरा गांव कूलर, पंखा की हवा में सो रहा होता है तो यहाँ की महिलाएं गांव के हैंडपंप से पानी भर रही होती हैं। उनके खुद के घर में 6 लोग हैं, जिसमें लगभग 500 लीटर पानी लग जाता है। हैंडपंप का वॉटर लेवल नीचे चले जाने के कारण दो बाल्टी पानी मिलना भी मुश्किल हो जाता है। वह कहती हैं की समय बदल गया लेकिन ग्रामीणों की समस्या जस की तस मुंह खोले खड़ी है। हल होने का नाम ही नहीं लेती। जिससे आये दिन ग्रामीणों में पानी को लेकर लड़ाइयां भी होती हैं।
गर्मी में पानी ने बढ़ाई मुश्किलें
उर्मिला कहती हैं कि जब भी लोग उनके गांव आते हैं, तो कहते हैं, आपका गांव बहुत सुंदर है। क्योंकि गांव पहाड़ों से घिरा है, और वहां की हरियाली गांव को और भी खूबसूरत बना देती है। हां, इस बात को वह भी मानती हैं, लेकिन इस खूबसूरती का क्या फ़ायदा, जब पानी की एक-एक बूंद के लिए भटकना पड़ता है।
जितना सुंदर उनका गांव पहाड़ों के कारण लगता है, उतनी ही तकलीफ भी उन्हीं पहाड़ों की वजह से होती है। गर्मियों में खासतौर पर मई-जून के महीने में ऐसा लगता है जैसे गांव किसी तपती भट्टी में बदल गया हो। ऐसी जलती हुई आग के बीच वह लोग जीने को मजबूर हो जाती हैं और पानी भी नहीं जल्दी निकलती है।
उर्मिला बताती हैं कि वह एक महिला हैं और गांवों में खासकर महिलाओं को ही पानी भरने जाना पड़ता है। शहरों की तरह यहां हर घर में पानी की व्यवस्था नहीं है। और होगी भी कैसे। गांव में पानी ही नहीं निकलता, क्योंकि पहाड़ों के कारण ज़मीन के नीचे जलस्तर बहुत गहरा है।
ऐसे में या तो वह पानी भरें जिससे जीवन चल सके, या फिर पानी छोड़कर बाकी काम करें। इसलिए कई बार उनके कुछ ज़रूरी काम समय पर नहीं हो पाते। जैसे कि अगर मजदूरी पर जाना है, लेकिन पानी नहीं है, तो खाना कैसे बनेगा। बिना नहाए कैसे बाहर जाएंगे। जब तक पानी के लिए लाइन में लगे रहेंगे, मजदूरी का समय निकल जाएगा।
बच्चे स्कूल जाते हैं, तो उन्हें समय पर खाना नहीं मिल पाता, जिससे उनकी पढ़ाई पर असर पड़ता है। इस तरह की परेशानियां उर्मिला और उनके जैसी गांव कि कई महिलाएं झेल रही हैं, और यही उनका असली संघर्ष है।
प्रधान रन्नो पटेल का कहना है कि उनके गांव में लगभग तीन हजार की आबादी है,जिसमें से लगभग 25 हैंडपंप है और कुंआ, तालाब भी है, लेकिन पत्थर नीचे होने के कारण बोर सक्सेज नहीं है और पानी भी कम निकलता है इसलिए पानी की दिक्कत बनी रहती है और गर्मी के सीजन में यह दिक्कत और भी बढ़ जाती है काफी प्रयासों के बाद और जब से जल जीवन मिशन आई हर घर अपनी योजना के तहत उनके गांव में भी टंकी बन गई है और पाइप पड़ गए हैं टोंटियां दरवाजे,- दरवाजे लग गई है उनकी कोशिश है कि जल्द ही पानी चालू हो।
पानी की यह समस्या सिर्फ इस गांव की ही नहीं है। नरैनी क्षेत्र में और भी कई गांव है जो पहाड़ के नीचे बसे हुए हैं। वहां भी पानी की यही परेशानी है। चाहे वह पनगरा गांव हो या चंद्रनगर हो या फिर रगौली भटपुरा और बिल्हरका हो इन गांवों के लोग आज से नहीं पीढ़ियों से पानी की इस समस्या से जूझते आ रहे हैं। योजनाएं बहुत चलती हैं सरकार काम भी पानी कि समस्या को दूर करने के लिए करती है पैसे भी खर्च होते हैं लेकिन फिर भी लोग पानी की इस परेशानी से छुटकारा नहीं पा पा रहे। ये एक बड़ा सवाल है।
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