Nrc और caa को लेकर लगातार हो रहे दंगा फसाद और पुलिस की कार्यवाही और धर्म समुदाय विशेष पर हो रही चर्चा को लेकर हमने कवरेज किया। हमने लोगों, पुलिस अधिकारियों और राजनीतिक नेताओं से बातचीत की। पुलिस का कहना है कि वह nrc और caa को लेकर जागरूकता कर रहे हैं।
लगातार पीस कमेटी की बैठकें और पैदल मार्च निकाल रहे हैं। हमने अपनी रिपोर्टिंग में और सारे पक्षों से बात करने के बाद पाया कि मुश्लिम समुदाय के बीच बातचीत करना ज्यादा जरूरी है क्योंकि उनके बीच अफवाहें कुछ अराजक तत्व द्वारा फैलाया जा रहा है कि उनको इस कानून से उनकी नागरिकता को खतरा है। इसीलिए उनके बीच ये जागरूकता जरूरी है।
हालांकि पुलिस अधिकारी इसका खंडन करते हुए बोले कि ऐसी बात नहीं है वह सभी धर्म के लोगों से मिल रहे हैं। अगर ये बात सही है तो पुलिस अधीक्षक गणेश साहा 24 दिसंबर को हथौड़ा स्थित मदरसा जाकर मीटिंग की। इसके पहले भी पुलिस की नज़र मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रो में बनी हुई है। जब हमने बात की कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्षो से उन्होंने अपनी राजनीतिक अंदाज से बात की।नागरिकता संशोधन बिल को मध्य प्रदेश में रोके जाने पर लोगों ने किया प्रदर्शन
दोनों एक दूसरी पार्टी पर आरोप लगाते हुए बोले कि इस तरह की अराजकता जानबूझकर कर फैलाई जा रही है। विपक्ष के लोग हैं जानबूझकर कर कर रहे हैं। जहां भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष बोले कि ये अराजकता जानबूझकर को सरकार को बदनाम करने के लिए उन्हीं राज्यों में कई जा रही है जहां पर हमारी पार्टी की सरकार है तो वहीं पर कांग्रेस जिलाध्यक्ष बोले कि सबसे बड़ा सवाल यह है कि उन्ही राज्यों में क्यों हिंसा हो रही है जहां पर भारतीय जनता पार्टी की सरकार है।
भारतीय जनता पार्टी के पास डबल इंजन की सरकार है फिर भी इस तरह की और इतनी बड़ी खरतनाक हिंसाएं। जब हमने लोगों से बात की तो बहुत सारे लोगों को इस बिल की जानकारी नहीं है। पर उनको इतना पता है कि अगर वह अपनी नागरिकता का प्रमाण नहीं दिखा पाए तो उनके लिए खतरा है। इस तरह से हमारी रिपोर्ट कहती है कि एक तबका जो अपने को पढ़ा लिखा और बुद्धजीवी मान रहा है वह भले ही सड़कों पर है, प्रदर्शन कर रहा है, सरकार से हक़ और अधिकार की लड़ाई लड़ रहा है पर गांवों में जमीनी स्तर पर आम जन के बीच इस कानून के प्रति जागरूकता का अभाव है। पुलिस उस जागरूकता को बनाने में लगी। हाँ वह बात अलग है कि उसके मन में ये धारणा बन गई है कि ज्यादातर मुश्लिम को ही समझाना है। इन सबसे पर राजनीतिक पार्टियां अपनी राजनीतिक रोटियां सेक रही हैं।