खबर लहरिया Blog बाँदा: बाढ़ और मौत के खौफ से जूझती शंकर पुरवा बस्ती

बाँदा: बाढ़ और मौत के खौफ से जूझती शंकर पुरवा बस्ती

शंकर पुरवा की महिलाओं ने बताया कि केन और चंद्रावल दोनों ही नदियां पहले पैलानी की तरफ कटती थीं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से शंकरपुरा के क्षेत्र में कट रही हैं। यह इलाका नदी से मात्र 500 मीटर की दूरी पर है जिसके कारण बाढ़ के समय लोगों में यह डर बैठा रहता है कि रात-बिरात अचानक गांव में पानी न घुस जाए।

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                                                                            बाढ़ की सांकेतिक फोटो, गांव में बाढ़ आने से ग्रामीण नाव के सहारे सुरक्षित स्थान पर जा रहे हैं

बांदा जिले की ग्राम पंचायत नांदादेव का मजरा शंकर पुरवा बाढ़ आने पर हर बार बुरी तरह से प्रभावित होता है। बाढ़ आने और उसके बाद भी लोग खुद से अपनी व्यवस्था करते हैं। प्रशासनिक स्तर से कार्यवाही करना भी जरूरी नहीं समझा जाता। यहां की रिपोर्टिंग हमने लगातार दो साल आई बाढ़ पर की और दोनों बार बहुत ही बुरे हाल रहे। प्रशासन हर बार यहाँ के लोगों को भरोसा तो देता है कि उन्हें किसी ऊंचाई की जगह पर विस्थापित कराया जाएगा लेकिन आज तक इस वादे पर अमल नहीं किया गया।

लोगों के अनुसार साल 2013, 2016, 2019, 2021, 2022 में भयावह बाढ़ की स्थिति जानलेवा बन गई थी। अब इस साल भी पिछले कुछ दिनों से हो रही मूसलाधार बारिश ने केन और चंद्रावल नदी का जलस्तर बढ़ा दिया है, जिससे आसपास रह रहे लोगों की मुसीबतें भी बढ़ती दिख रही हैं।

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पैलानी में पट्टा देने की मांग:

इसी मामले को लेकर जब हमने शंकरपुरवा में मौजूद महिलाओं से बातचीत की, तो इन महिलाओं का कहना है कि उनकी सरकार से दरख्वास्त है कि यहाँ मौजूद परिवारों को पैलानी कस्बे में जल्द से जल्द एक बीघा ज़मीन का पट्टा दिया जाए, जहाँ ये परिवार बगैर किसी डर के रह सकें। बता दें कि ये करीब दो हजार घरों की बस्ती है और यहाँ एक हजार वोटर हैं।

बीते सालों में हुई रिपोर्टिंग के अनुसार प्रशासन या प्रधान की तरफ से भी इन परिवारों को कोई ठोस सहायता नहीं मिल पाई है। हमारी रिपोर्टिंग कहती है कि 2021 में आई बाढ़ के दौरान प्रशासन की तरफ से बाढ़ राहत सामग्री के नाम पर मोमबत्तियां, माचिस, लाई, चना, बिस्कुट, तिरपाल दिया गया था।

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बाढ़ के दौरान गांव में होता है भयावह मंज़र

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                                                                                      गांव में बाढ़ आने की वजह से सामान के साथ विस्थापित होते ग्रामीण

यहाँ मौजूद परिवारों की जुग्गी-झोपड़ियां हर साल बाढ़ में ग्रस्त हो जाती हैं, इस दौरान गांव में अनेक प्रकार की बीमारियां फ़ैल जाती हैं। ऐसे में ये गरीब परिवार किसी टीले पर रैन बसेरा बना कर रहते हैं, जिसमें बच्चे, बूढ़े, और गर्भवती महिलाएं भी शामिल होती हैं। जब नदी का जलस्तर कम होता है तब ये परिवार वापस से अपनी अपनी झोपड़ियों की मरम्मत कर उन्हीं टपकती, टूटी-फूटी, मिट्टी या पन्नियां डाल कर बनीं झोपड़ियों में रहने को मजबूर हो जाते हैं।

शंकर पुरवा की महिलाओं ने बताया कि केन और चंद्रावल दोनों ही नदियां पहले पैलानी की तरफ कटती थीं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से शंकरपुरा के क्षेत्र में कट रही हैं। यह इलाका नदी से मात्र 500 मीटर की दूरी पर है जिसके कारण बाढ़ के समय लोगों में यह डर बैठा रहता है कि रात-बिरात अचानक गांव में पानी न घुस जाए।

लोगों के मुताबिक़ बाढ़ की स्थिति में गांव के लोग ऊंचाई पर स्थित उस एक टीले पर खाने-पीने का सामान, जानवर इत्यादि लेकर पहुँच जाते हैं। गांव में मौजूद बैलगाड़ियों पर जितना सामान आ जाता है रख लेते हैं और बाकी का सामान बाढ़ में बहने के लिए छोड़ दिया जाता है।

लोगों की मानें तो बाढ़ खत्म होने के बाद भी गांव के हालात बुरे ही रहते हैं। बाढ़ का पानी तो निकला जाता है लेकिन वो गन्दगी और बीमारियां छोड़ जाता है। ज़िलाधिकारी और उपज़िलाधिकारी से कई बार शिकायत के बावजूद भी न ही कोई सफाईकर्मी यहाँ सफाई के लिए आता है और न ही स्वास्थ्य विभाग से किसी तरह की मदद मिलती है। महीनों लोग इसी बदबू और गंदगी के बीच में रहने को मजबूर रहते हैं।

कुछ लोगों की मानें तो कुछ महीनों पहले पैलानी कस्बे में ज़मीनें चिन्हित तो की गई थीं, लेकिन कुछ दिन बाद उसे कैंसिल कर दिया गया। लोगों की मांग है कि अगर इस बार उन्हें ज़मीन के पट्टे नहीं मिले तो अगले साल वो चुनाव बहिष्कार कर देंगे।

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ग्राम सभा की ज़मीन में पट्टा देने को तैयार है विभाग

गांव के प्रधान का कहना है कि उन्होंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है लोगों को ज़मीनें दिलवाने की, लेकिन विभाग की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे। हालांकि ग्राम सभा की ज़मीनें हैं जो इन ग्रामीणों को दी जा सकती है,लेकिन ग्रामीण उस ज़मीन को लेना नहीं चाहते। वो पूरी कोशिश कर रहे हैं कि इन ज़मीनों के पट्टे ग्रामीणों को जल्द से जल्द मिल जाएँ।

पैलानी उप जिलाधिकारी शशिभूषण का कहना है कि शंकर पुरवा के लोगों को ऊंचे स्थानों पर पट्टा देने के लिए विभाग की तरफ से पूरी कोशिश की जा रही है। उन्होंने बताया कि ग्रामीणों ने ग्राम सभा की ज़मीन में पट्टा लेने से इनकार कर दिया है, और आबादी को देखते हुए पैलानी क्षेत्र में उन्हें पट्टा देना आसान नहीं है। ऐसे में विभाग की तरफ से इस मामले में कोई कार्य आगे नहीं बढ़ पा रह है।

हादसों का गहवारा बन चुके हैं नदी के पास बसे क्षेत्र

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                                                       नदी का जलस्तर बढ़ने से एक जगह से दूसरी जगह जानें भी मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है

बांदा में बाढ़ के दौरान हादसों की लिस्ट पुरानी है। यहाँ बहने वाली तीनों नदियां केन, यमुना और चंद्रावल बरसात के दौरान ऊफान मार रही होती हैं। इन मुश्किल हालातों में सही सेवाओं के न मिलने के कारण अबतक कई जानें भी जा चुकी हैं और कई घर भी बर्बाद हो चुके हैं। अगस्त 2022 में बाँदा में हुआ नाव हादसा शायद ही अबतक लोग भूल पाए होंगे। शहर के मर्का थाना क्षेत्र में यमुना नदी घाट पर नाव पलट जाने से कई लोगों की जान चली गई थीं और इस हादसे का कारण बताया जाता है यमुना नदी पर पुल का न बनना। जिसके ज़िम्मेदार भी सरकारी अफसरों की लापरवाही और नेताओं के झूठे चुनावी वादे रहे हैं।

ऐसे में शंकर पुरवा के लोगों का भी हर समय अपनी जान का खतरा बना रहना लाज़मी है। ये वही लोग हैं जो बाढ़ आने पर इन तूफानी नदियों में नाव पर सवार होकर एक सुरक्षित ठिकाना ढूंढने की कोशिश कर रहे होते हैं, ये वही लोग हैं जो अपने खून पसीने से बनाए घरों को बाढ़ में तबाह होते देखते हैं, ये वही लोग हैं जो बाढ़ के समय अपने मासूम बच्चों के लिए एक-एक रोटी के मोहताज हो जाते हैं। सरकारी योजनाएं होने के बावजूद भी इन परिवारों का रोटी, कपड़ा, मकान जैसी बुनियादी आवश्यकताओं के लिए संघर्ष करना सरकार की अपंगता का सबूत है।

इस खबर की रिपोर्टिंग शिव देवी द्वारा की गई है। 

 

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