मनरेगा में लगातार जेसीबी मशीन से काम कराया जा रहा है जिसकी वजह से मज़दूरों को काम नहीं मिल रहा है। ऐसे में वह रोज़गार की तलाश कर रहें हैं।
जिला बांदा। 16 जून को नरैनी ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले मुड़ी गांव के मजदूरों ने सुभाष पांडे मुर्दाबाद के नारे लगाते हुए बांदा डीएम को ज्ञापन सौंपा। उन्होंने बताया कि उनके यहां प्रधान सुभाष पांडे और सचिव की मिलीभगत से मनरेगा का कार्य जेसीबी मशीन से कराया जा रहा है, जिसके चलते उन्हें काम नहीं मिल पा रहा है। उनके जॉब कार्ड बिना रिनुअल के खाली रखे हुए हैं। वह चाहते हैं कि इस मामले की जांच कराई जाए और उन्हें काम दिलाया जाए।
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काम के चक्कर में होता है शोषण
बेरोज़गारी की मार पहले की तरह आज भी लोगों के लिए बनी हुई है। अगर लोग बाहर पलायन करके काम करने जाते हैं तो वहां भी शोषण होता है। अगर गांव में काम करने को सोचते हैं तो काम नहीं मिलता। अगर काम मिलता है तो समय से मजदूरी नहीं मिलती। यही वजह है कि लोग काफ़ी परेशान रहते हैं।
सरकारी योजना के बावजूद भी कोई बदलाव नहीं
सरकार ने इस उद्देश्य के साथ राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी योजना की शुरुआत की थी कि ग्रामीणों को गांव में ही रोज़गार मिलेगा लेकिन यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में ज़्यादातर फेल होती नज़र आ रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि गांव में मजदूरों को रोज़गार नहीं मिलता।
ऐसा ही एक मामला नरैनी ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले मुड़ी गांव का है जहां पर इस पंचवर्षीय में जो भी काम मनरेगा के तहत हो रहे हैं, वह जेसीबी से करवाए जा रहे हैं। मज़दूर मजदूरी के लिए भटक रहा है। इसकी शिकायत लोगों ने 16 जून 2022 को डीएम से की। फिलहाल डीएम ने जांच के आदेश दिए हैं।
गांव के मज़दूरों का बयान
गांव के मज़दूर छोटेलाल और बारेलाल बताते हैं कि उनके गांव में इस पंचवर्षीय में जब से प्रधान आये हैं तब से कई काम हुए हैं। मनरेगा के तहत बड़े-बड़े किसानों के खेतों में मेड़बंदी का कार्य हुआ है। लेकिन उन मजदूरों से काम न करवाकर जेसीबी से काम कराया जा रहा है। इसकी शिकायत पहले भी वह लोग नरैनी में कर चुके हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
यही वजह है कि उन्हें मज़बूरी में डीएम के पास जाकर शिकायत करनी पड़ी। मज़दूरों के लिए बिना मज़दूरी के अपना परिवार पालना मुश्किल हो रहा है। ग्रामीण स्तर में मनरेगा योजना ही एक उन मजदूरों का सहारा है जिसके तहत वह काम कर सकते हैं।
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मजदूरों के जॉब कार्ड नहीं है रिन्यू
मुन्ना और तेजोला बताते हैं कि वैसे तो गांव में बहुत मजदूर हैं लेकिन लगभग 30 मजदूर ऐसे हैं जो स्थायी रूप से मज़दूरी करने वाले हैं। उनके जॉब कार्ड भी बने हुए हैं। लेकिन ना तो जॉब कार्ड को रिनुअल कराया जा रहा है और ना ही उन्हें काम दिया जा रहा है। जो भी काम आते हैं जेसीबी से करा लिए जाते हैं। वह लोग मजदूरी के लिए भटक रहे हैं। उनका कहना है कि जो कार्य जेसीबी से कराया जाता है वह उन मजदूरों से कराया जाए। यही नियम भी है तो फिर क्यों जेसीबी से प्रधान और सचिव की सहमति से वह काम हो रहे हैं। अगर यही चलता रहा तो वह अपने परिवार का पेट-पालन कैसे करेंगे?
रोज़गार न मिलने से घर चलाने में हो रही है दिक्कतें
गोरेलाल और नत्थू बताते हैं कि सरकार खाने के लिए कोटे में राशन तो देती है लेकिन सूखा राशन खाने से उनका पेट तो नहीं भर जाएगा? बाकी के खर्चे के लिए पैसे की ज़रुरत पड़ती है। चाहें साग-सब्ज़ी लेना हो या दवा गोली कराना हो। आजकल की महंगाई में एक बार के खाने के लिए ₹100 की तो सब्ज़ी आती है। अगर उनको काम नहीं मिलेगा तो वह साग-सब्ज़ी और दवाई गोली का खर्चा कैसे करेंगे। एक या दो दिन नमक रोटी खा लेंगे पर हर रोज़ तो नहीं खा सकते।
उनके पास खेती-बाड़ी भी नहीं है कि गल्ला हो सके और वह बेचकर बाज़ार से पैसा ले सकें। वह तो सिर्फ मजदूरी के सहारे हैं। अगर गांव में मज़दूरी मिलती है तो उससे उनकी साग-सब्ज़ी और दवा-गोली चलती रहती है। लेकिन डेढ़ साल होने जा रहा है। उन्हें प्रधान द्वारा मनरेगा के तहत एक भी काम नहीं दिया गया है। इसकी शिकायत वह लगातार कर रहे हैं।
वह चाहते हैं कि उनके गांव में हो रहे मनरेगा कार्य कि जांच कराई जाए, जो कार्य जेसीबी से हुए हैं। साथ ही इसकी कार्यवाही भी की जाए।
जानकारी के अनुसार, इस पंचवर्षीय में मजदूरों को बिल्कुल भी काम नहीं मिल रहा है। उनके परिवार के बच्चे सब बाहर पलायन कर लेते हैं लेकिन वह लोग घर में रहते हैं। वह चाहते हैं कि यहां पर रहकर ही वह काम करें। भले ही ज़्यादा मजदूरी नहीं रहती लेकिन गांव घर में रहकर काम करेंगे तो उनका ऊपरी खर्च तो कुछ निकल जाएगा पर उन्हें वह भी नहीं मिल रहा हैं।
रोज़गार बिना कैसे चलाएं घर?
वह चाहते हैं कि जब मनरेगा के तहत उनके जॉब कार्ड बने हैं तो उन्हें बराबर मजदूरी दी जाए। जॉब कार्ड रिनुअल कराए जाए ताकि उनका भी काम चलता रहे। पहले तो ज़्यादा काम ही नहीं आता। मनरेगा के तहत अगर काम आता है तो पैसे के लिए काफी दिनों तक भटकना पड़ता है। समय से पैसा नहीं मिलता लेकिन फिर भी वह लोग चाहते हैं कि गांव में जितना भी काम मिलता है, उसे वह करें क्योंकि उनके पास परिवार चलाने के लिए और कोई जरिया नहीं है।
डीएम अनुराग पटेल ने दिया आश्वासन
मज़दूरी को लेकर बांदा जिले के डीएम अनुराग पटेल ने मजदूरों को आश्वासन देते हुए जांच के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा है कि जांच में अगर मज़दूरों द्वारा कही बात सही पाई गयी तो कार्यवाही की जाएगी। वहीं जब खबर लहरिया ने इस मामले में मुड़ी गांव के प्रधान सुभाष पाण्डेय से बात करना चाहा तो उन्होंने समय न होने का बहाना बनाकर फोन काट दिया।
इस खबर की रिपोर्टिंग गीता देवी द्वारा की गयी है।
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