किसानों को इस समय खाद नहीं मिल पा रही है जिसकी वजह से किसान बुआई नहीं कर पा रहे हैं।
बांदा। किसान हमेशा कहीं खाद को लेकर, कहीं पानी को तो कहीं बिजली की भरपूर सुविधा न मिलने से परेशान रहता है, जिससे उनकी खेती कि बोवाई पिछड़ जाती है और उसका असर खेतों में होने वाले अनाज पर पड़ता है। किसानों को परिवार पालने के लिए दो वक्त की रोटी चाहिए होती है लेकिन इस तरह असुविधा और प्रकृति की मार किसानों को भूखा सोने पर विवश कर रही हैं।
चिल्हा गांव के सुखू कहते हैं कि खेती-किसानी अब किसानों के लिए घाटे का सौदा होती जा रही है। ऊपर से इस वर्ष बुन्देलखण्ड में हुई अतिवृष्टि और असमय बारिस के चलते किसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है। एक फसल जो खरीफ की होती है, वो ज्यादातर नष्ट हो गई है और दूसरी फसल जो रबी की है उसकी भी समय से बुआई नहीं हो पा रही है। इसके साथ ही अभी तक किसानों को फसल बीमा योजना का पैसा भी नहीं दि या गया है। महंगे खाद, बीज और तेल के दाम भी किसानों में घोर निराशा पैदा कर रहे हैं। जिससे अब उनकी चिंताएं बढ़ गई है। कृषि ही परिवार पालने का एक सहारा है।
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एक तरफ जहाँ सभी चीजें महंगी हो गई हैं, तो दूसरी तरफ किसानों को समय से खाद नहीं मिल पा रही है। खाद वितरण केन्द्रों में लम्बी-लम्बी लाइनें लग रही हैं। पूरा दिन लाइनों में लगने से किसान परेशान हैं,और उनके घरों के काम का भी नुकसान होता है। क्योंकि जुताई-बुवाई का तो समय है। मोहनपुरवा गांव के किसान जुगला कहते हैं कि एक तो असमय बारिस के कारण फसल बोने में काफी देरी हुई है, दूसरी तरफ अब खाद न मिल पाने के कारण दूसरी फसल की बुआई में देरी हो रही है। ऐसी स्थिति में किसानों कि समस्याए और भी बढ़ गई है। इस समस्या से निपटने के लिए किसान धरना प्रदर्शन करते रहते हैं और विभागीय अधिकारियों को ज्ञापन देते रहते हैं लेकिन उनकी समस्या का समाधान होने का नाम नहीं ले रहा।
इस समय रबी की बुआई के लिए खेत तैयार पड़े हैं, लेकिन ना तो उनको समय से खाद मिल पा रही है और ना ही बिजली पानी की व्यवस्था हो पा रही है। अब ऐसे में किसान रबी की फसल कैसे तैयार करेगा? किसानों का कहना है कि अगर 10 दिन उनको खाद नहीं मिलेगी तो बुवाई नहीं हो पाएगी। डीजल इतना ज्यादा महंगा है कि जुताई-बुवाई और सिंचाई में भारी-भरकम रकम लगती है। अगर प्राइवेट केंद्रों से खाद लेते हैं तो वह भी महंगे दामों में बिकती है जबकि सरकारी क्रय केंद्रों में डीएपी का रेट साढ़े तेरह सौ है। बाहर से लेने में 1500 रुपए या साढ़े 1500 की मिलती है। यही स्थिति रही तो किसान कैसे अपना परिवार पालेगा।
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सिंघौटी गांव के किसान संतराम पटेल का कहना है कि केंद्रों में जो पावर और पैसे वाले लोग हैं उनको केंद्र कर्मचारी खाद दे देते हैं, लेकिन जो गरीब और छोटे किसान हैं वह भटकते रहते हैं। उनको आने-जाने में गांव से कालिंजर तक ₹100 प्रतिदिन खर्च होता है। वह लगभग 1 हफ्ते से लौट रहे हैं, लेकिन उनको खाद नहीं मिल पा रही। उनका कहना है कि क्रय केंद्र वाले खाद की कालाबाजारी कर ब्लैक में खाद बेच लेते हैं जिसके चलते किसान परेशान रहता है। किसानों का कहना है कि उनके खेत बोवाई के लिए पूर्णता तैयार पड़े हुए हैं, लेकिन अगर 15 नवंबर तक उनको खाद उपलब्ध नहीं होती तो बुवाई का समय बहुत ज्यादा पिछड़ जाएगा। जिससे पैदावार में बहुत ही कमी होगी और किसान भुखमरी की कगार में आ जाएगा।
इस साल बुवाई बहुत ज्यादा लेट चल रही है अभी तक खेतों में गेहूं की बुवाई हो जानी चाहिए थी इसके अलावा जो अन्य फसलें हैं चाहे चना मटर हो या और भी उनकी बुवाई तो नवरात्र में ही हो जाती थी। इस समय खेतों में चने की भाजी लहलहाने लगती थी, लेकिन इस साल अभी तक खेत खाली ही पड़े हैं। पहले असमय बारिश होने के चलते खेतों में जोतन नहीं आ पाई और जब जोतन आई तो आज 15 दिनों से खाद के लिए किसान क्रय केंद्रों में डेरा डाले हुए हैं। प्रतिदिन उनको निराशा होती है। अगर 100 लोग आते हैं खाद लेने तो 100 में 20 लोग ही खाद लेकर जा पाते हैं बाकी लोग निराश होकर लौट जाते हैं। क्योंकि बीना डीएपी खाद के बोवाई नहीं होनी और वही खाद किसानों को मिल नहीं रही है। साढ़ा गांव की रजिया बताती है कि नरैनी क्षेत्र का सबसे पिछड़ा एरिया है उनका गांव रबी की फसल ही होती है पर अब खाद के न मिलने से बोवाई लेट हो रही है।
सोशल मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार बांदा डीएम दीपा रंजन ने दो जंबो रैक डीएपी की उपलब्धता के लिए शासन को पत्र लिखा है। उधर, अधिकारी दावा कर रहे हैं कि मंडल में लक्ष्य के सापेक्ष ढाई गुना अधिक खाद का वितरण किया जा चुका है। अक्टूबर में डीएपी का लक्ष्य 6,786 मीट्रिक टन है। इसके सापेक्ष 16,626 मीट्रिक टन डीएपी का वितरण किया जा चुका है। जो 245 फीसदी है। विभाग की मान लें तो फिर खाद के लिए किसान क्यों परेशान हैं और वितरित खाद कहां चली गई ये एक बड़ा सवाल है और इससे निजी खाद दुकानदारों द्वारा सहकारी समितियों से डीएपी की कालाबाजारी होने की आशंका भी जताई जा रही है।
उप आयुक्त एवं निबंधक सहकारिता चित्रकूटधाम मंडल के बीरेंद्र बाबू का कहना है कि बांदा जनपद में सहकारिता सहित अन्य विभागों के 74, महोबा में 77, हमीरपुर में 52, चित्रकूट में 45 क्रय केंद्रों में डीएपी की बिक्री की जा रही है। खाद की कमी को देखते हुए आयुक्त व जिलाधिकारी दीपा रजंन ने दो जंबो रैक डीएपी के लिए शासन को पत्र लिखा है। जल्द ही मंडल को और खाद उपलब्ध होगी।
इस खबर की रिपोर्टिंग गीता देवी द्वारा की गयी है।
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