खबर लहरिया Blog बाँदा : सालों बाद लगे बिजली के खंभे टूटे, जेई ने ज़िम्मेदारी से झाड़ा पल्ला

बाँदा : सालों बाद लगे बिजली के खंभे टूटे, जेई ने ज़िम्मेदारी से झाड़ा पल्ला

जिला बाँदा के ग्राम पंचायत छतौनी में सालों बाद ग्रामीणों को बिजली की सुविधा मिली थी। लेकिन बिजली के खंभे टूट जाने के बाद अब उनका जीवन फिर से अँधेरे में आ गया है। 

बांदा जिले के नरैनी ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले छतौनी ग्राम पंचायत में लगभग 15 दिन पहले गाँव के दो बिजली के खंभे टूट गए थे तब से ही गाँव में अँधेरा छाया हुआ है। बिजली के खंभे लगवाने के लिए लोगों ने कई बार जेई से मांग की लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है।

क्या कहते हैं ग्रामीण ?

ग्रामीणों का कहना है कि लाइट ना होने से उनके फोन डिब्बे बने हुए रखे हैं जिसकी आज के ज़माने में बहुत ज़्यादा ज़रुरत है। डिजिटल इंडिया में बिना फोन और लैपटॉप के किसी भी तरह का काम नहीं हो पाता। बिजली के खंभे टूटे हुए काफी दिन बीत गए। जंगली क्षेत्र होने के कारण ग्रामीणों को दिन-रात डर बना रहता है। बरसात का मौसम है ऐसे में कीड़े-मकौड़े निकलने का भी डर रहता है। इस समय खेती-किसानी का भी मौसम है तो उसके लिए भी कहीं ना कहीं लाइट की जरूरत पड़ती है।

ग्रामीण महिला कमला कहती हैं, जिस दिन से लाइट के खंभे टूटे हैं उस दिन से वह बहुत परेशान है। रात-दिन मच्छर काटते हैं ,रात में नींद नहीं आती है और बीमारी फैलने का भी डर रहता है। पहले यह था कि लाइट थी ही नहीं तो डिब्बी के उजाले में ही काम चलाने की आदत थी। लेकिन 2 साल हो रहे हैं लाइट आए हुए तो अब लाइट की आदत हो गई है। वह कहती हैं कि डिब्बी के उजाले में दिखाई भी नहीं देता इसलिए वह चाहती है कि जल्द से जल्द लाइट आ जाए।

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सालों से होता आ रहा है बिजली का इंतज़ार – ग्रामीण

ग्राम पंचायत छतौनी के रहने वाले गजराज यादव बताते हैं कि उनका यह क्षेत्र बहुत ही पिछड़ा और जंगली इलाका है। यह अगल-बगल पहाड़ियों से भी गिरा हुआ है। इस इलाके में बिजली की रोशनी की बहुत ज़्यादा ज़रुरत होती है। लेकिन आज़ादी के बाद से ही उनके यहां बिजली का कोई नामोनिशान नहीं था। अब तक उनका गुज़ार अंधेरे में ही हुआ है।

वह कहते हैं कि वह डिब्बी, दीया और शादी में गोबर के उपले पर मिट्टी का तेल डाल के उजाला करते थे। उसी के सहारे अपना जीवन यापन करते थे। यहां तक की बिजली ना हो के कारण लोग उनके गांव में अपनी लड़कियों की शादी करने से भी डरते थे। अगर शादी होती भी थी और दहेज में कूलर, पंखा, टीवी जैसी आदि चीजें आ जाती थी तो वह रखे-रखे कबाड़ हो जाती थी क्यूंकि इनके इस्तेमाल के लिए गाँव में बिजली ही नहीं है। यहां के बुज़ुर्ग पीढ़ियों से लाइट का उजाला देखने के लिए तरस रहे हैं।

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खंभे तो लगे पर बिजली नहीं आयी

लगभग 15 साल पहले ग्राम पंचायत छतैनी में बिजली के तार और खंभे लगे थे। इससे लोगों में उम्मीद जगी कि अब ग्राम पंचायत में लाइट आ गई है तो उनके गांव में भी लाइट आ जाएगी। लेकिन वह तार के खंभे 10 साल तक गांव में सिर्फ शोपीस (सजावट) बने लगे रहे। किसी के घर में उजाला नहीं हुआ, लोग उजाले के लिए तरसते ही रहे।

आपको बता दें, जब सरकार की तरफ से छतौनी गांव से लगभग 2 किलोमीटर दूर उनका पुरवा, जो की छतौनी का ही मजरा बाउर पुरवा है। वहां पर बिजली विभाग की तरफ से मीटर टांगे गए थें। इससे लोगों में एक बार फिर उम्मीद की किरण जागी थी कि शायद अब उनके पुरवे में भी बिजली आएगी। लेकिन मीटर लगे 6 महीने हो गए। बिजली का बिल भी आने लगा पर बिजली और तार-खंभों का कोई अता-पता नहीं था।

खबर लहरिया की रिपोर्टिंग के बाद गाँव में आयी थी बिजली

अपनी समस्या के बारे में ग्रामीणों ने खबर लहरिया  को बताया और अपने गांव की रिपोर्टिंग करवाई। रिपोर्टिंग के एक महीना बाद ही उनके गांव में तार और खंभे लग गए और लाइट आ गई तब से वह बहुत खुशहाल हैं। हर चीज़ का आनंद ले पा रहें हैं चाहें वह कूलर, पंखा हो या टीवी। लेकिन 15 दिनों से बिजली का खंभा टूटने के कारण उनके यहां अब फिर से बत्ती गुल है इसलिए वह परेशान है। वह चाहते हैं कि जल्द से जल्द लाइट आ जाए, इसके लिए उन्होंने शिकायत भी की है।

मामले से बचने के लिए जेई ने काटा फ़ोन

जब खबर लहरिया ने इस मामले में कालिंजर फीडर के जेई से बात करनी चाही तो पहले उन्होंने फोन ही नहीं उठाया। जब उठाया तो यह कहकर फोन काट दिया की यह जेई का नंबर नहीं है जबकि वह जेई का ही नंबर था और कालिंजर के ही लोगों से मिला था।

जेई द्वारा बिना समस्या सुने ही फोन काट देना और यह कहना कि नंबर उनका ही नहीं है। यह दिखाता है कि वह किस तरह से अपनी ज़िम्मेदारी से पीछा छुड़ा रहे हैं। पहले तो गाँव में बिजली ही नहीं थी। जब ग्रामीणों को बिजली आने से थोड़ी राहत मिलने लगी तो खंभे टूट गए और उसे ठीक करने के लिए कोई भी अधिकारी शिकायत करने पर भी सुध नहीं ले रहा है। यह कैसी व्यवस्था है जहां पहले तो विकास के लिए सालों इंतज़ार करना पड़ता है? जब ग्रामीणों को थोड़ी बहुत सुविधा मिलने लगती है तो उसमें भी अड़चन आ जाती है, जिसे अधिकारीयों द्वारा नकारा जाता है। फिर प्रदेश सरकार ग्रामीणों को कौन-सा सुख देने की बात करती है जो उन्हें मिला ही नहीं?

इस खबर की रिपोर्टिंग गीता देवी द्वारा की गयी है। 

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