जिला बांदा ब्लाक नरैनी कस्बा नरैनी। जहां के रहने वाला रामोतार का कहना है की लगभग 40 साल से बनाने का काम करता हूं जिससे मेरे यहां दूर-दराज से बहुत सारे लोग आते हैं दुलदुल घोड़ी खरीदने के लिए आज से 20साल पहले बहुत अच्छा नाच होता
ऐसा कोई शादी विवाह नहीं होता था जिसमें 2 लोग घोड़ी जैसे कार्यक्रम ना हो आप ऐसा ही एक चलन चल गई है कि लोग दुलदुल घोड़ी का ज्यादा महत्व नहीं देते हैं जो मैं बनाता था वह साल भर में 20 से 25 दुलदुल घोड़ी बना लेता था
15 साल पहले और अब तो ज्यादा से ज्यादा दो दुलदुल घोड़ी यह फिर 3 मनाने का काम करता हू जो आजकल फैशन के दौर से ज्यादातर लोग दुलदुल घोड़ी को भुलाते जा रहे हैं
क्योंकि डीजे के आगे पहले हम लोगों को दलदल घोड़ी बनाने में बहुत बिजी थी बनाते तो अभी भी है हर रकम के बनाते हैं जैसे कि कागज और कपड़ा बॉस हार के पूरा बनाकर तैयार करते हैं जब लोग ले जाते हैं दुलदुल घोड़ी नचाने वाला शिवमंगल अतर्रा कस्बे के रहने वाला का कहना है
कि पहले और अब में बहुत फर्क पड़ा है जो कि मैं 810 लोगों को परिवार सिर्फ दो लोग बॉडी नाच कर ही पड़ता है जब दंगल घोड़ी न जाने जाते हैं
तब हमें बहुत अच्छा लगता है और हमें पूर्व से यह काम चला आ रहा है पहले हमारे बाप दादा ना चाहते हैं फिर हम मजा में लगे हैं इतना ही नहीं हम ऐसा कोई अपने आसपास का क्षेत्र नहीं बचा है जो नहीं बचा है हमें भी अच्छा लगता है जब लोग कहते हैं कि जल्दी बड़े बहुत अच्छा ना चाहते हैं
और ऊपर से हम फूल की थाली भी एक हाथ एक उंगली केवल घूम आते हैं हां पहले और अब में तो बहुत फर्क है मैंने ऐसा कोई दिन नहीं जिस दिन ना जाने के लिए हो ऐसे साल में एक दो महीने होते थे जो दुलदुल घोड़ी नहीं न चाहते थे बाकी हम पूरा साल में जाते थे तो बोलो और अब तो गिने-चुने नचने को मिलता