नमस्कार दोस्तों द कविता शो के इस एपिशोड में आपका स्वागत है . ये समाज किस तरह से महिलाओं और लडकियों के ऊपर अपना सिकंजा कसता जा रहा है. कही पर उनके खानपान में परिवार रोक लगता है तो कही पर पंचायते लगाकर उनके पहनावे पर बैन लगाई जा रही है. हालही में ताजा मामला उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर जिले से आया है. यहाँ के चरथवाल थाना के अंतर्गत आने वाले गाँव पिपलशाह में 2 मार्च को पंचायत बुलाई गयी थी.
जिसमें फैसले की घोषणा करते हुए सामुदायिक नेता और किसान संघ के प्रमुख ठाकुर पूरन सिंह ने कहा कि महिलाओं को जींस और पुरुषो को शॉर्ट्स पहनने से रोकने का निर्णय लिया गया है। वह कहते हैं की जींस आदि कपड़े पश्चिमी संस्कृति का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि, “हमें अपने पारंपरिक कपड़े जैसे साड़ी, ‘घाघरा’ और ‘सलवार-कमीज’ पहनना चाहिए।”
उन्होंने आगे कहा कि, “जब परंपरा और संस्कृति नष्ट हो जाती है, तो समाज भी नष्ट हो जाता है।” वह राजपूत समुदाय के लोगों से कहते हैं कि वह उन कन्या विद्यालयों का बहिष्कार करें जहां स्कर्ट या पैंट-टॉप वर्दी का हिस्सा है। यह फैसला क्षत्रिय खाप पंचायत द्वारा मंगलवार, 9 मार्च को लिया गया था।
राजपूत समुदाय की पंचायत ने भी फैसले को लेकर लोगों को चेतावनी दी थी। यह कहा गया था कि जो भी व्यक्ति नियम को नहीं मानेगा और उसका उल्लंघन करेगा। उसे सज़ा देने के साथ-साथ उसे समुदाय से बहिष्कार कर दिया जाएगा।
हाल ही में स्विट्ज़रलैंड में सरकार ने पूरे देश में बुर्क़ा पर रोक लगाने के लिए चुनावी मतदान कराए थे।जहाँ सरकार का यह फैसला सिर्फ उसकी तानाशाही शक्ति, सत्तावाद, और महिलाओं पर दबाव डालना दर्शाता है, वहीँ स्विट्ज़रलैंड के लोगों ने भी इस मतदान में 50 प्रतिशत से भी ज़्यादा वोट “बुर्क़ा बैन” को देकर यह साबित कर दिया है कि वो किस प्रकार से मुस्लिम समुदाय की महिलाओं से उनके ऊपरी वस्त्रधारण का हक़ छीनना चाहते हैं और महिलाओं को अपनी उँगलियों पर नचाना चाहते हैं।
अब देखिये ये समाज और सरकार किस तरह से महिलाओं के हक अधिकार को छीन रहा है .इस समाज में आखिर महिलाओं पर ही इतने दबाव क्यों बनाये जाते हैं. उनकी हर तरह की आजादी को क्यों छीना जा रहा है. कई ऐसे परिवारों को भी मैने देखा है जहाँ पर महिलाओं को बोला जाता है की वो मीट मछली न खाए तो पहनावे की रोक परिवार भी लगाता है लेकिन जब ये मुद्दे को इतना बड़ा रूप दे दिया जाए की उनके लिए पचायत बुलानी पड़े तो सीधे सीधे ये संविधान के अधिकारों का हनन है संविधान में हर तरह की आजादी दी है की हम अपने मन का खाना खा सकते है कपड़े पहन सकते और घूम फिर सकते है फिर ये किस तरह के फैसले खाप पंचायते सुना रही हैं ?
और दूसरी तरफ बुर्के में रोक लगा कर एक तरह से समुदाय विशेष को टार्गेट किया जा रहा है जबकि कोरोना काल में ये सरकार की तरफ से नियम बनाये गये हैं की लोग अपना चेहरा ढके मास्क पहने या दुपट्टा से अपने चेहरे को ढके फिर भी इस तरह से बुर्के में रोक लगाई जा रही है.
अरे रोक ही लगाना है तो ऐसे मर्दों की निगाहों में उनकी सोच में रोक लगाओ जो बलात्कार करते है और महिलाओं को मारते हैं उनको कड़ी से कड़ी सजा देने के लिए ये पंचायते कहा गायब हो जाती है .घटिया और घिनौनी सोच रखने वाली खाप पंचायतो के उपर क्या कोइ कानूनी कार्यवाही होगी .
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