यूपी के बहराइच में 2024 में हुए दंगे से सम्बंधित मामले में एक अदालत ने मुख्य आरोपी सरफराज को मौत की सजा सुनाई। न्यायालय ने अपने फैसले में दोषी पर नाख़ून उखाड़ने, अत्यंत क्रूरता और बर्बरता से हत्या बताया। इसकी जानकारी जिले के सरकारी आपराधिक वकील प्रमोद कुमार सिंह ने गुरुवार 11 दिसंबर 2025 को दी लेकिन वहीं साल 2024 अक्टूबर में आए बहराइच पुलिस के बयान में इसे सांप्रादियक हिंसा को फ़ैलाने वाली अफवाह बताया। अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर किसकी बात को सच माना जाए, जज की या फिर पुलिस की?
बहराइच हिंसा पूरा मामला
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार मामला पिछले साल 2024 का है जब यूपी के बहराइच में दंगे होने की खबर आई थी। यह घटना रविवार शाम 4 बजे महसी तहसील के हरदी थाना क्षेत्र में हुई थी जब कुछ स्थानीय लोगों का जुलूस कथित तौर पर दुर्गा मूर्ति विसर्जन यात्रा के दौरान मुस्लिम इलाके से गुजरा तो यात्रा को मस्जिद के बाहर रोककर DJ पर आपत्तिजनक गाने चलाए गए। दूसरे पक्ष ने डीजे का संगीत बंद करने को कहा। पुलिस ने बताया कि इसका विरोध करने पर दोनों पक्षों में बीच झड़प और पथराव हुआ। हिंसा में कई लोग घायल भी हुए और इसी बीच फायरिंग भी हुई जिसमें 22 वर्षीय गोपाल मिश्रा को गोली लगी। उसे अस्पताल में मृत घोषित किया गया।
जिले के सरकारी आपराधिक वकील प्रमोद कुमार सिंह ने बताया कि मोहम्मद सरफराज़ अहमद उर्फ़ रिंकू को मौत की सजा दी गई है। उन्होंने कहा कि केस की सुनवाई बहुत अच्छे और तेज़ तरीके से की गई। इसलिए सिर्फ़ 13 महीने 28 दिनों में कोर्ट ने फैसला सुना दिया।
जज ने पढ़ा मनुस्मृति का एक श्लोक
इस मामले का फैसला करते हुए प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश पवन कुमार शर्मा द्वितीय ने मनुस्मृति के एक श्लोक का उदाहरण दिया – “दण्ड शास्ति प्रजाः सर्वा, दण्ड एवभिरक्षति। दण्ड सुप्तेषु जागृति, दण्ड धर्म अविदुरवढा।”
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार उपरोक्त श्लोक के अनुसार, न्याय और समाज के हित में यह आवश्यक है कि कानून द्वारा स्थापित सिद्धांतों का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति को उचित दंड दिया जाए।
अदालत के आदेश में कहा गया है कि मनुस्मृति के अनुसार, दंड प्रणाली का अस्तित्व यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक माना जाता है कि लोग ‘राजधर्म’ (राज्य के कर्तव्य) का पालन करें। दंड के भय से समाज के लोग अपने नैतिक और सामाजिक कर्तव्यों से विचलित होने से बचते हैं। दंड ही लोगों के जीवन और संपत्ति की रक्षा करता है, इसीलिए अपराधी को दंडित करना शासक का सर्वोच्च कर्तव्य माना जाता है।
State of Indian judiciary.
The claim of torture which was made the basis of awarding death penalty was actually debunked by the police. https://t.co/E4tA5a1QAQ
— Piyush Rai (@Benarasiyaa) December 11, 2025
कोर्ट ने मुख्य आरोपी को सुनाई फांसी की सजा
वकील प्रमोद कुमार ने कहा “हत्या में इस्तेमाल किया गया हथियार सरफराज से बरामद किया गया था इसलिए अदालत ने उसे मुख्य आरोपी माना। इसके अलावा हथियार बरामदगी के दौरान सरफराज ने पुलिस टीम पर गोली भी चलाई जिसके कारण उसे भारतीय न्याय संहिता की धारा 103/2 के तहत मौत की सजा सुनाई गई।”
142 पृष्ठों के अदालती आदेश का हवाला देते हुए, प्रोमद सिंह, अतिरिक्त जिला सरकारी वकील (एडीजीसी) ने कहा “…दोषी आरोपियों द्वारा किया गया कृत्य अत्यंत जघन्य है। उन्होंने एक निहत्थे युवक की बेरहमी से हत्या कर दी, उसके शरीर को गोलियों से छलनी कर दिया। उसके पैर इतने बुरी तरह जल गए थे कि उसके नाखून भी उखड़ गए। इस कृत्य ने समाज में अशांति और अस्थिरता पैदा कर दी। दोषियों द्वारा दिखाई गई क्रूरता ने मानवता को झकझोर दिया। सामाजिक व्यवस्था को भंग कर दिया और उसे पतन के कगार पर धकेल दिया। ऐसे अपराधियों के लिए न्याय का सच्चा उद्देश्य यह है कि उन्हें इस तरह से दंडित किया जाए जिससे समान प्रवृत्ति रखने वालों में भय उत्पन्न हो और न्यायिक प्रणाली में जनता का विश्वास मजबूत हो।”
बचाव पक्ष नाखुश, फैसले के खिलाफ करेंगे अपील
बचाव पक्ष के वकील मुख्तार आलम ने कहा, “हम फैसले के खिलाफ अपील करेंगे।”
9 को आजीवन कारावास और 3 बरी
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार अब्दुल हमीद, फहीम, सैफ अली, जावेद खान, जीशान उर्फ राजा उर्फ साहिर, नानकाऊ, मारूफ अली, शोएब खान और तालिब उर्फ सबलू शामिल हैं। अफजल, शकील और खुर्शीद को इस मामले में बरी कर दिया दया।
जज और पुलिस के बयान पर सोशल मीडिया पर बहस
कोर्ट में मुख्य आरोपी मोहम्मद सरफराज़ अहमद की मौत की सजा को लेकर जज के बयान पर सवाल उठ रहे हैं। जहां एक तरफ जज ने मौत की सजा इस आधार पर तय की है कि आरोपी ने निहत्थे युवक की बेरहमी से हत्या कर दी। उसके शरीर को गोलियों से छलनी कर दिया। उसके पैर इतने बुरी तरह जल गए थे कि उसके नाखून भी उखड़ गए। वहीं 13 अक्टूबर 2024 में बहराइच पुलिस ने सूचना जारी करते हुए कहा कि यह सब सांप्रादियक हिंसा फैलाने के लिए अफवाह है जिस पर ध्यान नहीं देना चाहिए।
— BAHRAICH POLICE (@bahraichpolice) October 16, 2024
जब इस तरह के फैसले और बयान सामने आते हैं तो क़ानूनी व्यवस्था और न्याय व्यवस्था पर ही संदेह होने लगता है कि दोनों में से कौन सच बोल रहा है?
