खबर लहरिया Blog पानी ढोने से शरीर पर पड़ रहा बुरा प्रभाव- ग्रामीण महिलाएं 

पानी ढोने से शरीर पर पड़ रहा बुरा प्रभाव- ग्रामीण महिलाएं 

‘रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून’ मतलब साफ है कि पानी बिना कुछ नहीं। सेहत के लिए पानी जरूरी है। बिना पानी जीवन की कल्पना असंभव है। फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों में बिगड़े हैंडपंपों की तरफ ज़िम्मेदार ध्यान नहीं दे रहेंl मीलों दूर दिन भर पानी की तलाश में लोगों को भटकना पड़ रहा है।

पानी ले जाती महिलायें और बच्चियां

बढ़ती गर्मी से ग्रामीण बेहाल हैं। गर्मी दिनोंदिन अपने चरम पर पहुंचती जा रही है। हर नए दिन के साथ पारा भी एक नया रिकार्ड दर्ज कर रहा है। तपिश से अधिकांश क्षेत्रों में पेयजल संकट गहरा गया है। टीकमगढ़ जिले के मोहनगढ़ तहसील की ग्राम पंचायत नादिया में तीन महीने से हैण्डपंप खराब पड़ा है। ग्रामीण पानी के लिए परेशान हो रहे हैं।

पानी ढोने से पड़ता है सेहत पर बुरा असर- महिलायें

शांति बाई आदिवासी ने बताया कि ”दूर से पानी लाने में कई तरह की समस्याएं होती हैं जैसे शरीर पर भी प्रभाव पड़ता है सीना में दर्द, पानी ढोत-ढोत सर के बाल उड़ गए और हाथ पैर भी दर्द करने लगते हैं। पानी का वजन उठाकर लाना बहुत मुश्किल है। पर क्या करें ऐसी मुसीबतों का सामना तो महिलाओं को शदियों से करना पड़ रहा है।”

ग्राम नादिया के स्थानीय निवासी रमेश बंशकार ने बताया कि है उनके आदिवासी बस्ती और वंशकार बस्ती में दो तीन हैंडपंप लगे हैं जिसमें से एक चालू रहता है और दो हैंडपंप तो दो तीन महीने से बंद पड़े हैं। पानी के लिए महिलाएं हार (खेत) कुआं से पानी भरकर लाती हैं। जिससे कई तरह की दिक्कतें होती हैं। जो हैंडपंप बंद है उनसे यह सभी लोग पानी भरते थे लेकिन फरवरी आने के बाद से ही उन हैंडपंपों का पानी चला जाता है इसलिए गर्मियों में बहुत समस्याएं होती हैं।

प्रशासनिक दावों की पोल खोल रहे खराब हैंडपंप

खराब हैंडपंप

राम भगत कहते हैं कि हैंडपंप बिगड़े हैं उनमें पाइप बढ़ाई जाएं तो पानी अच्छा आएगा क्योंकि अभी जलस्तर नीचे चला गया है और उसमें पानी नहीं निकलता। जब यह हैडपंप चल रहा था तो राहगीर भी पानी पीते थे। हैंडपंप से मोंगिया बस्ती, आदिवासी वस्ती और बंशकार समाज के लोग पानी भरते थे और सबके घर में पानी की पूर्ति भी हो जाती थी लेकिन फरवरी आने के बाद से ही बंद पड़ा हुआ हैं। इस बारे में कई बार यहां के सरपंच से बात की गयी है लेकिन वह भी नहीं सुनते हैं। एक तरफ कोरोना की बीमारी और दूसरी तरफ लोगों को पानी की किल्लत हो रही है। अब ऐसे में प्यास कैसे बुझाये? वही कहावत है की बाहर निकले तो मर जाएँ न निकलें तो मर जाएँ।

हर साल पानी के संकट से जूझते हैं लोग

गर्मी शुरू होते ही हर साल पेयजल संकट शुरू हो जाता है। सब कुछ जानने के बाद भी जिम्मेदार विभाग के अधिकारी पेयजल संकट से निपटने के लिए कोई तैयारी नहीं करते, जिससे लोगों को पीने के पानी के लिए भटकना पड़ता है। स्थिति यह है कि ख़राब हैंडपंपों को ठीक कराने की जहमत नहीं उठाई गई। यहाँ लगे खराब हैंडपंप प्रशासनिक दावों की पोल खोल रहे है।

शांति बाई कहती हैं कि सबसे ज्यादा आवश्यकता पानी की होती है और पानी नहीं है तो समझो कुछ नहीं। पानी के बिना ना खाना बनता है और ना ही कुछ काम होता है। प्यासे कैसे रह सकते हैं मजबूरी में लोगों को पानी के लिए भटकना पड़ता है। परिवार के दो सदस्यों का टाइम पानी भरने में ही जाता है।

जलस्तर की कमी से हो रही पानी की समस्या

जब इस मामले में हैंडपंप मैकेनिक विनीत राय से बात की तो उनका कहना है कि वहां पर काफी ऐसे हैंडपंप हैं जो फरवरी महीना के बाद जल स्तर की कमी के कारण सूख जाते हैं। उस हैंडपंप में एक माह पहले पाइप डाली गई थी लेकिन जल स्तर की कमी होने से वह हैडंपंप चालू नहीं हो सका। इतना ही नहीं इन हैण्डपम्पो में ठेकेदार द्वारा मोटर भी डाली गई है लेकिन वह मोटर भी चालू नहीं हुआ है। जब बारिश होती है तो अपने आप इन हैंडपंपों में पानी आ है। अभी के लिए तो वहां पर दो-तीन बस्ती में सबसे ज्यादा परेशानी हो रही है इस बारे में हमने अपने उचित अधिकारियों को भी सूचित कर दिया गया है। जो आदेश आएगा आगे काम जायेगा।

प्रशासन ने नहीं की व्यवस्था- सरपंच

ग्राम पंचायत नादिया के सरपंच रणजीत यादव ने बताया कि जल स्तर की कमी के कारण ये दिक्कतें हो रही हैं। इस बारे में कई बार विभाग में भी अवगत कराया है लेकिन अभी तक कुछ जवाब ही नहीं मिला है। वहां पर स्कूल के पास लगा हुआ हैंडपंप की लाइन चली गई है उसे जल्दी से जल्दी ठीक करा दिया जाएगा जिससे ग्रामीणों को पानी मिल सके।

इस खबर की रिपोर्टिंग राजकुमारी द्वारा की गयी है।

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