एक कुम्हार ने कहा कि, “ठेकेदार ने 10 लाख का आर्डर दिया था जिसमें से 7 लाख 10 हजार दीये ले गए हैं और 2 लाख 90 हजार ऐसे ही रखा हुआ है। ठेकेदार ने बोला की हमारे दीए पूरे हो गए, अब हमें दीये की आवश्यकता नहीं है। हमारा सारा पैसा तो इसी में लग गया है तो हमारी दिवाली कैसे मनेगी?
अयोध्या में हर साल दिवाली में लाखों दीयों को जलाकर रिकॉर्ड तोड़ा जाता है। इस साल अयोध्या में 25 लाख दीए जलाने का लक्ष्य रखा गया है। पहले 51 घाटों पर ये दीये जलाए जाते थे अब घाटों की संख्या बढ़ाकर 55 कर दी गई है। यह भव्य दीपोत्सव 2024 समारोह में 28 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक चलेगा। इसमें कई तरह के सांस्कृतिक कार्यकर्म, लेजर शो, राम से जुड़े जीवन की झाकियां और कई तरह के कार्यकर्म शामिल होंगे। इस साल तो अयोध्या नगरी में राम लौट आये हैं, तो उनके स्वागत में कमी कैसे हो? इसके लिए योगी सरकार अयोध्या राम मंदिर को सजाने में पूरा जोर लगा रही है। दिवाली का त्यौहार अयोध्या में बेहद चमक और लाखों की दीयों की रोशनी के साथ मनाया जाता है जिसकी तैयारी कई महीनों से शुरू हो जाती है।
दिवाली में खासतौर पर दीयों का निर्माण करने वाले कुम्हारों को इस दिन का इंतजार रहता है। उनके अंदर उम्मीद जगती है कि इस बार तो उन्हें दीये बनाने का आर्डर मिलेगा और शायद उनके हाथों से बने दिये भी राम मंदिर के घाटों पर चमकेंगे, लेकिन जैसा की हर साल कुम्हारों की उम्मीद अंधेरों में गुम हो जाती है जिसे सरकार देख नहीं पाती।
हाल ही में पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार अयोध्या के कुछ कुम्हारों को इस बार आर्डर तो मिला और वे आर्डर पाकर खुश हुए। पूरे परिवार ने मिलकर (जिसमें छोटे बच्चे भी शामिल थे) आर्डर पूरा करने के लिए दिन रात एक कर दिया, लेकिन ठेकेदारों ने उनके पूरे बनाए हुए आर्डर लेने से इंकार कर दिया। इस बात से कुम्हारों की उम्मीद पर एक बार फिर से पानी फिर गया।
कुम्हरों को मिला था 10 लाख दीये बनाने का आर्डर
पीटीआई से बात करते हुए एक कुम्हार ने कहा कि, “ठेकेदार ने 10 लाख का आर्डर दिया था जिसमें से 7 लाख 10 हजार दीये ले गए हैं और 2 लाख 90 हजार ऐसे ही रखा हुआ है। ठेकेदार ने बोला की हमारे दीए पूरे हो गए, अब हमें दीये की आवश्यकता नहीं है। हमारा सारा पैसा तो इसी में लग गया है तो हमारी दिवाली कैसे मनेगी?
ठेकेदार पर दूसरे जिले से दीये खरीदने का आरोप
कुम्हार ठेकेदार पर आरोप लगा रहे हैं कि, “ठेकेदार दूसरे जिले से दीये बनवा रहे हैं क्योंकि उन्हें वहां से ज्यादा कमीशन मिल रहा है और हमारे माल से कम मिला रहा है इसलिए हमारा माल नहीं ले रहा है।”
दीपोत्सव कार्यक्रम के प्रभारी नोडल अधिकारी ने बात से साफ़ इंकार किया और कहा कि “पिछले कुछ दिनों से लगातार अयोध्या के कुम्हारों से दीये खरीदे जा रहे हैं। अयोध्या में तकरीबन 40 कुम्हार परिवार ऐसे हैं जो तीर्थ नगरी में अक्टूबर के आखिर तक भव्य दीपोत्सव समारोह के लिए दिन-रात दीये बना रहे हैं।”
अब सवाल यह है कि इन बचे हुए दीये का क्या होगा? इतनी मेहनत से पूरे गांव ने मिलकर दिये बनाने का काम किया, इस उम्मीद में कि इस बार उन्हें निराश नहीं होना पड़ेगा लेकिन वही हुआ जो हर साल होता है। कई कुम्हारों को तो आर्डर तक नहीं मिलता लेकिन फिर भी उन्हें उम्मीद रहती है कि सरकार उनसे भी दीये खरीद और उनका घर परिवार चले।
‘एक दीया प्रभु श्री राम के नाम’ पर क्या ये दीए गरीबों के हित के लिए है?
इस बार राम के प्रति श्रद्धा रखने वाले लोगों के लिए अयोध्या विकास प्राधिकरण ने ‘एक दीया प्रभु श्री राम के नाम’ नाम से एक वर्चुअल पहल शुरू की है, जिसके तहत लोग राम के लिए एक दीया जलाकर अपनी भक्ति व्यक्त कर सकेंगे। मतलब यदि कोई अयोध्या नहीं जा सकते, उन्हें निराश होने की जरूरत नहीं है। वे भी इस दीए जलाने के कार्यक्रम का हिस्सा बन सकते हैं वो भी घर बैठे ही। एडीए के उपाध्यक्ष अश्विनी कुमार पांडे ने गुरुवार 24 अक्टूबर 2024 को कहा,
“भारत और विदेश के भक्त www.divyaayodhya.com/bookdiyaprashad लिंक के जरिए ऑनलाइन दान करके इस साल के दीपोत्सव में भाग ले सकते हैं। बदले में उन्हें यूपी राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा तैयार किया गया प्रसाद मिलेगा ।”
‘एक दीया प्रभु श्री राम के नाम’ लेकिन क्या ये दीये उन गरीबों या कुम्हारों के हित के लिए हैं? शायद होता तो वे भी इस बड़े उत्सव का हिस्सा बन पाते और खुशी से दिवाली बना पाते। देश में उनकी आर्थिक स्थिति भी बेहतर होती, उनके पास भी रोजगार होता लेकिन इन सबके पीछे बस लोगों की आस्था का लाभ लेना उद्देश्य दिखाई पड़ता है।
कुम्हारों की यह स्थिति पिछले कई साल से
पिछले साल 2023 में खबर लहरिया की रिपोर्ट में पता चला कि अयोध्या के आस-पास के कुम्हारों को ये आर्डर मिलता है। उन्हें ऐसा कभी मौका मिला ही नहीं कि इन लाखों के बने दीये में उनके भी दीये शमिल हो। उनके लिए दीये बनाये। 2023 में दीये जलाने का लक्ष्य 21 लाख था और तब भी कुम्हारों को यही उम्मीद थी कि रोज़गार मिलेगा, लेकिन सरकार बस दिखावा करती है कि इन दीयों से रोजगार बढ़ेगा, लोग दिवाली बनाएंगे पर सच्चाई कुछ और ही होती है। अयोध्या से 10-15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव जैसे पिंपरी,गणेशपुर आदि इन गांवो से दीपोत्सव के लिए दीये नहीं खरीदे जाते। मतलब जो दिख रहा है, वही है बाकी जहां तक उनकी आंखे नहीं जाती मतलब वहां कुछ नहीं।
गणेशपुर के कुम्हार कहते, ‘हमारे लिए दीपोत्सव का कोई मतलब नहीं। दीपोत्सव हमारे लिए नहीं होता तभी हमारे दीए नहीं खरीदे जाते।’
अगर सरकार हमें कुछ बनाने का आर्डर दे तो उनकी भी दीवाली अच्छे से बन जाए। पर आज तक कोई आर्डर ही नहीं मिला। न इसके बारे में ज़्यादा पता है। बस जो लोग आते हैं और खरीदते हैं, उससे वह अपनी दीवाली बनाते हैं।
कुम्हारों ने कहा, यूं तो सरकार कहती है कि,’हमने कुम्हार को रोज़गार दिया। उनके लिए मिट्टी बनाने के लिए चाक मिट्टी का प्रबंध किया लेकिन हमें तो चाक वितरित नहीं किया गया। न ही मिट्टी का प्रबंध किया गया। हम लोग बड़ी दूर से मिट्टी लाते हैं। लकड़ी के चाक से हाथ से दीये बनाते हैं। अगर सरकार उन्हें भी यह सुविधा देती तो उनकी भी दीवाली अच्छी बन जाती।’
पिछले वर्षों में दीये जलाये जाने का रिकॉर्ड
अयोध्या में ये दीये जलाने की यह परम्परा 2017 में शुरू हुई जब यूपी में भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई। 2017 में 1.71 लाख दीए जलाने से इसकी शुरुआत की गई। इसके बाद तो गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में हर साल सिर्फ दीए जलाने का ही रिकॉर्ड तोड़ा जाता है। ये रिकॉर्ड 2018 में 3.01 लाख, 2019 में 4.04 लाख, 2020 में 6.06 लाख, 2021 में 9.41 लाख और 2022 में 15.76 लाख था।
वाराणसी (बनारस) में भी दीये जलाने का रिकॉर्ड
इस साल 2024 में बनारस के 84 घाटों और शहर के तालाबों के किनारे 12 लाख दीप जलाए जाने की उम्मीद है। पर्यटन विभाग के डिप्टी डायरेक्टर राजेंद्र कुमार रावत ने बताया कि 12 लाख दीयों में 2.5 से 3 लाख गाय के गोबर से बने होंगे।
अयोध्या में जहां 2023 में सरयू नदी के तट पर 22 लाख दीये (मिट्टी के दीये) जलाकर “विश्व रिकॉर्ड” बनाया गया था, उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा के घाटों पर 21 लाख दीये जलाकर दिवाली मनाई गई थी।
2021 में वाराणसी के गंगा घाटों पर दिवाली में 12 लाख दीए जलाए जलाने की तैयारी हुई। इसमें सात लाख दीए गंगा के घाटों पर तो पांच लाख दीये रेती पर जलाने का लक्ष्य रखा गया था।
लोगों पर इसका क्या प्रभाव
अब इस परम्परा का अयोध्या, वाराणसी के लोगों पर इसका प्रभाव पड़ने लगा है। लोगों को चाहे इससे किसी का फायदा हो या न हो। हाँ, पर इस चमक-धमक से खुश हो जाते हैं और उन्हें इस बात की उत्सुकता खाये जाती है कि अगली बार कितने दीये जलाये जायँगे?
इन लाखों दीये के रिकॉर्ड में कुम्हारों और गरीबों की दिवाली हर बार उम्मीदों के साथ ही ख़त्म हो जाती है। इन लाखों दीयों की रोशनी का असर सबकी आँखों पर भी पड़ा है तभी हमें इस चकाचौंध, चमक, धमक के चक्र से खुद को निकल नहीं पाते और ये सब बहुत अच्छा लगने लगता है। हमें बस उस जगमगाहट की चिंता होती है कि हम कैसे उस सुन्दर दृश्य को देख पाएं इसलिए लोग दूर दराज से अयोध्या में दिवाली के अवसर पर आते हैं।
जरूरतमंदों के घर नहीं बनाने को तेल, लेकिन दीयों में इस्तेमाल हो रहा
हर साल अयोध्या से दिवाली ख़त्म होने के बाद वो तस्वीर भी दिखाई देती है, जब बुझ चुके दीयों में से तेलों को निकलते हुए कुछ जरूरतमंद लोग दिखाई देते हैं। दीयों को हर साल बढ़ाने से तस्वीर में कोई बदलाव नहीं आया है। इस बार 25 लाख दीयों में 90,000 लीटर सरसों के तेल का उपयोग किए जाने की उम्मीद है।
दीयों की संख्या बढ़ने से 40 लाख रुई की बत्ती का इस्तेमाल किया जायेगा। इन तेलों का इस्तेमाल उन लोगों के यहां इस्तेमाल होना चाहिए जिन्हें इनकी जरूरत है। दिवाली में इस तरह हर साल दीयों का आकड़ा पार करना क्या सच में भारत को समाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तौर पर मजबूती देगा? क्या सच में दिए जलाने से उन लोगों के घरों में रोशनी होगी जो वास्तव में दिये बनाने की प्रक्रिया में शामिल है?
‘यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’