अयोध्या जिले के ग्राम सभा ट़़डौली गांव करवेगवां में लगभग बीस साल से गांव के बीचों- बीच गहरा और बड़ा खुला नाला बह रहा है। ये नाला उस गांव में रहने वाले लोगों और उनके जानवरों के लिए खतरे का कारण बना रहता है।
रिपोर्ट – संगीता, लेखन – गीता
लोगों का कहना है कि इकट्ठा पानी जमा रहता है जिससे बहुत बदबू आती हैं। आप-पास रहना मुश्किल हो गया है। ऐसे में जो लोग नाले के बिल्कुल नजदीक रहने वाले हैं उन लोगों के स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ रहा है। छोटे- छोटे बच्चे खेलते- खेलते कब नाले के करीब चले जाएं यह भी डर बना रहता है। कई बार यहां पर ऐसी अनगिनत घटनाएं भी हो चुकी है। जब जानवर और बच्चे गिर गये हैं और हादसा होते-होते बचा है। इस नाले से आस-पास के लगभग 100 घर बुरी तरह प्रभावित हैं।
शारदा देवी ने बताया की लगभग 10 साल पहले उसका 3 साल का बच्चा मोनू खेलते-खेलते इस गहरे नाला में गिर गया था और पता भी नहीं चल पाया। जब काफी देर तक पूरे मोहल्ले और गांव में ढूंढती रही फिर भी बच्चा नहीं मिला तो कुछ लोगों ने शंका जताई कि हो सकता है कहीं नाले में तो नहीं गिर गया। तब देखा तो घर से लगभग 100 मीटर की दूरी पर मृतक अवस्था में बच्चे का नाले में डूबा हुआ शव मिला था। तब से उसने नाले के पास वाले घर में रहना ही छोड़ दिया है।
शारदा कहती हैं कि उसकी तो दुनिया ही उजड़ गई लेकिन इस गांव के नाले में सुधार अभी तक नहीं हुआ न जाने कितनी बार यहां पर ऐसे जानवर और बच्चे गिरते होंगे। जब उसका लड़का खत्म हुआ था तो प्रधान को जानकारी दी गई थी लेकिन ना तो नाले पर पटिया डाली गई और ना ही कोई मदद मिली। यहां के लोगों का आरोप है कि इस गांव में ज्यादातर दलित लोग रहते हैं इसलिए कोई ध्यान नहीं देता, प्रशासन हो या प्रधान। अगर यही नाला कहीं समाज में ऊंची मानी जानी वाली जाति की बस्ती में होता तो कब का बन चुका होता क्योंकि वहां पर लोगों का दबाव होता। दलितों की भला कौन सुनने वाला है।
अर्चना कुमारी कहती है कि वह एक मां है और अपने बच्चे को लेकर क्या महसूस करती है उसका डर और दर्द कोई दूसरा नहीं जानता।
लोगों का कहना है कि रात के अंधेरे में खुला नाला और भी ज्यादा खतरनाक हो जाता हैं। लोगों को रात के अंधेरे में आने- जाने में दिखाई नहीं देता हैं खासकर उन लोगों को जो बाहर से इस गांव में आ रहे हैं। नाला के बारे में जानकारी नहीं है वे आसानी से इनमें गिर सकते हैं। ये नाला गांव के लोगों के लिए हो या बाहरी लोगों के लिए एक बड़ी परेशानी का कारण बन रहा हैं। उन्हें अक्सर इस नाले से डरना पड़ता है। बच्चों को कभी घर में अकेले नहीं छोड़ते चाहे जितना ही जरूरी काम हो और वे रात में बाहर निकलने से भी हिचकिचाते हैं। इस खुले नाले को ढकने के लिए प्रशासन को कोई ठोस कदम उठाना चाहिए ताकि गांव के लोग सुरक्षित रहे सकें।
प्रधान अनुप्रिया सिंह का कहना है कि चार साल लगभग उसके प्रधानी को होने जा रहा है। तब से वह नाले में हर दूसरे- तीसरे महीने सफाई करवाती हैं और दवाइयों का छिड़काव करवाती हैं। कुछ जगहों पर नाला ढकने के लिए पटिया भी डालवा दिया है लेकिन पूरा ढकने के लिए बजट ज्यादा लगेगा जो उनके अंडर में नहीं आता है। इस कारण से पूरा काम करने में असमर्थ है। हां गांव वाले दरखास दें और सहयोग करें। अगर इस काम के लिए एसडीएम या डीएम पास कर देते हैं तो फिर पूरे नाला पर पटिया डलवाने की कोशिश कर सकती हैं।
यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’