खबर लहरिया जिला अयोध्या : दीये जलाने की होड़ में गरीबों की दीवाली फीकी क्यों

अयोध्या : दीये जलाने की होड़ में गरीबों की दीवाली फीकी क्यों

दीपावली का त्यौहार हर साल आकर रोजगारपरक लोगों के लिए ज्यादा कमा पाने की एक नई उम्मीद देकर चला जाता है कि अगले साल फिर दिवाली आएगी और उनकी थोड़ी कमाई शायद ज्यादा हो जाएगी वहीं हमारी सरकार हर दीपावली में दीप जलाने के रिकार्ड तोड़ती है। क्या यह रिकॉर्ड उन लोगों के लिए तोड़े जाएंगे जो इस त्यौहार पर थोड़ी कमाई की उम्मीद करते हैं।

अयोध्या में यह परंपरा प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने वर्ष 2017 में की थी और इसकी शुरुआत 51 हजार दीयों से हुई थी। वर्ष 2019 में इन दीयों की संख्या बढ़कर चार लाख 10 हजार हो गई थी। वर्ष 2020 में यह संख्या छह लाख थी और 2021 में यह नौ लाख से ज्यादा होकर एक नया विश्व रिकॉर्ड बना गई।

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हर साल लाखों में दिए जलाए जाते हैं। इसमें भारी भरकम सरकारी धन खर्च ही किया जाता है लेकिन खासकर सरसों के तेल की बर्बादी खूब होती है। इस बर्बादी को गरीब और जरूरतमंद लोग सरसों का तेल इकट्ठा करने का अवसर खोजते हैं। जैसे ही दीपदान पूरा होता है लोग कट्टी, गैलन, बाल्टी, डिब्बा लेकर पहुंच जाते हैं तेल बटोरने और कुछ दिन के लिए व्यवस्था कर लेते हैं। यह तेल उनके खाने और लगाने के काम आता है। सरसो के तेल की बेहताशा मंहगाई बेकार में बहते तेल की बर्बादी लोगों से देखी नहीं जाती। इसलिए भले ही वह गन्दा तेल क्यों न हो उसे बटोर ही लाते हैं।

जब दिए जलाने के रिकार्ड बनने शुरू हुए तो कुम्हारों को एक नई उम्मीद जगी कि अब उनको सरकार से भी रोजगार मिलेगा। इतने भारी भरकम की संख्या में दिए जलाए जाएंगे तो जाहिर सी बात है कि दिए बनाये ही जाएंगे और यह दिए कुम्हार ही बनाएंगे। शायद है कि उनको रोजगार मिल जाए। इस पर हमने भी कवरेज की। कुम्हारों ने बताया कि उनको दिए जलाने के ऑर्डर तो दिए गए और उन्होने कम रेट भी स्वीकारते हुए दिए बनाये लेकिन वह दिए कोई लेने नहीं आया। उनकी मेहनत पानी में चली गई। हां वह दीपक बनाते हैं लेकिन दीवाली के समय पर जितने बिक जाएं उतने ही बनाते हैं। यह दिक्कत ज्यादातर कुम्हारों की थी।

इस साल भी 14 लाख से ज्यादा दिए जलाए जाने हैं। क्या सरकार कुम्हारों से लेगी यह दीये या हर साल की तरह इस साल भी बाहर से मंगा लेगी? दबी जुबान यहां के कुम्हार बताते हैं कि दीये अन्य शहरों से ही नहीं विदेशों तक से मंगाए जाते हैं।

हमारी सरकार चायनीज सामान जिसमें खासकर बिजली की झालर और खिलौने न खरीदने की अपील की जाती है ताकि स्वदेशी सामान को बढ़ावा मिल सके लेकिन जब सरकारें ही अपने देश और गांव का सामान नहीं खरीदती तो यह अपील उनकी बेनामी लगती हैं।

दिवाली के समय सब अपने अपने रोजगार में ज्यादा कमाई की उम्मीद करके रोड में बैठ जाते हैं। छोटे छोटे बच्चे और उनके माता पिता या बड़े लोग कुछ न कुछ काम करते नजर आते हैं। रुई बेचना, बांस के पंखे बेचना, मिट्टी के दीये, खिलौने और बर्तन बेचना, झालरें लाइट पटाखे बेचना, मूर्तियां बेचना, लाई बतासे और चीनी के खिलौने बेचना। बाजार जाओ तो सब दौड़ दौड़ आते हैं उम्मीद के साथ कि शायद आप उनका सामान खरीद लें तो उनको थोड़े पैसे मिल जाएं उससे उनकी दिवाली मन जाए।

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