सुभौती देवी ने बताया कि उनके पति स्वर्गीय रामदेव मांझी का देहांत तीन साल पहले हो गया था। इसके बावजूद आज तक उनकी जमीन-जायदाद में उनका नाम दर्ज नहीं हो पाया है। जब भी वे तहसील सदर (अयोध्या) जाती हैं, तो कभी आधार कार्ड सही कराने का बहाना, तो कभी अधिकारी की गैरमौजूदगी की बात कहकर उन्हें लौटा दिया जाता है।
रिपोर्ट – संगीता, लेखन – कुमकुम
अयोध्या जिले के पूराबाजार ब्लॉक के पुवारी मांझा गांव की रहने वाली विकलांग (आँखों से देख नहीं पाती) सुभौती देवी और उनकी बेटी रुचि (आँखों से देखने में असमर्थ) तीन साल से सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रही हैं, लेकिन अब तक उनकी जमीन-जायदाद में नाम दर्ज नहीं किया गया है।
सुभौती देवी का कहना है कि उन्होंने सभी जरूरी दस्तावेज़ जमा कर दिए हैं, लेकिन हर बार कोई न कोई बहाना बनाकर उन्हें टाल दिया जाता है। कभी फॉर्म में गलती बताई जाती है, तो कभी अगली तारीख देकर लौटा दिया जाता है। विभागीय अफसरों की बेरुखी और सिस्टम की लापरवाही के चलते उन्हें अपनी ही जमीन पर हक पाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
गरीब और दिव्यांग लोगों के लिए प्रशासन कब संवेदनशील बनेगा?
सुभौती देवी और उनकी बेटी जैसे हजारों लोग अपनी जमीन, राशन कार्ड, पेंशन और अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ पाने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहते हैं, लेकिन बिना किसी सिफारिश या पैसे के उनका काम नहीं हो पाता।
बहाने से चक्कर लगाने का आरोप
सुभौती देवी ने बताया कि उनके पति स्वर्गीय रामदेव मांझी का देहांत तीन साल पहले हो गया था। इसके बावजूद आज तक उनकी जमीन-जायदाद में उनका नाम दर्ज नहीं हो पाया है। जब भी वे तहसील सदर (अयोध्या) जाती हैं, तो कभी आधार कार्ड सही कराने का बहाना, तो कभी अधिकारी की गैरमौजूदगी की बात कहकर उन्हें लौटा दिया जाता है। “भैया बाबू” कहने से सुन लेते, लेकिन फिर बहाना बना देते हैं।
जमीन के काम में देरी, किसी और का कब्जा होने का डर
गांव देहात में एक बार अधिकारी सुन भी लेते हैं, लेकिन दोबारा कोई ध्यान नहीं देता। सुभौती देवी को डर है कि अगर सरकारी प्रक्रिया और ज्यादा लटकती रही, तो उनकी जमीन पर कोई और कब्जा न कर ले।
सामाजिक कार्यकर्ताओं से आखिरी उम्मीद
इस बार सामाजिक कार्यकर्ता गायत्री देवी ने उनकी मदद की है। उन्होंने खेती खतौनी के कागजात तहसील दफ्तर में जमा कर दिए हैं और अधिकारियों ने एक महीने का समय दिया है। अब देखने वाली बात यह होगी कि इस बार उनका काम होता है या फिर उन्हें फिर से निराशा हाथ लगेगी।
सुभौती देवी ने साफ कहा कि अगर इस बार भी उनका नाम जमीन-जायदाद में दर्ज नहीं हुआ, तो वे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जनता दरबार में जाकर न्याय की गुहार लगाएंगी।
जमीन नामांतरण कब खत्म होगा लंबा इंतजार?
तहसील में आई अन्य शिकायत कर्ता किरन ने सरकार से सवाल करते हुए कहा “आखिर कब बदलेगा यह सिस्टम, जहां एक जमीन पर नाम दर्ज कराने में सालों लग जाते हैं?” कई बार ऐसा होता है कि दादा के समय शुरू हुआ मामला पोते तक चलता रहता है।”
आगे कहती हैं “गरीबों के लिए यह लड़ाई और भी कठिन हो जाती है। दिनभर मजदूरी कर 300-400 रुपए कमाने वाला व्यक्ति जब तहसील जाता है, तो हजार-पंद्रह सौ रुपए चढ़ावे और चाय-पानी में खर्च हो जाते हैं। फिर भी अफसर यही कहते हैं—”कभी आधार कार्ड सही कराओ, कभी साहब नहीं हैं।”
यह एक बड़ा सवाल है कि क्या आम आदमी को अपना हक पाने के लिए हमेशा ऐसे ही संघर्ष करना पड़ेगा?
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